विपक्षी एकजुटता की कवायद के बीच भाजपा भी अपनी चुनावी रणनीति को धार देने में पीछे नहीं है। उसने साल भर पहले से ही हारी हुई और कमजोर लगभग 160 सीटों के लिए बड़ी तैयारी कर दी थी। इसके अलावा जीती हुई लगभग तीन सौ सीटों को भी बरकरार रखने के लिए कोई कोरकसर नहीं छोड़ेगी।
इसमें कई जगह बदलाव व नए समीकरणों को भी भाजपा अपनाएगी। पुराने साथियों के जाने और नए के जुड़ने से भी कई सीटों पर तो असर पड़ेगा, लेकिन पार्टी का मानना है कि संख्या में बहुत ज्यादा अंतर आने की संभावना कम है।
ऐसे में भाजपा के पास अपनी 301 और एनडीए के साथ लगभग 329 सीटें हैं। राज्यवार स्थिति में विपक्ष की एकता और संभावित चुनावी रणनीति को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने पहले से ही अपनी तैयारी शुरू कर दी थी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि विपक्षी एकता की इस मुहिम से ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। इससे कहीं सीटें कम हो सकती हैं, तो कहीं बढ़ेगी भी।
वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष के पास कोई चेहरा नहीं है। उनके पास अपने मतभेद हैं और अलग अलग राज्य में अपने टकराव भी। ऐसे में कितना तालमेल होगा, तय नहीं हैं। भाजपा के एक प्रमुख नेता ने कहा है कि विपक्षी दलों के पास सरकार या विकास के लिए कोई एजेंडा नहीं है, बस मोदी को हराकर सत्ता हासिल करना है, इसे भी जनता देख रही है।
पटना में विपक्षी एकता में जुटे 15 दलों के पास लोकसभा की लगभग 136 सीटें हैं। इनमें कांग्रेस के पास 49 सीटें हैं। अन्य दलों में जद (यू) के पास 16, तृणमूल कांग्रेस के पास 23, द्रमुक के पास 24, शिवसेना (यू) के पास छह, राकांपा के पास पांच, जेएमएम के पास एक, नेशनल कांफ्रेंस के पास तीन, आप के पास एक, सीपीआई के पास दो, सपा के पास तीन व सीपीएम के पास तीन सीटें हैं।
जबकि विपक्ष के इस खेमें से दूर खड़े बीजद-12, वायएसआरसीपी-22, बीआरएस-9, अकाली दल-2, बसपा-9, तेलुगुदेशम-3, मुस्लिम लीग-तीन, एआईएमएईएम-2, एआईयूडीएफ-1, जद एस-1, केरला कांग्रेस-1, आरएलपी-एक, आरएसपी-एक, एसएडी मान-एक के पास 68 सीटें हैं।