फिरोजशाह कोटला मैदान पर DDCA के दिवंगत अध्यक्ष अरुण जेटली की प्रतिमा लगाने के फैसले से खफा महान स्पिनर बिशन सिंह बेदी ने क्रिकेट संघ से उनका नाम दर्शक दीर्घा से हटाने के लिए कहा है. उनके नाम पर दीर्घा 2017 में बनाई गई थी. इसके विरोध में डीडीसीए से भी इस्तीफा भी दे दिया है. एक टीवी चैनल से बातचीत में बेदी ने कहा कि मेरे जमीर ने जो कहा, मैंने कर दिया. एक क्रिकेट ग्राउंड में एक नेता का बुत बनाना शोभा नहीं देता है. यह बात मेरे जेहन में उतर नहीं रही है. मैंने उन्हें बुत लगाने से रोक नहीं रहा हूं. मेरा कहना है कि मेरा नाम बस वहां से हटा दीजिए.
दिल्ली और जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) पर बरसते हुए बेदी ने भाई-भतीजावाद और ‘क्रिकेटरों से ऊपर प्रशासकों को रखने’ का आरोप लगाते हुए संघ की सदस्यता भी छोड़ दी. उन्होंने डीडीसीए के मौजूदा अध्यक्ष और अरुण जेटली के बेटे रोहन जेटली को लिखे पत्र में कहा , ‘मैं काफी सहनशील इंसान हूं लेकिन अब मेरे सब्र का बांध टूट रहा है. डीडीसीए ने मेरे सब्र की परीक्षा ली है और मुझे यह कठोर कदम उठाने के लिये मजबूर किया.’
बेदी ने कहा,‘तो अध्यक्ष महोदय मैं आपसे मेरा नाम उस स्टैंड से हटाने का अनुरोध कर रहा हूं जो मेरे नाम पर है और यह तुरंत प्रभाव से किया जाए.
मैं डीडीसीए की सदस्यता भी छोड़ रहा हूं.’
जेटली 1999 से 2013 के बीच 14 साल तक डीडीसीए अध्यक्ष रहे. क्रिकेट संघ उनकी याद में कोटला पर छह फुट की प्रतिमा लगाने की सोच रहा है.
डीडीसीए ने 2017 में मोहिंदर अमरनाथ और बेदी के नाम पर स्टैंड्स का नामकरण किया था. बेदी ने कहा, ‘मैने काफी सोच समझकर यह फैसला लिया है. मैं सम्मान का अपमान करने इवालों में से नहीं हूं. लेकिन हमें पता है कि सम्मान के साथ जिम्मेदारी भी आती है. मैं यह सुनिश्चित करने के लिए सम्मान वापस कर रहा हूं कि जिन मूल्यों के साथ मैने क्रिकेट खेली है, वे मेरे संन्यास लेने के चार दशक बाद भी जस के तस हैं.’
उन्होंने कहा कि वह कभी जेटली की कार्यशैली के मुरीद नहीं रहे और हमेशा उन फैसलों का विरोध किया जो उन्हें सही नहीं लगे. उन्होंने कहा, ‘डीडीसीए का कामकाज चलाने के लिए जिस तरह से वह लोगों को चुनते थे, उसे लेकर मेरा ऐतराज सभी को पता है. मैं एक बार उनके घर पर हुई एक बैठक से बाहर निकल आया था क्योंकि वह बदतमीजी कर रहे एक शख्स को बाहर का रास्ता नहीं दिखा सके थे.’
बेदी ने कहा, ‘मैं इस मामले में बहुत सख्त हूं. शायद काफी पुराने ख्याल का. लेकिन मैं भारतीय क्रिकेटर होने पर इतना फख्र रखता हूं कि चापलूसों से भरे अरुण जेटली के दरबार में हाजिरी लगाना जरूरी नहीं समझता था.’
उन्होंने कहा,‘फिरोजशाह कोटला मैदान का नाम आनन फानन में दिवंगत अरुण जेटली के नाम पर रख दिया गया जो गलत था लेकिन मुझे लगा कि कभी तो सदबुद्धि आएगी. लेकिन मैं गलत था. अब मैने सुना कि कोटला पर अरुण जेटली की मूर्ति लगा रहे हैं. मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता.’
उन्होंने कहा कि दिवंगत जेटली मूल रूप से नेता थे और संसद को उनकी यादों को संजोना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘नाकामी का जश्न स्मृति चिन्हों और पुतलों से नहीं मनाते. उन्हें भूल जाना होता है.’
बेदी ने कहा, ‘आपके आसपास घिरे लोग आपको नहीं बताएंगे कि लॉडर्स पर डब्ल्यू जी ग्रेस, ओवल पर सर जैक हॉब्स, सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर सर डॉन ब्रेडमैन, बारबाडोस में सर गैरी सोबर्स और मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर शेन वॉर्न की प्रतिमाएं लगी हैं.’ उन्होंने कहा,‘खेल के मैदान पर खेलों से जुड़े रोल मॉडल रहने चाहिए. प्रशासकों की जगह शीशे के उनके केबिन में ही है. डीडीसीए यह वैश्विक संस्कृति को नहीं समझता तो मैं इससे परे रहना ही ठीक समझता हूं. मैं ऐसे स्टेडियम का हिस्सा नहीं रहना चाहता जिसकी प्राथमिकताएं ही गलत हो. जहां प्रशासकों को क्रिकेटरों से ऊपर रखा जाता हो. कृपया मेरा नाम तुरंत प्रभाव से हटा दें.’