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सकट चौथ का व्रत करने से पुत्र होते हैं दीर्घायु एवं घर में स्थिर लक्ष्मी की होती है प्राप्ति: पं. आत्मा राम

माघ महीने में पड़ने वाली सकट चौथ का विशेष महत्व होता है। इस दिन को संकष्टी चतुर्थी, सकट चौथ, वक्रतुण्डी चतुर्थी, माही चौथ या तिलकुटा चौथ के नाम से भी जानते हैं। इस साल सकट चौथ का व्रत 31 जनवरी को रखा जाएगा। सकट चौथ के दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत पूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि सकट चौथ का व्रत रखने से संतान दीर्घायु होती है।

ज्योतिषाचार्य पंडित आत्मा राम पांडेय “काशी” (गुरु जी) ने बताया कि हमारे ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस वर्ष संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत दिन रविवार दिनांक 31-01-2021 को ही मनाया जायेगा क्यों की इस दिन रात्रि 9:40मिनट तक ही तृतीया तिथि भोग कर रही है उसके बाद चतुर्थी तिथि प्रारम्भ हो जा रही है जो अगले दिन रात्रि 07:57 मिनट तक ही रह रही हैं उसके बाद पंचमी तिथि प्रारम्भ हो जा रही है।

हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार तृतीया तिथि सन्युक्त ही चतुर्थी तिथि का व्रत करना विधान है क्यों कि इसका महत्व हमारे पुराणों में सबसे अधिक बताया गया है, वही रविवार को चन्द्रोदय रात्रि में 8:20 मिनट पर होगा ।

सकट चौथ व्रत महत्व- सकट चौथ के दिन भगवान गणेश की पूजा का विधान है। कहते हैं कि श्रीगणेश की सकट चतुर्थी के दिन विधि-विधान से पूजा करने से संतान निरोगी और दीर्घायु होती है। इसके साथ ही ग्रहों की अशुभता दूर होने की भी मान्यता है।

सकट चौथ व्रत पूजा विधि

1. सुबह स्नान ध्यान करके भगवान गणेश की पूजा करें।
2. इसके बाद सूर्यास्त के बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
3. गणेश जी की मूर्ति के पास एक कलश में जल भर कर रखें।
4. धूप-दीप, नैवेद्य, तिल, लड्डू, शकरकंद, अमरूद, गुड़ और घी अर्पित करें।
5. तिलकूट का बकरा भी कहीं-कहीं बनाया जाता है।
6. पूजन के बाद तिल से बने बकरे की गर्दन घर का कोई सदस्य काटता है।

इसी दिन भगवान गणेश अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से निकलकर आए थे। इसीलिए इसे सकट चौथ कहा जाता है। एक बार मां पार्वती स्नान के लिए गईं तो उन्होंने दरबार पर गणेश को खड़ा कर दिया और किसी को अंदर नहीं आने देने के लिए कहा।

जब भगवान शिव आए तो गणपति ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया। भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। पुत्र का यह हाल देख मां पार्वती विलाप करने लगीं और अपने पुत्र को जीवित करने की हठ करने लगीं।

जब मां पार्वती ने शिव से बहुत अनुरोध किया तो भगवान गणेश को हाथी का सिर लगाकर दूसरा जीवन दिया गया और गणेश गजानन कहलाए जाने लगे। इस दिन से भगवान गणपति को प्रथम पूज्य होने का गौरव भी हासिल हुआ। सकट चौथ के दिन ही भगवान गणेश को 33 कोटी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। तभी से यह तिथि गणपति पूजन की तिथि बन गई। कहा जाता है कि इस दिन गणपति किसी को खाली हाथ नहीं जाने देते हैं।

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