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भावनाओं से खिलवाड़ के विरुद्ध साल 2023 के पहले ही दिन बड़ा आंदोलन

अल्पसंख्यक जैन समाज ने कहा- ‘सम्मेद शिखर’ को पर्यटन स्थल न बनाया जाए

      दया शंकर चौधरी

साल 2023 की शुरुआत तो अच्छी हुई, लेकिन देशभर में साल के पहले ही दिन बड़ा आंदोलन हो गया। देशभर में लाखों की तादाद में जैन समाज के लोग सड़क पर उतर गए हैं। हाथों में तख्तियां हैं और जुबान पर नारे हैं। ये लोग जैन मुनियों का नाम के जयकारे लगा रहे हैं। झारखंड में स्थित जैन तीर्थ सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित करने का विरोध बढ़ता जा रहा है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वो झारखंड सरकार के सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने के खिलाफ है। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि सम्मेद शिखर को टूरिस्ट सेंटर ना बनाया जाए। साथ ही आदिनाथ की चरण पादुकाओं को खंडित करने वालों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जाए। बता दें कि शत्रुंजय पर्वत पालीताणा में है और सम्मेद शिखर के बाद जैन समाज का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान है। मुंबई, अहमदाबाद और दिल्ली में जैन समुदाय के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। लोगों का कहना है कि पवित्र स्थल को पर्यटन स्थल घोषित न किया जाए। यह जैन समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है। इससे तीर्थ स्थल की पवित्रता को नुकसान होगा। जैन समाज के लोग दिल्ली के प्रगति मैदान और इंडिया गेट पर इकट्ठा हुए। प्रदर्शनकारियों के एक डेलिगेशन ने इस संबंध में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ज्ञापन दिया है। प्रदर्शनकारी झारखंड सरकार से फैसला बदलने की मांग कर रहे हैं। इस मसले को लेकर जैन समुदाय के लोग 26 दिसंबर से देशभर में प्रदर्शन कर रहे हैं, नये साल के पहले रविवार (01जनवरी 2023) को यह प्रदर्शन तेज हो गए।

क्या होते हैं पर्यटन और तीर्थ स्थल

मोटे तौर पर पर्यटन स्थल वो जगह होती हैं, जहां लोग घूमने फिरने आते हैं, अपने अंदाज में वहां के सौंदर्य और सुविधाओं का मौजमस्ती करते हुए आनंद लेते हैं। तीर्थस्थल हमेशा उन जगहों से जुड़े हैं, जो दैवीय आस्था और भरोसे का केंद्र होते हैं। जहां श्रृद्धालु आमतौर पर श्रृद्धाभाव के साथ दूर दूर से भगवान की पूजा अर्चना के लिए आते हैं। हर तीर्थ स्थल का ऐतिहासिक रूप में अपना एक विशेष महत्व है।

तीर्थ स्थल की मान्यताएं: तीर्थ संस्कृत शब्द है। जिसका अर्थ है पाप से तारने या पार उतारने वाला। पुण्य – पाप की भावना सभी धर्मों में है। यानि ऐसा पुण्य स्थान पवित्र हो और आने वालों में भी पवित्रता का संचार कर सके। ऐसा दुनिया के सभी धर्मों में है।

आस्तिकता और नास्तिकता का अंतर

कहा जाता है कि तीर्थ स्थल और पर्यटक स्थलों में अंतर तो है। लेकिन कहीं ना कहीं उद्देश्य समान हैं। मनुष्य जब दैनिक कामों और कोलाहल भरे माहौल से परेशान हो जाता है, मन विचलित होने लगता है, तब जरूरत होती है मनोरम, शांतिपूर्ण या आध्यात्मिक स्थलों की या मनोरंजन स्थलों की। ऐसी स्थिति में सभी आस्तिक तीर्थ स्थलों का चुनाव करते हैं। नास्तिक पर्यटक स्थलों का चुनाव करते हैं। हिल स्टेशन, प्राचीन कालीन इमारतों और किलों में दिल और दिमाग को बांधने वाला माहौल तो होता है लेकिन आध्यात्मिकता नहीं होती। आध्यात्मिकता तो तीर्थस्थलों से ही जुड़ी होती है।

