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अत्यन्त सावधानी से पढ़े महामृत्युंजय मंत्र में इस शब्द को, जानें कारण…

शिव हमारे आलोक हैं। शिव हमारे भूमंडल हैं। शिव प्रकृति स्वरूप हमारे स्तंभ हैं। भगवान शंकर हमको जीना और मरना सिखाते हैं। वह हमको बहुदेववाद की परिभाषा से दूर ले जाते हैं और कहते हैं ईश्वर एक है। उसका रंग, रूप और आकार नहीं है। एक ही रुद्र है। दूसरा कोई नहीं। एक ही परमात्मा की शरण में जाओ। उनका एक ही महामंत्र है… ओम। अ-अकार यानी मस्तिष्क। उ-उकार यानी उदर। म-मकार यानी मोक्ष। यह ओम ही सर्वव्यापक है। प्रणवाक्षर ही जीवनदायी है। शिव कर्म प्रधान हैं।

महाशिवरात्रि और ज्योतिर्लिंग-
महाशिवरात्रि अहोरात्रि है। शिवपुराण में प्रसंग है कि एक बार तीनों ही देवों में अपने अधिकार और सर्वश्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। कई मामलों में तुलना करने के बाद भी जब विवाद का कोई हल नहीं निकला तभी एक ज्योति फूटती है। यह निराकार ब्रह्म ज्योति थी। तुममें से कोई नहीं। मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूं। यही ज्योतिर्लिंग है। ‘एको हि रुद्रो’ अर्थात एक ही रुद्र है। मानव शरीर पंचभूत तत्वों से बना है। भूमि, गगन, वायु, अग्नि और जल। ये पांच तत्व ही रुद्र हैं। यानी जन्म से मोक्ष तक जो साथ-साथ हो, वही रुद्र है। वही शिव है।

भगवान का अर्थ भी यही है। भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, अ से अग्नि और न से नीर। संसार में श्रेष्ठ यानी शिवदायी कार्य करते हुए मोक्ष की कामना करने का नाम ही महाशिवरात्रि है। महाशिवरात्रि पर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने और रुद्राभिषेक का विधान है। ऋग्वेद का प्रसिद्ध और सिद्ध मंत्र है। सहज मंत्र ओम है तो सारी बाधाओं से मुक्ति का महामंत्र महामृत्युंजय मंत्र है। यह मृत संजीवनी है। मार्कण्डेय ऋषि को इसी मंत्र ने अल्पायु से जीवन संजीवनी दी थी। यमराज भी उनके द्वार से वापस चले गए थे।

‘त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥’
इस महामंत्र के अंतिम अक्षर माऽमृतात को सर्वाधिक सावधानी से पढ़ना चाहिए। जैसा अर्थ में भी स्पष्ट है- यह माऽमृतात केवल उसी स्थिति में पढ़ा जाएगा, जब मोक्ष नहीं मिल रहा हो। प्राण नहीं छूट रहे हों। आयु लगभग पूर्ण हो गई हो। मृत्यु की कामना निषेध है। जीवन की कामना करना अमृत है। लेकिन ऐसे भी क्षण आते हैं, जब आदमी मृत्युशैया पर पड़ा होता है, लेकिन परमात्मा से बुलावा नहीं आता। तब यह महामंत्र 33-33 बार तीन बार पढ़ा जाता है। जीवन में अमृत प्राप्ति, कष्टों व रोगों से मुक्ति और जीवन में धन-यश-सुख-शांति के लिए इसे माऽमृतात ( मा+ अमृतात) पढ़ा जाता है। जाप संख्या 108 है।

क्या है महामंत्र-
इस महामंत्र में 32 शब्द हैं। ‘ॐ’ लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे ‘त्रयस्त्रिशाक्षरी’ या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। मुनि वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात् शक्तियां परिभाषित की हैं। इस मंत्र में आठ वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य और एक वषट हैं। महामृत्युंजय के अलग-अलग मंत्र हैं। अपनी सुविधा के अनुसार जो भी मंत्र चाहें चुन लें और नित्य पाठ में या जरूरत के समय प्रयोग में लाएं। मंत्र निम्नलिखित हैं-

तांत्रिक बीजोक्त मंत्र-
ॐ भू: भुव: स्व:। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्व: भुव: भू: ॐ॥ (साधकों के लिए)

संजीवनी मंत्र-
ॐ ह्रौं जूं स:। ॐ भूर्भव: स्व:। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्व: भुव: भू: ॐ। स: जूं ह्रौं ॐ। ( व्यापारियों, विद्यार्थियों और नौकरीपेशा लोगों के लिए विशेष फलदायी)

कालजयी मंत्र-
ॐ ह्रौं जूं स:। ॐ भू: भुव: स्व:। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्व: भुव: भू: ॐ। स: जूं ह्रौं ॐ॥ ( समस्त गृहस्थों के लिए। विशेषकर रोगों से और कष्टों से मुक्ति के लिए)

रोगों से मुक्ति के लिए बीज मंत्र-
रोगों से मुक्ति के लिए यूं तो महामृत्युंजय मंत्र विस्तृत है, लेकिन आप बीज मंत्र के सस्वर जाप से रोगों से मुक्ति पा सकते हैं। इस बीज मंत्र को जितना तेजी से बोलेंगे आपके शरीर में कंपन होगा और यही औषधि रामबाण होगी। जाप के बाद शिर्वंलग पर काले तिल और सरसों का तेल (तीन बूंद) चढ़ाएं।
‘ॐ ह्रौं जूं स:’(तीन माला)

महामृत्युंजय मंत्र का जाप पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें। जप कुशा के आसन पर बैठ कर करें। मानसिक जाप करें। एक निश्चित संख्या में जाप करें।

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