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विधान परिषद : योगी सरकार की चुनौतियाँ

इस समय प्राथमिकता में योगी मंत्रिपरिषद के वह सदस्य है, जो या तो किसी सदन के सदस्य नहीं है या अगले कुछ समय में किसी नहीं रहेंगे। इनको विधान परिषद में भेजा जा सकता है। इसके अलावा भाजपा के पराजित नेता व दूसरे दलों को छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए नेता भी लाइन में है।

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

सत्तारूढ़ दल में दावेदारों का समायोजन चुनौती पूर्ण होता है। पदों की संख्या सीमित होती है। दावेदार बेशुमार होते हैं। परिवार आधारित पार्टियों में निर्णय एक केंद्र से होता है। भाजपा को कई स्तरों पर मंथन करना होता है। मई से लेकर जुलाई तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद सीटें रिक्त होनी हैं। विधानसभा में भाजपा बहुमत है। विधयकों द्वारा निर्वाचित सदस्यों में उसका पडला भारी रहेगा।

इसी प्रकार राज्यपाल द्वारा नियुक्त सदस्यों में भी उसका कब्जा रहेगा। संविधान के अनुसार एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष में रिटायर होते है। स्थानीय निकाय व विधयकों द्वारा अलग अलग एक तिहाई,स्नातक व शिक्षकों द्वारा अलग अलग 1/12 व 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते है।

इस समय प्राथमिकता में योगी मंत्रिपरिषद के वह सदस्य है, जो या तो किसी सदन के सदस्य नहीं है या अगले कुछ समय में किसी नहीं रहेंगे। इनको विधान परिषद में भेजा जा सकता है। इसके अलावा भाजपा के पराजित नेता व दूसरे दलों को छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए नेता भी लाइन में है। सपा सरकार के दौरान, तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक को विधान परिषद में मनोनय हेतु सरकार ने सूची भेजी थी। इसके जबाब में राम नाईक ने संविधान का हवाला दिया था। उनका कहना था कि साहित्य, कला, सहकारिता व समाज सेवा के लोगों की ही नियुक्ति बाध्यता है। देखना होगा कि वर्तमान सरकार इस पर कितना अमल करती है।

इसके साथ ही स्वामी प्रसाद मौर्य प्रकरण को भी ध्यान में रखना चाहिए। वह पांच वर्ष तक मंत्री रहे ,चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद भाजपा पर हमला बोलते हुए अलग हो गया। विधान परिषद सदस्य का कार्यकाल छह वर्ष होता है। भाजपा को इस संबन्ध में भी विश्वसनीय लोगों को ही अवसर देना चाहिए।

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