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आजादी के बाद भी मेरठ के इस गांव में नहीं मना दशहरा

क्रांति की कहानियों का जिक्र इतिहास के पन्नों में समय के बोझ के साथ दब गया है। आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर क्रांतिवीरों की कुर्बानी को याद किया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश के मेरठ के कण-कण में आजादी की गौरवगाथाएं रची-बसी हुई हैं। इसी मेरठ के पांचली खुर्द गांव में 1857 की क्रांति का एक बीज बोया गया था, जिस पर देश में आजादी की लड़ाई की नींव पड़ी थी। इन क्रांति की कहानियों का जिक्र इतिहास के पन्नों में समय के बोझ के साथ दब गया है। आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर इन क्रांतिवीरों की कुर्बानी को याद किया जा रहा है।

1857 की क्रांति में लाशों से भर गए थे कुएं-तालाब, कहानी सुना रो पड़े बुजुर्ग

पांचली खुर्द में आजादी के बाद से दशहरा नहीं मनाया जाता है। अंग्रेजों के जुल्मों सितम की कहानियां याद करते हुए यहां के बुजुर्गों की आंखों में आंसू तैर जाते हैं। क्रांतिवीर कोतवाल धन सिंह की सातवीं पीढ़ी के वंशज वीरे महेंद्र सिंह ने एक अखबार से बातचीत में उस दर्द को बयां किया जो उनकी सातवीं पीढ़ी तक महसूस करती है। वह बताते हैं कि अप्रैल 1857 की घटना है। एक बगीचे में पहुंचे दो अंग्रेज और एक मेम का वहां मौजूद तीन किसानों मंगत, नरपत और झज्जड़ से विवाद हो गया।

विवाद बढ़ते बढ़ते स्थिति हाथापाई तक पहुंच गई। किसानों ने एक अंग्रेज और मेम को पकड़ लिया जबकि दूसरा अंग्रेज भागने में कामयाब रहा। कुछ देर बाद वह दो दर्जन से अधिक सिपाहियों के साथ लौटा। उसने तीनों किसानों को पूरे गांव में ढूंढा, जब वह नहीं मिले तो ऐलान किया गया कि अगर गांव के मुखिया बागी किसानों को अंग्रेजों को नहीं सौंपते हैं तो पूरे गांव को इसकी सजा मिलेगी। उस वक्त गांव के मुखिया कोतवाल धन सिंह हुआ करते थे।

वह बताते हैं कि सजा का ऐलान होने पर दो किसानों ने आत्मसमर्पण कर दिया, जबकि मंगत फरार रहे। दोनों किसानों पर पहले कोड़े बरसाए गए फिर उन्हें उन्हीं की जमीन से बेदखल कर दिया गया और फरार मंगत के परिवार के तीन सदस्यों को फांसी पर लटका दिया। अंग्रेजों के इस जुल्म से गांव वालों में बगावत का बिगुल फूट गया। गांव के बच्चे-बच्चे तक का खून अंग्रेजों से बदला लेने के लिए उबाल मारने लगा। जिसके बाद धनसिंह की अगुवाई में बगावत की योजना बनाई गई।

उनके परिवार के लोग बताते हैं कि कोतवाल सिंह की अगुवाई में गांव वालों ने 10 मई को मेरठ में एक जेल को तोड़ कर वहां बंद 836 कैदियों को रिहा करा दिया। यह सभी कैदी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने के आरोप में बंद थे। इस घटना ने ब्रिटिशर्स को बुरी तरह झकझोर दिया, उन्होंने पांचली पर हमला कर दिया और यहां के किसानों को पूरी तरह से खत्म कर दिया।

4 जुलाई को अंग्रेजों की एक सैन्य टुकड़ी ने पूरे गांव को तोप से उड़ा दिया। मरने वालों की संख्या इतनी हो गई थी कि दो कुएं और एक तालाब लाशों के ढेर के आगे कम पड़ गए। इसके अलावा कार्रवाई के दौरान 46 किसानों को कैद कर लिया गया था, उनमें से 40 को बाद में फांसी दे दी गई थी। 9 लोगों को दशहरे के दिन ही फांसी दी गई थी, जिसके बाद से इस गांव में कभी दशहरा नहीं मनाया जाता है।

मुट्ठी भर किसानों ने पूरी अंग्रेजी हुकुमत को हिला कर रख दिया था। अंग्रेजों की इस कायराना हरकत के कारण उनके खिलाफ लोगों को गुस्सा तेजी से बढ़ा। गांव के लोग बताते हैं कि 1857 क्रांति के दौरान जो अंग्रेज मारे गए थे, उनकी कब्रें आज भी मेरठ में हैं, उन अंग्रेजों के परिवार वाले और कुछ शोधार्थी वहां आते हैं। ब्रिटिश हाईकमान की तरफ से सभी को क्रांतिकारियों के गांव से दूर रहने की एडवाइजरी जारी की गई है।

  दया शंकर चौधरी

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