Breaking News

अतीत बनते तालाब व बावड़ी बचाने के लिए बड़ी पहल

पूर्वजों की देन व पानी संरक्षण के लिए तालाब व बावड़ी के रूप में किया गया उनका बेहतर प्रयास आज अतीत की यादों में समा गए हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण सरकार की उदासीनता ही रही है। अमृत सरोवर योजना से सिंचाई का कार्य भी किया जाएगा और बरसाती पानी को संरक्षित भी किया जाएगा।

सत्यवान ‘सौरभ’

गर्मियों में पूरे भारत में बड़े पैमाने पर जल संकट पैदा हो जाता है; इस समस्या को देखते हुए आजादी के अमृत महोत्सव के तहत हरियाणा सरकार ने अपने गांवों में अस्तित्व खोते जा रहे तालाब एवं जोहड़ों को बचाने के लिए राज्य के जोहड़ तालाबों को अमृत सरोवर के रूप में विकसित करने पर जोर शोर से काम शुरू किया है। यह अमृत सरोवर जल संरक्षण के साथ-साथ किसानों के लिए भी एक वरदान साबित होंगे।

इन अमृत सरोवर के पानी से सिंचाई करने का भी प्रावधान रखा जाएगा। इस योजना के तहत हरियाणा प्रदेश के 1650 तालाबों का अमृत सरोवर के रूप में 15 अगस्त 2023 तक विकसित किया जाएगा। इस कार्यक्रम के शुरूआती चरण में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने आनलाइन प्रणाली के माध्यम से प्रदेश के 111 अमृत सरोवरों की योजना का शुभारंभ किया।

पूर्वजों की देन व पानी संरक्षण के लिए तालाब व बावड़ी के रूप में किया गया उनका बेहतर प्रयास आज अतीत की यादों में समा गए हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण सरकार की उदासीनता ही रही है। जिससे इन सूखे तालाबों व बावड़ियों का प्रयोग लोग पानी के लिए नहीं होता। बल्कि इनके किनारे लगे छायादार पेड़ों के नीचे बैठकर ताश खेलने के रूप में कर रहे हैं। दशकों से वीरान पड़े तालाबों के प्रति ग्रामीणों के दिल में भी बेरूखी घर कर गई है। बरसात के घटते दिन भी तालाब व बावड़ियों के लिए अभिशप्त साबित हुए है। यही वजह है कि आज देश भर के गांवों में तालाब और जोहड़ पानी के अभाव में सूखे पड़े है। जिससे इन जोहड़ व तालाबों तक न तो पशुओं की पदचाप सुनाई देती है और न मनुष्य इनकी राह पकड़ता दिखाई देता है।

इन सबको देखते हुए केंद्र सरकार ने पंचायती राज दिवस पर 24 अप्रैल 2022 को अमृत योजना का शुभारंभ किया। इस योजना को 15 अगस्त 2023 तक चलाया जाएगा। इस योजना के तहत प्रदेश में 1650 तालाबों को अमृत सरोवर के रूप में विकसित किया जाएगा और प्रत्येक जिले में 75-75 तालाबों को अमृत सरोवर बनाया जाएगा।

इस योजना से गांवों का सौन्द्रर्यकरण होगा और पानी को संरक्षित करने में मदद मिलेगी। आज गांव के तालाबों की स्थिति काफी दयानीय है और तालाबों का पानी ओवरफ्लो होकर सड़कों पर बह रहा है तथा बरसाती पानी का भी तालाब संरक्षण नहीं कर पाते। इन तमाम पहलुओं को जहन में रखते हुए ही अमृत सरोवर योजना को शुरू किया गया है। इस योजना से सिंचाई का कार्य भी किया जाएगा और बरसाती पानी को संरक्षित भी किया जाएगा।

भारत में पानी की कमी अपर्याप्त आपूर्ति से नहीं बल्कि हमारे पास मौजूद पानी के प्रबंधन के तरीके से आई है। कृषि भारत के 78 प्रतिशत पानी का उपयोग करती है, और इसका बहुत ही अक्षमता से उपयोग करती है। सिंचाई के लिए उपयोग किया जाने वाला लगभग दो-तिहाई पानी भूजल से आता है। भूजल पंप करने के लिए किसानों के लिए भारी बिजली सब्सिडी और तथ्य यह है कि भूजल बड़े पैमाने पर अनियमित है, पिछले कई दशकों में सिंचाई के लिए ट्यूबवेल के माध्यम से भूजल के उपयोग में लगातार विस्फोट हुआ है। मांग की कमी को पूरा करने के लिए बोरवेल की व्यापक खुदाई करके भूजल के बढ़ते लेकिन बेहिसाब उपयोग की ओर जाता है।

