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टीबी का इलाज पूरा नहीं करने वालों की संख्या घटी, जनपदवासियों में बढ़ रही जागरूकता

  • विभागीय टीम नियमित करती है मरीज का फालोअप

कानपुर। जनपद में क्षय रोग यानी टीबी (TB) का इलाज नहीं पूरा करने वालों का साल-दर-साल ग्राफ घट रहा है। इसके पीछे जहां लोगों के बीच जागरूकता बढ़ने की हकीकत दिख रही है वहीं विभाग के प्रयास का भी असर है। दवा का कोर्स बीच में छोड़ देने से यह बीमारी आगे लिए और अधिक घटक हो जाती है। अब विभाग का प्रयास है कि इस आंकड़े को शून्य कैसे किया जाए।

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जिला क्षयरोग अधिकारी डॉ एपी मिश्रा के अनुसार वर्ष 2019 में 579 क्षयरोगियों ने टीबी का इलाज पूरा नहीं किया था वहीं 2020 में 287, वर्ष 2021 में 236 और वर्ष 2022 में कुल 201 क्षयरोगियों ने इलाज बीच में छोड़ दिया था। अब इसके लिए खास प्रयास किया जा रहा है कि आगे इस आंकड़े को कैसे शून्य किया जाय। उन्होंने बताया कि टीबी की जांच और इलाज सब निशुल्क है फिर भी कुछ रोगी निजी कारणों से इलाज बीच में छोड़ जाते हैं। हालांकि टीबी अस्पताल के कर्मचारी इन लोगों का फॉलोअप करते हैं। जो मरीज पुन: दवा लेने नहीं आए, टीबी अस्पताल के कर्मचारियों को उनके घर भेजा जाता है। उन्हें दवा का पूरा कोर्स करने के लिए समझाया जाता है।

टीबी

जिला कार्यक्रम समन्वयक राजीव सक्सेना बताया कि टीबी का इलाज छोड़ने का मुख्य कारण है शुरूआती महीनों में आराम मिल जाना और रोजगार के लिये एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र चले जाना। विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा की जब टीबी मरीज इलाज शुरू करता है तो कुछ दिन या महीने दवा खाने से जैसे ही राहत महसूस होती है उन्हें लगने लगता की अब तो काफी आराम है और दवा बेवजह क्यों खानी। इसी ग़लतफहमी में वो दवा का कोर्स पूरा नहीं करते। इसके अलावा रोजगार या आजीविका के बेहतर अवसर मिलने पर कुछ क्षयरोगी स्थानांतरित हो जाते हैं और इलाज पूरा नहीं करते। राजीव ने बताया की इलाज किसी भी परिस्थिति में छोड़ना घातक है।

उन्होंने बताया की ऐसे मरीजों का पता लगाने के लिए एएनएम और आशा कार्य कर रही है। मरीज का पता कर दवा शुरू करने के लिए आशा को प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। साथ ही सरकारी और निजी अस्पताल में टीबी के मरीज का पता लगाने पर रिकॉर्ड के लिए आनलाइन दर्ज भी किया जाता है। साथ ही जिस क्षेत्र , शहर या प्रदेश में क्षयरोगी बिना इलाज पूरा किये ही चला जाता है वहां के क्षयरोग इकाई को निक्षय पोर्टल के माध्यम से सूचना दे दी जाती है। उनका कहना है कि इन्हीं सब जागरूकता के चलते टीबी की दवा नहीं पूरा करने वाले मरीजों का ग्राफ कम हो रहा है।

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उन्होंने जनपदवासियों से अपील की कि अगर आप एक क्षयरोगी हैं तो इसका पूर्ण इलाज करें क्यूंकि इलाज आधा अधूरा करने की दशा में आप खुद के साथ अपने परिवार को भी इस बीमारी की चपेट में ला सकते हैं। जब आप स्वयं स्वस्थ रहेंगे तभी अच्छे ढंग से अपने और अपने परिवार का भरण पोषण कर पायेंगे।

दवा छोड़ना क्यों घातक

जिला क्षयरोग अधिकारी बताते हैं कि टीबी संक्रामक रोग है। यह एक मरीज से दूसरे इंसान के शरीर में आसानी से प्रवेश हो जाता है, इसलिए हर मरीज को टीबी मुक्त करना बेहद जरूरी हो जाता है। जो मरीज इलाज पूरा न करवाते उन पर दवा का रजिस्टेंट बन जाता है। इसके बाद यदि दवा का कोर्स शुरू भी कर दें तो इसका असर कम हो जाता है। छह से आठ महीने तक दवा खाना जरूरी है।

टीबी

लोग अक्सर खांसी को हल्के में ले लेते हैं। दो हफ्तों या इससे अधिक समय तक लगातार खांसी होना टीबी के लक्षण हैं। शुरू में सूखी खांसी होती है लेकिन बाद में खांसी में बलगम के साथ खून भी निकलता है। इसके बाद सांस संबंधी समस्या आने लगती है। वास्तव में ज्यादातर टीबी मरीजों को यह पता ही नहीं होता कि उनको टीबी हो चुकी है। खांसी की दवाएं खाकर कुछ राहत महसूस कर लेते हैं लेकिन बाद में उनकी जान पर बन जाती है।

यह भी जानें

टीबी रोग एक बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है। इसे फेफड़ों का रोग माना जाता है, लेकिन यह फेफड़ों से रक्त प्रवाह के साथ शरीर के अन्य भागों में भी फैल सकता है। रोग सांस के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं। किसी रोगी के खांसने, बात करने, छींकने या थूकने के समय बलगम और थूक की बहुत ही छोटी-छोटी बूंदें हवा में फैल जाती हैं। जिनमें उपस्थित बैक्टीरिया कई घंटों तक हवा में रह सकते हैं और स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में सांस लेते समय प्रवेश करके रोग पैदा करते हैं। औद्योगीकरण और तंग रहन-सहन भी टीबी का कारण माना जा रहा है।

कैसे बचें

. दो हफ्ते से ज्यादा खांसी होने पर डॉक्टर को दिखाएं। दवा का पूरा कोर्स लें
. मरीज हवादार और अच्छी रोशनी वाले कमरे में रहे। साथ ही एसी से परहेज करे
. पौष्टिक खाना खाए, एक्सरसाइज और योग करें
. बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, तंबाकू, शराब आदि से परहेज करें
. भीड़-भाड़ वाली और गंदी जगहों पर जाने से बचें
. बच्चे के जन्म पर बीसीजी का टीका लगवाएं

रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर

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