Breaking News

महर्षि वाल्मीकि जयंती: रामायण की रचना कर हर किसी को सद्‍मार्ग पर चलने की दिखाई राह

आज रामायण ग्रंथ के महर्षि बाल्मीकि जयंती (Maharishi Valmiki Jayanti) है। महर्षि वाल्मीकि को प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणी में प्रमुख स्थान प्राप्त है। वह संस्कृत भाषा के आदि कवि और हिन्दुओं के आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हैं।

स्पीड 100KM…ट्रेलर से दूरी 30-40 मीटर, टक्कर इतनी तेज थी कि एयरबैग फट गया, ऐसा था मंजर

महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण (आदित्य) से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे। वरुण का एक नाम प्रचेत भी है। इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित किया जाता है। उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे।

महर्षि वाल्मीकि जयंती : रामायण की रचना कर हर किसी को सद्‍मार्ग पर चलने की दिखाई राह

कहा जाता है कि एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना घर बनाकर ढंक लिया था। साधना पूरी करके जब वह दीमकों के घर से बाहर निकले। उसके बाद उन्हें वाल्मीकि कहा जाने लगा। लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।

एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन हेतु लोगों को लूटा करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले, तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया। तब नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि- तुम यह निम्न कार्य किसलिए करते हो। इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया कि अपने परिवार को पालने के लिए करता हूं।

Please watch this video also

इस पर नारद ने प्रश्न किया कि तुम जो भी अपराध करते हो और जिस परिवार के पालन के लिए तुम इतने अपराध करते हो, क्या वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार होंगे। इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए रत्नाकर, नारद को पेड़ से बांधकर अपने घर गए। वहां जाकर वह यह जानकर स्तब्ध रह गए कि परिवार का कोई भी व्यक्ति उसके पाप का भागीदार बनने को तैयार नहीं है। लौटकर उन्होंने नारद के चरण पकड़ लिए।

महर्षि वाल्मीकि जयंती : रामायण की रचना कर हर किसी को सद्‍मार्ग पर चलने की दिखाई राह

तब नारद मुनि ने कहा कि- हे रत्नाकर, यदि तुम्हारे परिवार वाले इस कार्य में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों उनके लिए यह पाप करते हो। इस तरह नारद जी ने इन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया और उन्हें राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया था, परंतु वह ‘राम’ नाम का उच्चारण नहीं कर पाते थे। तब नारद जी ने विचार करके उनसे मरा-मरा जपने के लिए कहा और मरा रटते-रटते यही ‘राम’ हो गया और निरंतर जप करते-करते हुए वह ऋषि वाल्मीकि बन गए।

महर्षि वाल्मीकि की जयंती को श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर शोभायात्राओं का आयोजन भी होता है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित पावन ग्रंथ रामायण में प्रेम, त्याग, तप व यश की भावनाओं को महत्व दिया गया है। वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना करके हर किसी को सद्‍मार्ग पर चलने की राह दिखाई।

Please watch this video also 

इस अवसर पर वाल्मीकि मंदिर में पूजा अर्चना भी की जाती है तथा शोभायात्रा के दौरान मार्ग में जगह-जगह के लोग इसमें बडे़ उत्साह के साथ भाग लेते हैं। झांकियों के आगे उत्साही युवक झूम-झूम कर महर्षि वाल्मीकि के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। इस अवसर पर उनके जीवन पर आधारित झांकियां निकाली जाती हैं व राम भजन होता है। महर्षि वाल्मीकि को याद करते हुए महर्षि वाल्मीकि जयंती पर उनके चित्र पर माल्यार्पण करके उनको श्रद्धासुमन अर्पित किए जाते हैं। नोट – लेख पौराणिक कथाओं पर आधारित है।

रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह

About Samar Saleel

Check Also

एचजेबी लॉ हॉल में एलएचपीएल के 12वें संस्करण का भव्य उद्घाटन, टाइटन्स ने 1 विकेट से रोमांचक जीत हासिल की

लखनऊ विश्वविद्यालय के होमी जहांगीर भाभा लॉ हॉल में एलएचपीएल (लॉ हॉल प्रीमियर लीग) के ...