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ऐतिहासिक नाका गुरूद्वारा में भाई तारु सिंह का शहीदी दिवस और श्रावण माह संक्रान्ति पर्व मनाया गया

लखनऊ। भाई तारु सिंह जी का शहीदी दिवस एवं श्रावण माह संक्रान्ति पर्व 16- जुलाई को ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरू नानक देव जी, नाका हिण्डोला, लखनऊ में बड़ी श्रद्धा एवं सत्कार के साथ मनाया गया। प्रातः के दीवान में सुखमनी साहिब के पाठ के उपरान्त रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह जी ने अपनी मधुरवाणी में आसा की वार का अमृतमयी शबद कीर्तन गायन किया।

ऐतिहासिक नाका गुरूद्वारा में भाई तारु सिंह का शहीदी दिवस और श्रावण माह संक्रान्ति पर्व मनाया गया

ज्ञानी सुखदेव सिंह ने भाई तारु सिंह के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उनका जन्म गांव पुहला जिला अमृतसर में हुआ था। उनके बाल्यकाल में ही उनके पिता जी लड़ाई मे शहीद हो गये थे। आपकी माता जी एवं बड़ी बहिन ने त्याग एवं कुर्बानी की कहानियाँ सुनाकर सिक्खी में परपक्व कर दिया। आप गांव में खेती का काम करते थे। बड़े धर्मी, पवित्र आचरण, तगड़ा ऊँचे कद एवं गुरु मर्यादा में रहने वाले गुरसिख थे।

खेती के काम से पैदा होने वाली फसलों का लगान सरकार को चुकाकर बाकी पैसे से सेवा एवं मुसीबत में दिन काट रहे लोगों की मदद करते और गुरु पंथ के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तत्पर रहते थे। हरिभगत निरंजनिया, जो सिखों का जानी दुश्मन था, ने मुगल बादशाह जकरिया खां को भाई तारु सिंह के बारे मे सब कुछ बता दिया कि यह अपने गुरु के गुण गाते हैं, मरने से नही डरते, यह लोग हमारी हकूमत के लिए खतरा बने हुए हैं। जकरिया खां ने सैनिकों को भाई तारु सिंह जी को गिरफ्तार करने का हुक्म दिया।

जब उन्हें गिरफ्तार करके लाहौर ले जाया गया जा रहा था, गांव के लोग भाई जी की गिरफ्तारी को रोकना चाहते थे, भाई जी ने उन्हें कहा कि हमने नवाब का क्या बिगाड़ा है, मै नही चाहता कि गांव के लोगों पर कोई बिपता आये, धर्म की खातिर अगर मरना भी पड़े तो भागेंगे नहीं। जकरिया खान ने कहा कि तारु सिंह तेरी जान तभी बख्शी जा सकती है, अगर तुम मुसलमान बन जाओ और सिख धर्म छोड़ दो। भाई जी ने उत्तर दिया कि सिक्खी मुझे अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी है। तभी जकरिया खां ने हुक्म दिया कि भाई तारु सिंह की खोपड़ी बाल सहित सिर से अलग कर दी जाय।

 

लाहौर के दिल्ली दरवाजे के बाहर नवाब जकरिया खान के हुक्म से हजारों लोगों के बीच मोची ने धारदार हथियार से भाई तारु सिंह जी की खोपड़ी बाल सहित सिर से अलग कर उनके सामने रख दी। आप का पूरा शरीर खून से लतपत हो गया तो उधर जकरिया खान का पेशाब बन्द हो गया। हकीमों वैदों के सारे जतन व्यर्थ हो गये, तो जकरिया खान ने भाई सुभेग सिंह द्वारा खालसा पंथ से माफी मांगी। सिखों ने भाई तारु सिंह के पैर की जूती जकरिया खान के सिर पर मारना उसके रोग का इलाज बताया। मुसीबत मे फंसे हुए जकरिया खान ने अपने सिर पर भाई तारु सिंह के पैर की जूती मरवायी तो उसका दुख दूर हुआ। कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई।

इस तरह सिख कौम के महान शहीद भाई तारु सिंह सिक्खी पर पहरा देते हुए अकाल पुरख के चरणों मे जा बिराजे। कार्यक्रम का संचालन स0 सतपाल सिंह मीत जी ने किया।
शाम का विशेष दीवान 6.30 बजे रहिरास साहिब के पाठ से आरम्भ हुआ जो रात्रि 09.15 बजे तक चला जिसमें रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह जी ने अपनी मधुरवाणी में

सावणि सरसी कामणी चरन कमल सिऊ पिआरु।।
मनु तनु रता सच रंगि इको नामु आधार।।

शबद कीर्तन एवं नाम सिमरन द्वारा साध संगतों को निहाल किया। सिमरन साधना परिवार के बच्चों ने भी इस कार्यक्रम में शबद कीर्तन गायन किया। ज्ञानी सुखदेव सिंह जी ने श्रावण माह पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस माह में वह जीव हर वक्त प्रसन्न रहता है। जिसका मन प्रभु के चरन कमलों में लगा रहता है उसका तन मन सच के रंगों मे रंगा रहता है। प्रभु का नाम ही उसके जीवन का आधार बन जाता है। मोह उसके सामने नाशवन्त दिखते हैं। वह प्रभु सर्व शक्तिमान, व्यापक एवं बेअन्त है।

गुरु जी फरमाते है कि श्रावण का माह उन सुहागिनों स्त्रियों के लिये आनन्ददायक है जिसके हृदय में प्रभु का नाम माला की तरह पिरोया रहता है। लखनऊ गुरूद्वारा प्रबन्धक कमेटी एवं ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरू नानक देव नाका हिंडोला के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा ने आई साध संगतों को श्रावण माह संक्रान्ति पर्व की बधाई दी एवं शहीद भाई तारु सिंह जी को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये। समाप्ति के उपरान्त हरमिन्दर सिंह टीटू महामंत्री की देखरेख में दशमेश सेवा सोसाइटी के सदस्यों द्वारा खीर एवं गुरु का लंगर संगत में वितरित किया गया।

रिपोर्ट – दया शंकर चौधरी

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