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तीर्थ स्थल पर जाते हुए आप कोशिश करते हैं कि तन-मन और आचरण को शुद्ध रखें। इसीलिए बहुत से धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए कुछ नियमों और शर्तों का भी पालन करना होता है। बहुत से धार्मिक स्थलों पर जाने पर आपको पोशाक की मर्यादा का ध्यान रखना होता है। कई धार्मिक स्थलों पर बकायदा ड्रेस कोड से लेकर आचरण संबंधी आचार संहिता भी लागू होती है। आमतौर पर धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए स्नान करना जरूरी है। साफ सुथरे कपड़ों की पवित्रता होनी चाहिए। आमतौर पर चमड़े के कपड़े, मोबाइल आदि लेकर जाना निषिद्ध होता है। बहुत से धार्मिक स्थलों को मांस और मदिरा निषिद्ध क्षेत्र भी घोषित किया हुआ है, ताकि वहां ऐसा कुछ नहीं हो कि उस जगह की आस्था और धार्मिकता पर कोई आंच आए। नैतिक अनुशासन पर भी जोर रहता है।

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सबसे बड़ी बात ये भी है कि दुनियाभर में धार्मिक स्थलों को बहुत पवित्र जगह माना जाता है। लिहाजा इसकी पवित्रता को सबसे ऊपर रखने के लिए सबकुछ किया जाता है। टूरिस्ट प्लेस बनते ही वो जगह आमोद-प्रमोद और आचरण संबंधी पाबंदियों से मुक्त होने लगती है। जबकि टूरिस्ट प्लेस पर जाने के लिए ऐसा कुछ भी जरूरी नही है। पोशाक से लेकर आचरण के लिए कोई पाबंदी नहीं होती। आप बेशक वहां जाइए। दिल और दिमाग से वहां आनंद लीजिए। खाइए, पीजिए, मौज करिए, कोई रोक टोक नहीं होगी।

टूरिस्ट प्लेस का मानक

टूरिस्ट प्लेस का निर्धारण सरकारें कुछ मानकों के आधार पर करती हैं। सरकार द्वारा बनाई गई टीम इस क्षेत्र का दौरा करती है। वहां की खूबसूरती, महत्व, पर्यावरण और सुविधाओं को देखते हुए ये तय करती है कि इस इलाके को टूरिस्ट प्लेस बनाना चाहिए कि नहीं। अगर सरकार किसी क्षेत्र को टूरिस्ट प्लेस घोषित करती है तो फिर वहां उसी तरह पर्यटन से जुड़ी सभी तरह की संरचनाओं का विकास करती है, ताकि देश-विदेश से पर्यटक वहां आ सकें और उस इलाके को टूरिस्टों के आने से लाभ हो।

सरकार टूरिस्ट प्लेस को पर्यटक फ्रेंडली बनाती है। आमतौर पर सरकार टूरिस्ट घोषित की गई जगहों पर अपने टूरिस्ट आफिस खोलकर कई तरह की सुविधाओं का जाल बिछाती है। उसके सड़क से लेकर हवाई संपर्क को विकसित करने का काम करती है तो होटलों से लेकर टूरिस्ट के लिए जरूरी आवागमन, होटल और रेस्तरां को बनाने के लिए योजनाएं तैयार करती है। मतलब उन सुविधाओं से है जो टूरिस्ट फ्रेंडली हों। उस इलाके का और सौंदर्यीकरण किया जाता है।

खासी कठिन पाबंदी वाला धर्म स्थल है सबरीमाला

जब बात धार्मिक स्थल और उनसे जुड़ी पाबंदियों और कठिन प्रक्रिया की हो रही है तो सबरीमाला सबसे मुश्किल तीर्थ स्थान है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह मंदिर वार्षिक पूजा के लिए मध्य नवंबर से तीन महीने के लिए खोला जाता है। वहीं हर महीने यहां पांच दिनों की मासिक पूजा भी होती है। वार्षिक पूजा के लिए मंदिर तक जाने की प्रक्रिया बेहद कठिन होती है। इसकी तैयारी 41 दिन पहले ही शुरू हो जाती है। इसके लिए श्रद्धालुओं को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक तौर पर भी फिट होना होता है।

