कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद से पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान की कुर्सी के लिए लगातार खतरे बढ़ते जा रहे हैं। लोग अब उनसे सवाल पूछ रहे हैं पहले केवल कश्मीर पर सवाल पूछ रहे थे अब चुनावी वादों पर भी पूछ रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि वह ‘नया पाकिस्तान’ आखिर कहां है जिसका वादा करके वह सत्ता में आए थे।
20 करोड़ पाकिस्तानियों पर 32,240 अरब रुपये का कर्ज
रिपोर्टों के मुताबिक, कंगाली की कगार पर खड़े पाकिस्तान में इमरान सरकार ने अपने 13 महीने के कार्यकाल में रिकार्ड कर्जा लिया है। इन्हीं 13 महीनों में देश के कुल कर्ज में 7509 अरब रुपये की बढ़ोत्तरी हुई है। आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2018 से अगस्त 2019 के बीच इमरान खान की सरकार ने विदेश से 2804 अरब रुपये जबकि घरेलू स्रोतों से 4705 अरब रुपये का कर्ज लिया है। कुल कर्जों की बात करें तो पाकिस्तान 32,240 अरब रुपये के कर्ज में डूबा हुआ है। यही नहीं इमरान खान की सरकार के आने के बाद तो इसमें 7508 अरब रुपये का इजाफा तक हो चुका है।
कटोरा लेने की आ जाएगी नौबत
सरकारें अपना अपना खजाना और कर्जों की भरपाई कर संग्रह की रकम से करती हैं लेकिन पाकिस्तान में मौजूदा वित्तीय वर्ष के पहले तीन महीने में सरकार का कर संग्रह 960 अरब रुपये रहा जो एक ट्रिलियन रुपये के लक्ष्य से कम है। पाकिस्तान में कारोबारियों की हालत बेहद खराब होने लगी है। पाकिस्तानी कारोबारियों ने सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा से मुलाकात करके सरकार द्वारा उचित कदम नहीं उठाए जाने की शिकायतें की है। कारोबारियों का कहना है कि सरकार ने जुबानी भरोसा दिलाने के अलावा कोई कदम नहीं उठाया है। यही आलम रहा तो उन्हें कटोरा लेने की नौबत आ जाएगी।
सेना मालामाल, जनता कंगाल
पाकिस्तानी सेना 50 कंपनियां चलाती है और इसके अधिकारी अनाज, कपड़े, सीमेंट, शुगर मिल, जूता निर्माण कार्य से लेकर एविएशन सर्विसेज, इंश्योरेंस और यहां तक की रिजॉर्ट चलाने और रियल एस्टेट का कारोबार कर रहे हैं। सेना के कारोबार की मार्केट वैल्यू 2016 में करीब 20 अरब डॉलर थी जो अब कई गुना ज्यादा बढ़ चुकी है। बीते पांच वर्षों में अकेले फौजी फाउंडेशन की परिसंपत्तियों और टर्नओवर में करीब 62 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं, आवाम फांकाकशी के लिए मजबूर है जबकि इमरान लोगों की आमदनी बढ़ाने के बजाए लंगर कार्यक्रम चलाने की बात कर रहे हैं।
कैसे चुकाएंगे अरबों डॉलर का कर्ज
असल में इमरान खान को देश को कर्जों से उबारने का कोई भी रास्ता सूझ नहीं रहा है। वह ‘ऋणं कृत्वा, घृतं पिबेत्’ यानी कर्ज लेकर कर्ज पाटने और सरकार चलाने की नीति पर काम कर रहे हैं। नतीजतन पाकिस्तान और कर्ज के दलदल में धंसता जा रहा है। आलम यह है कि बाहरी मुल्क भी अब पाकिस्तान को कर्ज देने से कतराने लगे हैं और इमरान खान आर्थिक मदद के लिए एकबार फिर चीन की शरण में हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान को जून 2022 तक चीन को 6.7 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है। वहीं अगले तीन साल में आईएमएफ को 2.8 अरब डॉलर के लोन की भरपाई भी करनी है। जबकि वास्तविकता यह है कि इमरान के पास इसके लिए कोई फुलप्रुफ प्लान है नहीं…