लखनऊ। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय के ऑफिस फॉर इंटरनेशनल अफेयर्स द्वारा “मातृभाषा एक साझी विरासत” विषयक एक गोष्ठी का आयोजन किया गया।
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उक्त संगोष्ठी में लखनऊ विश्वविद्याय में अध्ययनरत विदेशी छात्रों ने मातृभाषा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा एवं प्रस्तुतीकरण दिया। प्रत्येक प्रतिभागी ने ने मातृभाषा के सुभाषित एवं प्रमुख साहित्यिक रचनाओं, आदि पर चर्चा किया।
आयोजन में प्रमुख रूप से मातृभाषा में संचार की सुगमता एवं भाषायी आत्मीयता के तथ्य लगभग सभी प्रतिभागियों की चर्चा में दिखे। प्रमुख रूप से मॉरिशस की नंदिनी जोमुख, अफ़ग़ानिस्तान के अहमद गुल, मुल्ला सलंगी, ताजीकिस्तान के के खोदाजेव इस्कंदर, मोहम्मदमोहसीन, ज़मीरा, तखमीना, लेसोथो की मत्लान्का जस्तिना, गैम्बिया के अल्हागी ओस्मान जल्लोव, मलावी के लेविसन नायसुला, नामीबिया की सेल्मा मुलुंगा, श्रीलंका के अमीन्दा अंजना, बांग्लादेश के मोहम्मद ओहिदुर ज़मान, लखनऊ विश्वविद्यालय के भारतीय छात्र हिमांशु सिंह आदि ने प्रतिभाग किया।
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लेसोथो की जस्तिना ने कहा की यदि हमारे पास आज कोई सपना है तो उसे आज ही पूरा करें, कल के लिए इसे टालने में इसे कल की परेशानियों से जूझना पड़ेगा। अफ़ग़ानिस्तान के गुल अहमद कहते है की दुनिया सुन्दर भाषाओं का एक गुलदस्ता है।
भाषा हमारी सांस्कृतिक पहचान का एक सशक्त माध्यम होता है। मॉरिशस की नंदिनी जोमुख का मानना है की मातृभाषा के साथ साथ अंग्रेजी जैसी संपर्क भाषा के साथ समन्वय वैश्विक आवश्यकता है।
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आलोक कुमार राय ने विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को बधाई देते हुए अपने सन्देश में कहा,”मातृभाषा हमें स्वयं से जोड़ती है और यह विभिन्न अवसरों पर स्वयं से संवाद करने का माध्यम बनती है।
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इसके मानक, प्रतिमान और सूत्र मानवता के सार्वभौम मूल्यों को जागृत किये रखते हैं, और इसके प्रति प्रेम हमें जहां एक और अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों हेतु सजग और प्रेरित रखता है, वहीँ दूसरी ओर हमारी वैश्विक सोच को उर्वर भूमि प्रदान करती है।”
डीन एकेडेमिक्स एवं डीन छात्र कल्याण प्रो पूनम टंडन ने कहा, मातृभाषा के भावों को वैश्विक परिवेश में पुष्पित पल्ल्वित करके हम बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं।
कार्यक्रम का बीज वक्तव्य डायरेक्टर इंटरनेशनल कोलैबोरेशन एवं इंटरनेशनल स्टूडेंट्स एडवाइजर प्रो आरपी सिंह ने दिया और उन्होंने मातृभाषा के बिम्बों को सृजनात्मक रूप से वैश्विक परिवेश में प्रयोग करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।