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बढ़ती उम्र के साथ घटने लगती है सुनने की क्षमता- सीएमओ

• दुनिया से रहना है कनेक्ट तो कानों का रखें खास ख्याल

• विश्व श्रवण दिवस पर कान के मरीजों की हुई जांच

• जिला अस्पताल सहित स्वास्थ्य केंद्रों में किया गया जागरूक

कानपुर। विश्व श्रवण दिवस पर शुक्रवार को राष्ट्रीय बधिरता बचाव एवं रोकथाम कार्यक्रम के बैनर तले जनपद में विभिन्न कार्यक्रम हुए। इस मौके पर जिला अस्पताल सहित सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में लोगों की कान की जांच भी की गई। साथ ही ग्रामीण और नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी पम्पलेट बांटकर मरीजों को तेज आवाज व शोर कानों के लिए किस प्रकार घातक है इस संदर्भ में विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई। बहरेपन के शिकार से ग्रसित मरीजों के लिए निशुल्क दवा उपलब्ध कराई गई। इसके साथ ही जो मरीज बहरेपन के लिए दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाना चाहते हैं, उन्हें इसकी प्रक्रिया बताई गई।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आलोक रंजन का कहना है कि बढ़ती उम्र के साथ ही सुनने की क्षमता प्रभावित होती जाती है। इसलिए जैसे लोग अपने शरीर के अन्य अंगों का ख्याल रखते हैं ठीक उसी प्रकार से उन्हें अपने कानों का ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों के सुनने की क्षमता का ख्याल जरूर रखना चाहिए क्योंकि यदि बच्चे के सुनने की क्षमता कम होगी तो उसका असर उसकी पढ़ाई पर भी पड़ेगा। जनपद में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के माध्यम से जन्मजात मूक-बधिर बच्चों के नि:शुल्क उपचार की व्यवस्था है। कई बच्चों की नि:शुल्क कॉकलियर इम्प्लांट सर्जरी भी कराई गई है।

मां काशीराम जिला संयुक्त चिकित्सालय के नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ डॉ अतुल सचान ने कहा कि दुनिया से कनेक्ट होने के लिए कानों का दुरुस्त होना जरूरी है। अस्पताल में कानों की लगभग सभी जांचें हो जाती हैं। केपीएम अस्पताल के नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ डॉ आरबी जैसवाल ने बताया की यदि अचानक कम सुनाई देने लगे या कान में तेज या रुक रुक कर दर्द हो कान के दर्द के साथ सिर में दर्द हो कान से पानी जैसा द्रव्य निकले तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और अपना परीक्षण कराएं।

जिला पुरुष अस्पताल, उर्सला में तैनात ऑडियोलॉजिस्ट अंकुर सैनी ने बताया कि कान तीन भागों में बंटा होता है। 60 साल की उम्र पार कर चुके लोगों को कानों की जांच जरूर करानी चाहिए क्योंकि इसी आयुवर्ग के लोगों की सुनने की क्षमता ज्यादा प्रभावित होती है। शून्य से पांच साल के बच्चों में भाषा का विकास होता है, लेकिन जो बच्चे सुन नहीं पाते, वह बोल पाने में भी सक्षम नहीं होते हैं।

यह भी जानें: गैर संचारी रोगों के नोडल अधिकारी डॉ महेश कुमार ने बताया की तेजी से बढ़ते बहरेपन की समस्या से लोगों को जागरूक करने के लिए साल 2007 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘विश्व श्रवण दिवस’ मनाने की घोषणा की थी। इस अवसर के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन एक थीम तैयार करता है। उन्होंने बताया कि इस बार की थीम है ”सभी के लिए कान और श्रवण की देखभाल”। इसका उद्देश्य बहरेपन के शिकार लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना है तथा उनके बेहतर इलाज के लिए सुविधाएं मुहैया करवाना है।

रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर

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