वार्षिक दर्शन से पहले श्रद्धालुओं को 41 दिन का व्रतम (उपवास) करना होता है। ये व्रतम आमतौर पर मध्य नवंबर से शुरू होता है। व्रत के दौरान श्रद्धालु किसी सामाजिक गतिविधि में हिस्सा नहीं ले सकता है। उसे अपना समय प्रार्थना और भजन गाते हुए गुजारना चाहिए।इस दौरान मंदिरों में जाना चाहिए, उनकी सफाई करनी चाहिए, गरीब और बीमार लोगों की मदद करनी चाहिए। श्रद्धालुओं को जमीन पर सोना चाहिए। तकिए की जगह लकड़ी के ब्लॉक का इस्तेमाल करना चाहिए। नंगे पैर ही चलना चाहिए। सबरीमाला जाने के लिए आठ किलोमीटर का पैदल कठिन रास्ता भी तय करना होता है, जो पहाड़ियों और जंगलों से गुजरता है। उसे अपने शरीर और बालों में तेल नहीं लगाना चाहिए।

हमेशा अपने साथ तुलसी की पत्ती रखनी चाहिए ताकि गलत विचार उसके आसपास भी नहीं फटक सकें। व्रत के दौरान श्रद्धालु को केवल शुद्ध शाकाहारी भोजन ही करना चाहिए। किसी तरह की शारीरिक या मौखिक हिंसा नहीं करनी चाहिए. शराब, तंबाकू और अन्य मादक वस्तुओं का किसी भी तरीके से इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। मंदिर का आठ किमी का पैदल रास्ता मंदिर में दर्शन के लिए पहाड़ों और जंगलों के बीच से श्रद्धालुओं को आठ किलोमीटर का रास्ता पैदल चलना होता है। इसमें संकरे और मुश्किल पहाड़ी रास्तों से भी गुजरना होता है। हालांकि इस रास्ते को हाल के दिनों में बेहतर किया गया है। अब रास्ते में मेडिकल और इमरजेंसी मदद उपलब्ध रहती है। लेकिन रास्ता तय करना अब भी आमतौर पर मुश्किल ही है।

ड्रेस कोड: श्रद्धालुओं को यहां कपड़ों के रंगों के जरिए आसानी से पहचाना जा सकता है। उन्हें काले और नीले रंग की पोशाक पहननी होती है। सिर पर चंदन का लेप लगाना पड़ता है। मंदिर में आप एक खास थैला लेकर ही जा सकते है, ये कॉटन से बना होता है। इनके भी कलर कोड होते हैं। अगर श्रद्धालु लाल रंग का बैग लेकर चलता है, उसका मतलब ये है कि इस मंदिर में ये उसकी पहली यात्रा है। इसके बाद तीसरी यात्रा तक नीला रंग का बैग दिया जाता है। इससे और ज्यादा यात्राएं कर चुके लोगों को भगवा रंग के काटन के बैग दिए जाते हैं।

जैन धर्म के अनुयायी: बताते चलें की भारत की 1.028 अरब आबादी में करीब 4,200,000 लोग जैन धर्म के अनुयायी हैं, यद्यपि जैन धर्म का प्रसार बहुत दूर तक है जो जनसंख्या से कहीं अधिक है। भारत के केन्द्र शासित प्रदेशों एवं सभी राज्यों में से 35 में से 34 में जैन लोग हैं।केवल लक्षद्वीप एक मात्र केन्द्र शासित प्रदेश है जिसमें जैन धर्म नहीं है। झारखण्ड जैसे छोटे राज्य में भी 16,301 जैन धर्मावलम्बी हैं और वहाँ पर शिखरजी का पवित्र तीर्थस्थल है। भारत की एक जनजाति सराक जैन जनजाति भी है। जैन दर्शन के अनुसार जैन धर्म हमेशा से अस्तित्व में है और हमेशा रहेगा, अन्य प्राचीन भारतीय धर्मों के समान ही जैन धर्म का मूल भी सिंधु घाटी सभ्यता से जोड़ा जाता है जो हिन्द आर्य प्रवास से पूर्व की देशी आध्यात्मिकता को दर्शाता है। अन्य शोधार्थियों के अनुसार श्रमण परम्परा ऐतिहासिक वैदिक धर्म के हिन्द-आर्य प्रथाओं के साथ समकालीन और पृथक होता है।

