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पुस्तक समीक्षा : ‘आज कल मैं खुल कर जीती हूँ।’

 

माँ के कदमों में काशी काबा है-योगिता जोशी

कृति:- आजकल मैं खुलकर जीती हूँ।

कवयित्री:- योगिता जोशी

प्रकाशक:-साहित्यागर, जयपुर

संस्करण:- प्रथम, 2022

 

राजस्थान। गुलाबी शहर जयपुर की निवासी कवयित्री योगिता जोशी वर्तमान में स्कूल प्राचार्य हैं। नेछवा सीकर राजस्थान में ब्राह्मण परिवार में जन्मी कवयित्री की अब तक देश के कई समाचार पत्रों में कई काव्य रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी है।

आजकल मैं खुलकर जीती हूँ कवयित्री योगिता जोशी का प्रथम काव्य संकलन है। इस कृति का मुखावरण बहुत आकर्षक व मनोहर है। कूँची से बादलों का चित्र उकेरती चित्रकार नीचे विशाल जलराशि चित्र में बहुत सुन्दर लग रही है।

इस काव्य कृति की भूमिका देश के ख्यातिनाम वरिष्ठ कवि समीक्षक विजय सिंह नाहटा ने लिखी । भूमिका में उनका शब्द चयन देखते ही बनता है। योगिता जोशी ने प्रस्तुत काव्य कृति में वर्तमान में देश मे व्याप्त सामाजिक आर्थिक राजनीतिक समस्याओं का यथार्थ वर्णन किया है। आपकी काव्य रचनाएँ सहज सरल है। कविताओं में संवेदनाओं की पराकाष्ठा है। आपकी कविताएं नदी की तरह सहज बहती हुई सी लगती है।

स्वस्फुटित भाव प्रवाह देखते ही बनता है। कविताओं में भावनाओं व कल्पनाओं की ऊंची उड़ान देखने को मिलती है।कविता की मुख्य विशेषता रसानुभूति होती है जो आपकी काव्य रचनाओं में देखने को मिलती है। 131पृष्ठों की यह काव्य कृति एक से बढ़कर एक कविताओं का बेहतरीन संकलन है जो पाठकों को अंत तक रसास्वादन कराने में सक्षम है जीवन निर्माण की कला सिखाता है।

कवयित्री योगिता जोशी ने अपनी 85 छंदमुक्त कविताओं के जरिये समाज का सच दिखाने का बखूबी प्रयास किया है। भाषा सहज सरल व बोधगम्य है।महिला सशक्तिकरण पर आधारित आपकी प्रथम रचना आजकल मैं खुलकर जीती हूँ में कवयित्री ने दैनिक दिनचर्या को आधार बनाते हुए नारी उन्मुक्त हर क्षेत्र में कैसे जीने लगी है का खुलासा किया है। अब खुलकर बोलना अपनी बातें साझा करना आदि को बखूबी लिखा है।

बचपन से जुड़ी काव्य रचनाओं में आपने बारिश में की जाने वाली मौज मस्ती अल्हड़पन को कविता में ढालने का सुन्दर प्रयास किया है।थकने लगी हूँ अब मैं लेकिन मैंने हौंसला नहीं छोड़ा है पंक्तियां प्रेरणास्पद लगी।

आज की नारी कविता में विभिन्न कुप्रथाओं पर जोशी ने कड़ा प्रहार किया है जैसे सती प्रथा दहेज प्रथा घर की चार दीवारी में कैद होना ये सब अब नहीं दिखता आज नारी कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में पुरुषों से आगे निकल चुकी है।

वो भी एक जमाना था कविता में   बताया कि परिवार में किस तरह सेवा धर्म का पालन किया जाता था। स्वेटर बुनना जैसी बेटियों को घर मे ही कला सीखा दी जाती थी।परिवार में रिश्तों में अपनापन था मिठास थी अपनत्व था।

फैलाना प्यार कविता की ये पंक्तियां देखिए-

“अगर हम चाहते हैं कि आगे बढ़े ये देश, तो मिटा दे खुद को बदल डालें परिवेश”

पर्यावरण संरक्षण रिश्वत रिश्तों में खुदगर्ज़ी नफरत कटते वृक्ष आदि पर आपने काव्य रचना के माध्यम से बेबाकी से सच लिखा है।

ये कैसा जीवन है शीर्षक की कविता में कवयित्री ने जीवन में सुख दुख उम्मीद निराशा के साथ ही नए जमाने के रिश्तों को पानी के बुलबुलों के समान बताया ये रिश्ते कब बनते हैं और कब मिट जाते हैं।

माँ कविता की ये पंक्तियां दिल को छू जाती है-

“माँ तो जीवन धुरी है, माँ तो पूरा जग है। माँ धरती पर परमात्मा की गवाही है, माँ के कदमों में काशी काबा है माँ तो बस माँ है।

सच मे माँ का सदैव सम्मान करना चाहिए क्योंकि माँ के कदमों में जन्नत होती है।

आजादी के मायने कविता में कवयित्री ने देश की आज़ादी के 75 साल बाद भी बढ़ती बेरोजगारी महंगाई बढ़ती हिंसा भ्र्ष्टाचार कालाबाज़ारी बढ़ती नशे की प्रवृत्ति आज भी लोग फुटपाथ पर सो रहे हैं उनके आवास के लिए कोई व्यवस्था नही जैसी कई समस्याओं के प्रति आम जनता का ध्यान आकृष्ट किया है।

