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तो क्या अखिलेश यादव के इस समीकरण की काट के लिए मोहन यादव को लाई BJP?

लोकसभा चुनाव से पहले सियासी बिसात बिछनी शुरू हो गई है। इसकी झलक पांच राज्यों में हुए आम चुनाव में भी मिल गई। बीजेपी ने तीन राज्यों में सरकार बनाई जहां उसने मध्य प्रदेश में मोहन यादव को सीएम बनाकर यूपी और बिहार में बड़ा मैसेज देने की कोशिश की है।

तो क्या अखिलेश यादव के इस समीकरण की काट के लिए मोहन यादव को लाई BJP?

हालांकि सपा नेताओं का दावा है कि बीजेपी को यह महसूस हो रहा है कि 2024 में उसकी जमीन खिसक रही है इसलिए बौखलाहट में मोहन यादव को सीएम बनाकर हिन्दी पट्‌टी में एक संदेश देकर अपने संभावित नुकसान को कम करने में लगी है।

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दरअसल, कुछ महीने बाद ही 2024 के लोकसभा चुनाव होने हैं। इसको देखते हुए बीजेपी ने यह दांव चला है। वह यादवों को लुभाने की कोशिश कर रही है। यूपी में यादव समाज को बड़े पैमाने पर दिवंगत मुलायम सिंह यादव के समर्थकों के रूप में देखा जाता है। यूपी में समाजवादी पार्टी और बिहार में बीमार लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल – दोनों पार्टियों का नेतृत्व अब उनके बेटे अखिलेश और तेजस्वी कर रहे हैं।

लोकसभा में 120 सांसद भेजने वाले इन दोनों राज्यों में भाजपा की राजनीति काफी हद तक गैर-यादव ओबीसी को लुभाने पर केंद्रित रही है। मोहन का यूपी से गहरा नाता है क्योंकि उनकी पत्नी सीमा यूपी के सुल्तानपुर से हैं।

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सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या बीजेपी के इस कदम से सपा को नुकसान होगा जो 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में लगातार हार के साथ-साथ आज़मगढ़ जैसे प्रमुख लोकसभा क्षेत्रों की हार के बावजूद यादवों को एक वफादार वोट बैंक के रूप में देखती रही है जिसे सपा अपना गढ़ मानती थी। सपा के राष्ट्रीय सचिव और वरिष्ठ नेता राजीव राय ने वनइंडिया से बातचीत में कहा कि,

मोहन यादव सीएम तो बना दिए गए हैं लेकिन क्या वो अपनी मर्जी से फैसले लेने के लिए स्वतंत्र होंगे ये बड़ा सवाल है। मुझे लगता है कि वो एक कठपुतली सीएम की तरही ही काम करेंगे जिसकी रिमोट कंट्रोल कहीं और होगा। ऐसे लोग क्या सपा के लिए चिंता का सबब बन सकते हैं? क्या इनमें इतना साहस है कि वह खुलकर सामने आकर जाति जनगणना पर बोल पाएंगे।

सपा के नेताओं का दावा है कि जातिय जनगणना के मुद्दे ने जिस तरह से जोर पकड़ना शुरू किया है उससे बीजेपी मोहन यादव को सीएम बनाने पर मजबूर हुई है। सपा के चीफ अखिलेश यादव की लोकप्रियता उनकी जाति के आधार पर नहीं बल्कि उनके सामाजिक नीतियों की वजह से है जिसको उन्होंने यूपी का सीएम रहते हुए 2012 से 2017 के बीच आगे बढ़ाया। इससे पहले उनके पिता और यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी लीगेसी को आगे बढ़ाने का काम किया था। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह वन इंडिया से बातचीत में कहा कि,

मोहन यादव का जुड़ाव यूपी से है। सुल्तानपुर में उनकी ससुराल है। इसका फायदा निश्चिततौर पर बीजेपी उठाना चाहेगी। दरअसल बीजेपी केवल यादवों को ही नहीं सभी को यह मैसेज देने का प्रयास कर रही है कि यदि आप निष्ठा भाव से संगठन से जुड़े हैं तो आज नहीं तो कल इसका इनाम आपको मिलेगा।

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सपा के रणनीतिकारों का मानना है कि जिस तरह से सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने पीडीए और जातिय जनगणना के मुद्दे पर बीजेपी को घेरना शुरू किया था उसी का परिणाम है कि बीजेपी ने बौखालहट में मोहन यादव को सीएम बनाने का कदम उठाया है। क्योंकि उनको पता है कि 2024 में उनकी जमीन पूरी तरह से खिसकने वाली है। इसी डर से वह हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं ताकि यूपी और बिहार में अपनी जमीन बचा सकें।

हालांकि, बीजेपी के इस दांव को लेकर सबकी सोच अलग-अलग है। सपा के अलावा सीपीआई (एम) के राज्य सचिव हीरा लाल यादव ने कहा कि एमपी में मोहन यादव को सीएम बनाना सिर्फ एक दिखावा है और इससे ज्यादा कुछ नहीं है। यूपी-बिहार में एक सियासी संदेश देने के लिए यह कदम उठाया गया है। कुछ महीने पहले ही आपने देखा होगा कि घोषी में उपचुनाव हुआ और वहां INDIA गठबंधन ने बीजेपी को हराने का काम किया। बीजेपी का यह कदम उनकी हताशा और निराशा का परिणाम है। सपा के इन दावों को बीजेपी पूरी तरह से खारिज कर रही है। बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता अवनीश त्यागी ने कहा कि,

बीजेपी की डबल इंजन सरकार ने जनता के लिए जो काम किया है उसी का परिणाम है कि जनता ने तीन राज्यों में बीजेपी को पुर्णबहुमत की सरकार बनाने का जनादेश दिया है। एक कहावत है कि खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। इनके पास कहने और करने के लिए कुछ नहीं बचा है। आप देखिएगा कि 2024 में पीएम मोदी की गारंटी पूरे देश में चलेगी और विपक्ष का सूपड़ा साफ हो जाएगा।

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