लखनऊ। राजधानी स्थित डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविधालय की शिक्षक डॉ अलका सिंह (Dr. Alka Singh) ने कहा है कि आदिवासी साहित्य (Tribal Literature) जड़, जंगल और जमीन से निकला हुआ मानवीय संवेदनाओं, धार्मिक और सांस्कृतिक संवादों का अनुष्ठान है। इसके गीत, कहानी और परंपराओं में भारतीय समाजिकता और मानवाधिकार के आदर्श मूल्यों का समायोजन है।
डॉ अलका सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग एवं तकनीकी संकाय में हो रही अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी “रिसेंट एडवांसेज इन एप्लाइड साइंसेज एंड ह्यूमैनिटीज इन इवोल्यूशन ऑफ़ इंजीनियरिंग ( राशी 2025)” के द्वितीय सत्र “ट्राइबल लिट्रेचर, विमेन एंड दलित लिट्रेचर” में अपने बीज व्याख्यान में भारत में उत्तर आधुनिक अंग्रेजी साहित्य के परिपेक्ष्य में आदिवासी साहित्य और सांस्कृतिक विमर्श पर चर्चा कर रही थी।
डॉ अलका सिंह ने हैबिटेट राइट्स एक्ट 2006 का जिक्र करते हुए “व्यक्ति” और “समूह” के अधिकारों को महत्वपूर्ण बताया। डॉ अलका सिंह ने कहा कि आदिवासी साहित्य सांस्कृतिक धरोहर है जो पारंपरिक भारतीय ज्ञान कोषों के समृद्ध संकलन है। डॉ अलका सिंह ने कहा कि आदिवासी साहित्य भारत की विविध सांस्कृतिक धरोहर और आदिवासी समुदायों की अनोखी परंपराएं और आदर्शों के दर्शन हैं। उत्तर आधुनिक अंग्रेजी साहित्य में आदिवासी साहित्य का प्रतिनिधित्व एक नए दृष्टिकोण से हो रहा है।
डॉ अलका सिंह ने मुंडा, बैगा, धनकुट, ज्वार, अंग आदि जातियों पर चर्चा करते हुए कहा कि आदिवासी साहित्य मानव जीवन के अस्तित्व और पारिस्थितिकीय समीकरण के संबंधों की भी उत्कृष्ट समझ है। आदिवासी साहित्य प्रकृति से निकले मानवीय संवेदनाओं, संस्थाओं और उसके अस्तित्व का ऐतिहासिक अनुभव है। सत्र में लखनऊ विश्वविद्यालय से डॉ सुमेधा द्विवेदी, डॉ पारुल, डॉ सव्यसाची, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय से डॉ नेहा अरोरा, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार के शिक्षक डॉ सरोज कुमार यादव, रक्षा विश्वविद्यालय से शिक्षक, और छात्रों ने सत्र में प्रतिभाग किया।