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गैरों पे करम अपनों पे सितम…

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

साहिर लुधियानवी का लोकप्रिय गीत है, “गैरो पे करम अपनो पे सितम।” आज विपक्ष के बयानों से यह लाइन चरितार्थ हो रही है। कांग्रेस शीर्ष नेता के बयान दुश्मन चीन का मनोबल बढ़ाने वाले है। उनका हमला भारत के प्रधानमंत्री पर है। चीन में राहुल गांधी के बयान सुर्खियों में है।

वहां इनके हवाले से कहा जा रहा है कि भारत के प्रधानमंत्री डर गए, भाग गए, चीन को जमीन सौप दी, अपने सेना को धोखा दे रहे है आदि। मतलब साफ है, राहुल गांधी गैरों पे करम अपनों पे सितम कर रहे है। किसान आंदोलन के संदर्भ में भी यही लाइन है। विदेशी पॉप सिंगर रिहाना, ग्रेटा थनबर्ग मिया खलीफा पर खूब करम है,भारत के रत्नों पर सितम हो रहा है।

लता मंगेशकर ने इसे स्वर देकर अमर बना दिया था। उन्होंने कभी सोचा नहीं होगा कि एक दिन महाराष्ट्र की सरकार उनके ट्वीट की जांच कराएगी। जांच भी किसलिए,क्योंकि लता मंगेशकर को कुछ विदेशियों के भारत पर ट्वीट नागवार लगे थे। विडम्बना देखिए जांच कराने वाले लोग विदेशियों पर तो करम कर रहे है। उनसे इन्हें कोई शिकायत नहीं। लेकिन अपने देश के रत्नों पर उनका सितम है। इसी प्रकार सचिन तेंदुलकर ने भारत रत्न मिलते समय सरकार के ऐसे सितम की कल्पना नहीं रही होगी। जबकि इन्होंने राजनीति या किसानों के नाम पर चल रहे आंदोलन के विषय में कुछ कहा भी नहीं था। इनकी आपत्ति इस आंदोलन पर विदेशियों के हस्तक्षेप को लेकर थी। इन्होंने उसी की प्रतिक्रिया स्वरूप ही ट्वीट किए थे। इस प्रकार लता मंगेशकर सचिन तेंदुलकर अक्षय कुमार विराट कोहली जैसे अनेक दिग्गजों ने राष्ट्रीय भावना को ही अभिव्यक्त किया था।

इनका केवल यही कहना था कि भारत अपनी यहां की समस्याओं के समाधान में सक्षम है। किसी विदेशी को इसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। बेहतर तो यही होता कि आंदोलन के नेता और उन्हें समर्थन देने वाले दल सभी एकजुट होकर राष्ट्रीय भावना के साथ रहते। लेकिन इनमें से किसी ने भी विदेशियों के ट्वीट पर आपत्ति तक व्यक्त नहीं की। नरेंद्र मोदी का विरोध करना तो ठीक है। लेकिन इसकी भी एक सीमा होनी चाहिए। भारत के आंतरिक मसलों पर विदेशियों के विचार केवल अस्वीकार्य ही नहीं होने चाहिए,बल्कि इनकी कड़े शब्दों में निंदा भी होनी चाहिए। लेकिन कांग्रेस व उसकी सहयोगी एनसीपी इस मर्यादा का अतिक्रमण कर रहे है। मुख्यमंत्री पद की चाहत में शिवसेना भी उसी स्तर पर उतर चुकी है। कंगना रनौत, अक्षय कुमार,अजय देवगन,एकता कपूर, विराट कोहली सहित अनेक हस्तियों ने देश को बांटने वाली साजिशों से लोगों को दूर रहने की सलाह दी है। इन्हीं में दो भारत रत्न शामिल है।

भारत रत्न सचिन तेंदुलकर ने किसी का नाम भी नहीं लिया। उन्होंने देशवासियों से एक देश के तौर पर एकजुट रहने की भी अपील की। कहा कि भारत की संप्रभुता के साथ समझौता नहीं कर सकते। विदेशी ताकतें सिर्फ देख सकती हैं लेकिन हिस्सा नहीं ले सकतीं। भारत को भारतीय जानते हैं और भारत के लिए फैसला भारतीयों को ही लेना चाहिए। आइए एक राष्ट्र के तौर पर एकजुट रहें। वस्तुतः सचिन ने जो कहा वह राष्ट्रीय सहमति का ही विषय है। भारत रत्न लता मंगेशकर ने कहा कि भारत गौरवशाली राष्ट्र है और हम सभी भारतीय अपना सिर ऊंचा कर खड़े हैं। एक अभिमानी भारतीय के नाते मुझे विश्वास है कि हम किसी भी मुद्दे और हथकंडे का एक देश के रूप में सामना कर सकते हैं। हम इन मुद्दों को अपने लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने में सक्षम हैं।

जाहिर है कि इन सभी हस्तियों ने किसान आंदोलन या राजनीति पर कोई टिपण्णी नहीं की थी। इन्होंने तो विदेशियों को भारत की सम्प्रभुता व सामर्थ्य याद दिलाया था। जिसके अनुसार भारत स्वयं निर्णय करेगा। गैरों का इससे कोई मतलब नहीं है। लेकिन विरोध इस निचले व नकारात्मक स्तर पर पहुंच चुका है,जहाँ से राष्ट्रीय स्वाभिमान भी दिखाई नहीं दे रहा है। जो राष्ट्रीय स्वाभिमान की बात कर रहा है,उस पर सितम हो रहे है।

असहिष्णु विरोध का यह घृणित उदाहरण है। भारतीय विदेश मंत्रालय के आधिकारिक बयान में भी विदेशियों को हिदायत दी गई। कहा गया कि भारत की संसद ने पूरी चर्चा और विचार विमर्श के बाद सुधारवादी कृषि कानून पारित किया है। यह सुधार किसानों के बड़ा बाजार और सुविधाएं उपलब्ध कराएगा। भारत के कुछ हिस्सों के किसानों के बहुत छोटे से हिस्से को इन सुधारों पर शक है। इस आंदोलन पर कुछ ग्रुप अपना मुद्दा आगे लाकर इन्हें भटकाने की कोशिश कर रहे हैं। यह बयान भी वास्तविकता को उजागर करने वाला है।

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