जैन धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थल और भारत के प्रसिद्ध जैन मंदिर

भारत कई संस्कृतियों का देश है, जो अपने समृद्ध इतिहास, प्रकृति और विश्वविख्यात मंदिरों के लिए जाने जाता है। बता दें कि भारत देश हिन्दू मंदिरों के साथ-साथ जैन मंदिरों के लिए भी लोकप्रिय है। जैन धर्म के अनुयायियों के प्रमुख तीर्थ स्थल,  जैन मंदिर भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रचुर मात्रा में मौजूद है। भारत में कई सुंदर जैन मंदिर हैं जो पूरे देश में इस धर्म के व्यापक अस्तित्व को चिह्नित करते हैं, और जैन अनुयायीयों के साथ पर्यटकों के लिए भी आकर्षण के केंद्र बने हुए है। प्रत्येक वर्ष हजारों श्रद्धालुयों को अपनी और आकर्षित करते हैं। आइये जानते हैं भारत के लोकप्रिय और प्रसिद्ध जैन मंदिरों के बारे में जो वास्तव में देखने लायक हैं।

गोमतेश्वर मंदिर, कर्नाटक: गोमतेश्वर मंदिर कर्नाटक के हासन जिले के श्रवणबेलगोला में स्थित भारत के सबसे प्राचीन जैन मंदिरों में से एक है। बता दें गोमतेश्वर मंदिर को श्रवणबेलगोला मंदिर या बाहुबली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में  मुख्य देवता प्रथम जैन तीर्थंकर की 17 मीटर ऊँची मूर्ति स्थापित है, जो दुनिया में सबसे बड़ी अखंड मूर्ति है। गोमतेश्वर मंदिर 10 वीं शताब्दी में गंगा वंश के राजा राजमल्ल के जनरल चामुंडराय द्वारा बनवाया गया था। प्रतिमा के आधार पर माना जाता है की शिलालेख तमिल और कन्नड़ में लिखे गए हैं। गोमतेश्वर मंदिर में महामस्तकाभिषेक 12 वर्षों में एक बार मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है, जहाँ प्रतिमा को दूध, केसर, घी और दही से स्नान कराया जाता है। जिस दौरान बड़ी संख्या में जैन अनुयायीयों और पर्यटकों की भीड़ देखी जा सकती है।

दिलवाड़ा जैन मंदिर,माउंट आबू: दिलवाड़ा जैन मंदिर राजस्थान की अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित जैनियों का सबसे सबसे सुंदर तीर्थ स्थल है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं और 13वीं शताब्दी के बीच वास्तुपाल तेजपाल द्वारा किया गया था। यह मंदिर अपनी जटिल नक्काशी और हर कोने से संगमरमर से सजे होने के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर बाहर से बहुत ही सामान्य दिखता है, लेकिन जब आप इस मंदिर को अंदर से देखेंगे तो इसकी छत, दीवारों, मेहराबों और स्तंभों पर बनी हुई डिजाइनों को देखकर हैरान रह जायेंगे। यह सिर्फ जैनियों का तीर्थ स्थल ही नहीं बल्कि एक संगमरमर से बनी एक जादुई संरचना है। जो यहाँ आने वाले दर्शनार्थियों को बार-बार यहां आने पर मजबूर करती है।

