उसकी याद
कितने दिनों के बाद उसकी याद आई है,
यूं ही नहीं ये दिल की कली मुस्कराई है।अपना रखूं ख़याल कि दुश्मन की देख भाल,
अल्लाह जाने क्या मिरे दिल में समाई है।दिखने लगा है मेरी मुहब्बत का अब असर,
रंगत जमाले यार की दुनिया पे छाई है।पहले तो साथ छोड़ दिया बीच भंवर में,
अब हाल ये है मुझसे नज़र तक चुराई है।बज़्मे सुख़न में ज़िक्र कोई है तो यार का,
ज़ालिम अदा के साथ हया खूब पाई है।संजय बड़ी अजीब शय होती है ये शराब,
छोडूं तो नासमझ हूं पिऊं तो बुराई है।
संजय कुमार गिरि
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