मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में श्रीलंका सोमवार को जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में एक मुश्किल प्रस्ताव का सामना करेगा।
प्रस्ताव में जाफना प्रायद्वीप में लिट्टे के खिलाफ कार्रवाई के पीडि़तों को न्याय न मिलने और उनका पुनर्वास न कर पाने में सरकार की विफलता का उल्लेख होगा।
श्रीलंका ने लिट्टे के खिलाफ 2009 में कार्रवाई की थी जिसमें बड़ी संख्या में निर्दोष तमिल नागरिक भी मारे गए थे। इस प्रस्ताव में श्रीलंका का साथ देने का रूस, चीन, पाकिस्तान और कई मुस्लिम देशों ने वादा किया है लेकिन श्रीलंका सरकार भारत का समर्थन भी चाहती है।
श्रीलंका के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की संस्था में लगातार तीन प्रस्ताव पारित हो चुके हैं। ये प्रस्ताव महिंद्रा राजपक्षे के राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान 2012 और 2014 में पारित हुए थे।
महिंद्रा इस समय प्रधानमंत्री पद पर हैं जबकि उनके छोटे भाई गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति की कुर्सी पर। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों के अनुसार सोमवार को सत्र में पेश होने वाले प्रस्ताव के जरिये श्रीलंका सरकार की जवाबदेही तय हो सकती है।
श्रीलंका के विदेश मंत्री दिनेश गुणवर्द्धने ने कहा है कि पूरा मामला राजनीति से प्रेरित है और इसके पीछे ब्रिटेन है। श्रीलंका अपने कार्यक्रम मानवाधिकारों का पालन करते हुए आगे बढ़ा रहा है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को हमारे साथ सहयोग करना चाहिए।
वहीँ संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार मामलों की उच्चायुक्त मिशेल बैचलेट ने कहा है कि श्रीलंका में बीते 12 वर्षो में सरकार के उठाए सारे कदम विफल साबित हुए हैं। सरकारें जिम्मेदारी तय कर पाने में विफल रही हैं।
तमिल पार्टियों ने किया प्रस्ताव के समर्थन का अनुरोध
इधर तमिलनाडु में बड़ा जनाधार रखने वाले राजनीतिक दलों- द्रमुक, एमडीएमके और पीएमके ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रस्ताव का समर्थन करने का अनुरोध किया है।