रणकपुर जैन मंदिर, राजस्थान: भारत के सबसे प्रसिद्ध जैन मंदिरों में से एक रणकपुर जैन मंदिर राजस्थान राज्य में सादरी शहर के निकट स्थित हैं। 4,500 वर्ग गज के क्षेत्र में फैला हुआ और 29 हॉलों से युक्त, रणकपुर जैन मंदिर, जैन धर्म के पांच सबसे महत्वपूर्ण प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। जिसे चतुर्मुख धारणा विहार के रूप में भी जाना जाता है, जोकि जैन धर्म के प्रमुख तीर्थकर ऋषभनाथ को समर्पित है। रणकपुर जैन मंदिर का निर्माण 5वीं शताब्दी में राजपूत सम्राट राणा कुंभा के शासनकाल के दौरान किया गया था। आपको बता दें कि मंदिर अपनी शानदार वास्तुकला के लिए दुनिया भर में प्रतिष्ठित है, जो दुनिया भर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।

सोनागिरी मंदिर, मध्य प्रदेश: मध्यप्रदेश के छोटे से शहर सोनागिरी में स्थित सोनागिरी मंदिर भारत में जैनियों के सबसे लोकप्रिय तीर्थस्थलों में से एक हैं। “सोनागिरी” का अर्थ है “गोल्डन पीक।” यह मंदिर इसलिए भी अद्वितीय है, क्योंकि माना जाता है,की यह वही जगह है, जहाँ नंगनाग कुमार ने अपने पंद्रह लाख अनुयायियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। आपको बता दें कि मंदिर राजसी पर्वत शत्रुंजय के शिखर पर स्थित है, जहाँ भगवान चंद्रप्रभु की 11 फीट ऊँची प्रतिमा मंदिर का प्रमुख आकर्षण केंद्र है। मुख्य मंदिर के साथ यहां लगभग 900 मंदिरों का एक समूह हैं, जिसमे प्रत्येक मंदिर अपनी सुंदरता और भव्यता में एक दूसरे से बढ़कर साबित होते है। सुंदर चित्र और मूर्तियाँ, जटिल नक्काशी, प्रभावशाली भित्ति चित्र और आभूषण की मूर्तियाँ इन मंदिरों के अद्वितीय आकर्षण हैं। जो बड़ी संख्यां में जैन अनुयायीयों और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

सोनी जी की नसियां, अजमेर: सोनी जी की नसियां अजमेर शहर में पृथ्वीराज मार्ग पर स्थित एक प्रसिद्ध जैन मंदिर है। जो सोनी जी की नसियां ​​के रूप में लोकप्रिय और राजस्थान में सबसे अच्छे जैन मंदिरों में से एक है। जो अजमेर में यात्रा करने के लिए शीर्ष स्थानों में से एक है। अजमेर का दर्शनीय स्थल सोनी जी की नसियां का नाम सिद्धकूट चैत्यालय है और इसे ‘लाल मंदिर’ के रूप में भी जाना जाता है, जो जैन धर्म के पहले तीर्थकर को समर्पित हैं। सोनी जी की नसियां मंदिर का मुख्य आकर्षण मुख्य कक्ष है जिसे स्वर्ण नगरी या सोने के शहर के नाम से भी जाना जाता हैं। जो जैन धर्म के संस्करण में ब्रह्माण्ड की सबसे आश्चर्यजनक वास्तुकला कृतियों में से एक है। सोनी जी की नसियां अजमेर के लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है, जहा तीर्थयात्रियो की लम्बी कतारें देखी जा जाती है।

पुलियारमाला जैन मंदिर, केरल: केरल के वायनाड जिले में स्थित पुलियारमाला जैन मंदिर भारत के सबसे लोकप्रिय जैन मंदिरों में से एक है, जो जैन अनुयायीयों के लिए प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में कार्य करता है। पुलियारमाला जैन मंदिर अनंतनाथ स्वामी को समर्पित है जो एक तीर्थंकर थे और इसीलिए इस मंदिर को “अनंतनाथ स्वामी मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। पुलियारमाला जैन मंदिर केरल के सबसे पुराने जैन मंदिरों में से एक है, जिसे 13वीं शताब्दी में बनाया गया था। और इसमें जैन वास्तुकला की महारत को दर्शाया गया है, मंदिर के दरवाजों और स्तूप पर सुंदर नक्काशी की गई है, जबकि मंदिर का आंतरिक भाग शांतिपूर्ण और सुचारू रूप से अंकित है।

कुलपाकजी मंदिर, आंध्रप्रदेश: तेलंगाना के नलगोंडा जिले के एक छोटे से गाँव, कोलानुपका में स्थित कुलपाकजी मंदिर, भगवान ऋषभ, भगवान नेमिनाथ, भगवान महावीर तीनो को समर्पित प्रसिद्ध जैन मंदिर है। जिसे कोनलुपका जैन मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, जिसमे महावीर स्वामी की 130 सेंटीमीटर लंबी मुख्य मूर्ति स्थापित है। लगभग 2,000 साल पुराना कुलपाकजी मंदिर दक्षिण भारत के श्वेताम्बर जैनियों का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जो प्रत्येक बर्ष कई हजारों जैन अनुयायीयों और पर्यटकों की मेजबानी करता है। आपको बता दें कि आंध्र प्रदेश में यह क्षेत्र विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ 1125 ईश्वी में बीस से अधिक जैन शिलालेख पाए गए थे।

नारेली जैन टेम्पल, अजमेर: अजमेर से लगभग 7 किलोमीटर कि दूरी पर स्थित नारेली जैन मंदिर दिगंबर जैनों का एक पवित्र तीर्थ स्थल है। संगमरमर के पत्थर से बना नारेली जैन मंदिर अपनी सुंदर वास्तुकला और जटिल पत्थर की नक्काशी के लिए पर्यटकों के बीच लोकप्रिय बना हुआ है जो पारंपरिक और समकालीन दोनों रूप प्रस्तुत करता है। यह मंदिर पूरी तरह से पत्थर से बना है और चारों ओर सुंदर आकार के बगीचों से सुसज्जित है। यह स्थानीय लोगो के अनुसार इच्छाओं को पूरा करने और जीवन में समृद्धि लाने के लिए जाना जाता है। मुख्य मंदिर में पहली मंजिल पर गुरु आदिनाथ जी की 22 फीट ऊंची विशाल मूर्ति है, जिसमें ऊपर की पहाड़ियों पर अन्य तीर्थंकर के 24 लघु मंदिर हैं। नारेली जैन मंदिर वास्तुकला और शहर क्षेत्र से दूर पहाड़ियों की प्राकृतिक सुंदरता के शौकीन पर्यटकों के लिए यह भारत के सबसे लुभावने जैन मंदिरों में से एक है।

पलिताना मंदिर, गुजरात: भावनगर से 51 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित पालिताना मंदिर, जैन मंदिरों के सबसे बड़े समूह के रूप में जाना जाता है। गुजरात में पालिताना मंदिर तीर्थयात्रा के लिए सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। पालिताना मंदिरों का निर्माण 11वीं शताब्दी में शुरू हुआ जो 900 वर्षों की अवधि में पूर्ण हुआ। आपको बता दें  शत्रुंजय पहाड़ी पर 3000 से अधिक मंदिर स्थित हैं, जिनमें से 863 जैनियों के पवित्र मंदिर हैं। पालिताना मंदिर के मुख्य देवता प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ हैं। पालिताना मंदिर भारत के सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध जैन मंदिरों में से एक है, जहाँ हर साल हजारों तीर्थयात्री इस पवित्र स्थल का दौरा करते हैं।

हनुमंतल जैन मंदिर, जबलपुर: भारत के सबसे प्रसिद्ध जैन मंदिरों में से एक हनुमंतल जैन मंदिर मध्यप्रदेश के जबलपुर में स्थित है। जो जैन देवी पद्मावती को समर्पित है। हनुमंतल जैन मंदिर जैन अनुयायीयों के लिए सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। 17वीं शताब्दी में निर्मित हनुमंतल जैन मंदिर वह स्थान है जहाँ से भगवान महावीर के जन्मदिन पर वार्षिक जैन जुलूस शुरू होता है। मंदिर एक बाईस तीर्थ गृहों की तरह प्रतीत होता है, जो इसे भारत में सबसे महत्वपूर्ण स्वतंत्र जैन मंदिर बनाता है। हनुमंतल जैन मंदिर प्राचीन कला प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग है जो विभिन्न युगों की कई छवियों को प्रदर्शित करता है।

नाकोडा जैन मंदिर, बाड़मेर: श्री नाकोड़ा जैन मंदिर तीसरी शताब्दी में निर्मित भारत के सबसे  प्राचीन मंदिरों में से एक है जिसका कई बार जीर्णोद्धार किया गया है। नाकोड़ा जैन मंदिर में पार्श्वनाथ की लगभग 58 सेमी ऊँची मूर्ति कमल की की मुद्रा में विराजमान है। जो जैन समुदाय के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र है। आपको बता दे मंदिर में स्थापित पार्श्वनाथ की प्रतिमा को नाकोडा गाँव से यहाँ लाया गया था, इसीलिए इस स्थान को नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंदिर भी कहा जाता है। पौष कृष्ण की दशमी को भगवान पार्श्वनाथ के जन्मदिन के अवसर पर यहाँ एक बड़े मेला का आयोजन भी किया जाता है, जो देश के बिभिन्न कोनो से तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता है।

श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर, दिल्ली: दिल्ली का सबसे पुराना जैन मंदिर श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर, भारत के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित मंदिर मुगल काल की कहानी के लिए जाना जाता है। 1656 में पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक क्षेत्र में स्थित श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर पूरी तरह से लाल बलुआ पत्थर से बनी सुंदर संरचना है। मंदिर लाल रंग की गुंबददार छत, जटिल नक्काशी और कलाकृति के साथ सरल विस्मयकारी वास्तुकला का अनुसरण करता है। जो शांतिपूर्ण माहौल का आनंद लेने के लिए सभी धर्मों के लोगों और पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है।

तिजारा जैन मंदिर, अलवर: तिजारा जैन मंदिर दिल्ली से 110 किलोमीटर और दिल्ली-अलवर राजमार्ग पर अलवर से 55 किलोमीटर दूर स्थित जैनों का लोकप्रिय तीर्थ स्थल है। वर्ष 1956 में स्थापित प्राचीन जैन मंदिर आठ जैन तीर्थंकरों, यानी जैन धर्म गुरु को समर्पित है। जो जैन समुदाय के लिए महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। यह जैनों के साथ- साथ प्राचीन इतिहास प्रेमियों के लिए भी लोकप्रिय बना हुआ है। जैन मंदिर जटिल मूर्तियों, विस्तृत नक्काशी और प्राचीन चित्रों के साथ एक उत्कृष्ट कला से निर्मित है, जो इसे राजस्थान के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक बनाता है। जैन मंदिर में तीन ऊंची सतह हैं जहा पर भगवान् श्री चंद्र प्रभु की 15 इंच ऊँची सफेद रंग की संगमरमर के पत्थर से बनी मूर्ति स्थापित की गई है।

शिखरजी मंदिर, झारखंड:

भारत के सबसे प्रसिद्ध जैन मंदिरों में से एक शिखरजी मंदिर झारखंड के सबसे ऊँचा पर्वत पारसनाथ पहाड़ियाँ पर स्थित है। शिखरजी मंदिर चौबीस में से चौबीस तीर्थंकरों की पूजा करता है जिन्होंने पुनर्जन्म या मोक्ष के चक्र से मुक्ति प्राप्त की थी। शिखरजी मंदिर जैन अनुयायीयों का एक पवित्र तीर्थ स्थल हैं , जहाँ जैन धर्म के अनुयायी 54 किमी की दूरी तय करने के लिए पालकी पर या पैदल चलकर परिक्रमा के लिए जाते हैं।

धर्मनाथ मंदिर, केरल: केरल का धर्मनाथ मंदिर भारत में जैन तीर्थों के प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी राज्य केरल के कोच्चि में मट्टनचेरी शहर में स्थित यह मंदिर हर दिन दुनिया भर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। यह मंदिर 15 वें तीर्थंकर, भगवान धर्मनाथ को समर्पित है, इसलिए इसे धर्मनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। धर्मनाथ मंदिर की मूर्तियां और डिजाइन जैन दिलवाड़ा के माउंट आबू मंदिर के समान हैं। मंदिर का आंतरिक भाग संगमरमर से सुशोभित है जिसमें जैन धर्म के विभिन्न देवताओं और तीर्थंकरों की मूर्तियां स्थापित हैं।

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