परिवर्तन कविता में बताया कि आज मनुष्य में जीवन मूल्य नहीं दिखते “आज रिश्ते सिर्फ उसी के हैं जिसके पास पैसे हैं” अर्थप्रधान होना बुरी बात नहीं है लेकिन परिवार समाज सभ्यता व मानवीय मूल्यों को छोड़ना कहाँ का परिवर्तन है जो व्यक्ति को खुदगर्ज़ बनाता है।

मृगतृष्णा स्वार्थ नियति का खेल मानवता रचनाएँ श्रेष्ठ लगी।बसंत ऋतु सावन पर आधारित काव्य रचनाओं में प्रकृति की सुंदरता का सुन्दर वर्णन किया है

स्वच्छ भारत कविता में “स्वच्छता को अपनाना है, भारत को चमकाना है” जैसे स्लोगन बहुत पसंद आये।

गुरु बिन ज्ञान कहाँ में गुरु की महत्ता प्रतिपादित की है। गुरु वह है जो आत्म ज्ञान करा दे। मात्र किताबी ज्ञान से काम नहीं चलता। सा विद्या या विमुक्तये। मन के घोर तिमिर को मिटाकर जीवन मे नई रोशनी कर दे वही असली गुरु है। पानी पीओ छानकर गुरु करो जानकर।

करो चमत्कार काव्य रचना में कवयित्री ने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने हेतु माँ से विनती की है

“हे अम्बिके करो चमत्कार

बचा लो गर्भ में दम तोड़ते अपने अंश को।”

आज भी कई लोग गर्भ में ही बेटी व बेटे में अंतर मानते हैं भेदभाव करते हैं  बेटी को गर्भ में ही मार देते हैं जो कानूनी अपराध है। सबको जीने का हक है।बेटा बेटी एक समान मानना चाहिए। बेटियां तो आज देश मे हर क्षेत्र में नाम रोशन कर रही है   इसलिए बेटियों को धरती पर आने दो स्वागत करो उनका सम्मान करो। पढ़ाओ लिखाओ

बुरा न मानो होली काव्य रचना में सामाजिक समरसता व भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार बताया। होली के दिन पुराने बैरभाव छोड़कर सब एक दूसरे को प्रेमरंग लगाते है  गले लगाते हैं।

कोरोना का  मंजर कविता में जोशी लिखती है” खाकी केसरिया जिसकी शान है यहाँ सफेद कोट में भगवान है। वास्तव में कोविड 19 से बचाने में उस समय धरती के भगवान डॉक्टर नर्स सभी ने प्रशंसनीय सेवाएं देकर मनुष्यों को  मौत से बचाया।जब बाजारों में सन्नाटा पसर गया था। वीरान बस्तियां हो गई थी।  वह भयावह ख़ौफ़नाक मंजर ,लाशों को रोज रोज देखना। वह दृश्य आज भी रोंगटे खड़े कर देता है। देश महामारी के उस दौर से उचित प्रबंधन से सम्भला कोविड टीकाकरण हुआ।

पेड़ लगाओ कविता में अधिक से अधिक पेड़ लगाने का जनता से आह्वान किया है जो आज की जरूरत है। धरती का ताप बढ़ता जा रहा है। प्राकृतिक संतुलन बिगड़ गया है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव देखने को मिल रहे हैं।

महंगाई कविता में कवयित्री कहती है”महंगाई सबको रुलाए सब है इससे परेशान गरीब पेट बांध है सोता अमीर मेवा जो है खाता बेरोजगार धक्के खाता। आज देश विकास के पथ पर बढ़ रहा है लेकिन देश मे महंगाई आसमान छू रही है लोगों का जीना दूभर हो गया है।

राखी भाई बहिन का पवित्र त्योहार का भी डिजिटलीकरण हो गया है पंक्तियां देखिए –

“त्योहार रह गए फॉर्मेलिटी” आज त्योहार मात्र औपचारिकता वश मनाने लगे हैं।

अलख जगाओ पत्थरों के शहर में आंखों में क्या है संघर्ष मैं हूँ सर शर्म से झुक जाता है  हिन्दी कर्णधार मौन यहाँ आदि इस कृति की महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं।

कवयित्री जोशी की कविताएं जीवन जीने की कला सिखाती हैं। ये स्त्रियों की पीड़ा लिखती है तो कभी सामाजिक बुराइयों पर भी पैनी कलम चलाती है । ग्रामीण व नगरीय सभ्यता व संस्कृति रीति रिवाज बढ़ते आधुनिकीकरण के दुष्प्रभाव को भी ये अपनी कविताओं में लिखकर समाज को सच बताती है । आशावादी सकारात्मक सोच लिए इनकी काव्य रचनाएँ सुखद जीवन का अहसास कराती है।

यह काव्य कृति योगिता जोशी ने अपने दादाजी श्यामबिहारी जोशी जी बड़े भाई सौरभ जोशी को समर्पित की है। जोशी को विरासत में घर परिवार में साहित्य सृजन की प्रेरणा ददाज्यू श्याम बिहारी जोशी से मिली।विनोद बहादुर सक्सेना कॉलेज प्राचार्य जैसे जौहरी ने आपकी परख कर जो पथ प्रदर्शन किया वह काबिले तारीफ है ।

साहित्य जगत में आपकी यह कृति आजकल मैं खुलकर जीती हूँ  आपको नई पहचान दिलाएगी। आप इसी तरह उत्कृष्ट साहित्य सृजन करते रहें।बहुत बहुत बधाई एक श्रेष्ठ काव्य कृति हेतु।

 

-डॉ. राजेश कुमार शर्मा “पुरोहित”

कवि, साहित्यकार, समीक्षक

भवानीमंडी, जिला झालावाड़, राजस्थान

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