पानी के उपयोग में शहरी भारत की अक्षमता अपर्याप्त, पुराने और जीर्ण वितरण नेटवर्क, अक्षम संचालन, अपर्याप्त मीटरिंग, अपूर्ण बिलिंग और संग्रह, और खराब शासन की सामान्य स्थिति से उत्पन्न होती है। अक्षमता का एक अन्य स्रोत अपशिष्ट जल का उपचार न करने और बागवानी जैसे विशेष उपयोगों के लिए पुनर्नवीनीकरण पानी का उपयोग करने और शौचालयों को फ्लश करने के लिए भी आता है। शहरी जल का कम मूल्य निर्धारण भी व्यर्थ उपयोग में योगदान देता है। यदि किसी चीज की कीमत कम है, तो उपयोगकर्ता उसका अधिक उपयोग करेंगे।

करने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच एक राजनीतिक समझौते की आवश्यकता है। किसानों को धान, गन्ना और केला जैसी जल-गहन फसलों को उगाने से रोकने के लिए भी कई प्रयास नहीं किए गए हैं, जब यह व्यापक रूप से ज्ञात है कि कृषि में 80% मीठे पानी की खपत होती है। राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में पानी का महत्व भगवान के समान है। यहां के ग्रामीण इस अनमोल संसाधन की एक-एक बूंद को बचाने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं।

राजस्थान के नागौर जिले के ग्रामीण इलाकों में पानी को संरक्षित करने का सबसे आसान माध्यम तालाब हैं। इन तालाबों के बारे में उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इनमें से कई तालाब सदियों पुराने हैं और ग्रामीणों के प्रयास से ही अभी तक संरक्षित किए गए हैं। नागौर जिले से कोई नदी नहीं बहती है और भूजल भी पीने योग्य नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में ग्रामीणों ने बारिश के पानी के संरक्षण और उपयोग के प्रभावी तरीके खोज निकाले हैं। बारिश के पानी को बचाने के लिए घरों में व्यक्तिगत उपयोग के लिए टैंक और सामुदायिक उपयोग के लिए तालाब बनाए गए हैं। आज भी ये तालाब नागौर के ग्रामीणों के लिए पानी का प्राथमिक स्रोत हैं।

तालाबों के संबंध में हर निर्णय ग्रामीणों द्वारा सामूहिक रूप से लिया जाता है। तालाबों के संरक्षण के लिए हर गांव ने कुछ नियमों को लागू किया है। तालाब में गंदगी फैलाने वालों को बर्दाश्त नहीं किया जाता है, जलग्रहण क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त रखने पर जोर दिया जाता है। तालाब में जूते पहनकर प्रवेश करना सख्त मना है। इसके अलावा तालाब में नहाना, कपड़े धोना, मवेशियों को नहलाना भी मना है। घर के लिए तालाब से पानी ले जाने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन तालाब से पानी बिक्री के लिए नहीं लिया जा सकता है।

देश भर के कुछ गांव को छोड़कर ज्यादातर ऐसे हैं जहां तालाबों का रख-रखाव ठीक से नहीं किया जाता है और वे जल्दी सूख जाते हैं, जिससे वहां के निवासियों को अन्य स्रोतों की तलाश करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। अब हरियाणा सरकार की अमृत सरोवर योजना ने वर्षों से खाली पड़े और सूखते तालाबों को संरक्षित करने में पूरे देश में एक नयी आस जगाई है और हरियाँ के ग्रामीणों को इस पर गर्व है। अपने जल स्रोतों की सुरक्षा में उनकी सक्रिय भागीदारी पानी की कमी वाले अन्य क्षेत्रों के लिए एक बेहतरीन उदाहरण है।

(लेखक रिसर्च स्कॉलर, कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट हैं।‌‌)

 

About Amit Anand Kushwaha

Check Also

‘महायुति के प्रति मतदाताओं के लगाव से वोट प्रतिशत में हुई वृद्धि’, फडणवीस का सरकार बनाने का दावा

मुंबई। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी ...