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एक्सरसाइज से ठीक हो सकता है फ्रोज़न शोल्डर : डॉ. संतोष सिंह

लखनऊ। यूपी ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के 44 वें वार्षिक सम्मेलन “यूपी ऑर्थोकॉन 2020” के दूसरे दिन अलग-अलग राज्यों के प्रतिष्ठित चिकित्सकों ने अपने कार्य क्षेत्र के अनुभवों की जानकारी प्रदान की। सत्र की शुरुआत डॉ. एके गुप्ता मेडल से हुई। अनुभवी चिकित्सकों द्वारा आईसीएल हिप आर्थ्रोप्लास्टी, सिम्पोजियम अपर लेग ट्रामा और जीबीएम जैसे विषयों पर प्रस्तुति दी गयी। लेक्चर सत्र ट्रामा सर्जरी, एक्सिडेंटल केस पर फोकस था ज्वाइंट रिप्लेसमेंट की न्यू टेक्निक की जानकारी दी गयी।

रेडियस जॉइंट सर्जरी अस्पताल के ऑर्थोपेडिक सर्जन, डॉ. संजय श्रीवास्तव ने कहा यह राज्य स्तरीय सम्मेलन हम सभी के लिए फायदेमंद है। हम अपने अनुभव अपने जूनियर सर्जन से साझा करते हैं जिससें उन्हें बहुत तरह की नई जानकारियां मिलती है। उन्होंने दोनों घुटने के एक साथ प्रत्यारोपण पर जानकारी देते हुए बताया कि फिलहाल यह अपवाद है इस पर काफी बात की जा रही है। लेकिन मेरा मानना है कि दोनों घुटने एक साथ बदले जा सकते हैं और इसमें देखा जाए तो मरीज को फाइनेंशियल और मेंटली तरीके से काफी आराम होता है।

ऑर्थोपेडिक सर्जन, डॉ. संतोष सिंह ने कहा कि “कभी कभी कंधा जाम हो जाता है जिसे फ्रोज़न शोल्डर कहते हैं वो कई बार एक्सरसाइज और दवाइयों से ठीक हो जाता है लेकिन कभी-कभी उसमें भी सर्जरी की जरूरत पड़ती है इस सर्जरी में एक माइक्रोस्कोपिक होल कर के उसमें ट्यूब डालकर उसको फ्री किया जाता है तो ये ऑर्थोस्कोपीक प्रोसीजर कहलाता है ऑर्थो मतलब जॉइन्ट और स्कोपी मतलब देखना जॉइन्ट के अंदर देखना।

इसके अलावा घुटने की चोट जब लगती है तो उसमें कई बार फ्रेक्चर नहीं होता है मगर मरीज को दर्द बहुत होता है इसका कारण यह होता है कि या तो कार्टिलेज डैमेज हो जाता है या लिगामेंट नी ज्वाइंट ब्रेक हो जाता है ऐसे केस में हमें प्रॉपर डाइग्नोसिस करने के लिए एमआरआई की जरूरत पड़ती है फिर ऑर्थोस्कोपिक विधि से रिपेयर किया जाता है कुछ एक्सरसाइज और फिजीयोथेरपी के जरिये मरीज अपने सामान्य कंडीशन में लौट आता है ये मरीज के लिए काफी सुविधाजनक होती है और इसमें उसको एक दिन में ही अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है।

केजीएमयू के ऑर्थोपेडिक्स सर्जन डॉ. विनीत शर्मा ने ऑस्टियोपोरोसिस के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह एक साइलेंट किलर है इसकी समस्याएं पहले आ जाती है और पता नहीं चल पाता। यह समस्या मेनोपॉजल महिलाओं में ज्यादा होती है जबकि बच्चों और वयस्कों में जिनमें खाने पीने की आदतों में कमी के कारण होती है उसमें भी ऑस्टियोपोरोसिस का प्रीवेंशन ज्यादा होता है। 30 साल तक केल्शियम की कमी अपने शरीर में नहीं होने देनी चाहिए और खूब एक्सरसाइज करनी चाहिए जिससे हड्डियां मजबूत रहें । विटामिन डी को सही मात्रा में लेना चाहिए जो कि मुख्यतः धूप में मिलता है जो कि अगर आप 11 से 1 बजे के समय धूप में बैठते हैं या एक्सरसाइज करते हैं तो पर्याप्त मात्रा में मिलता है और कैल्शियम भी एक वयस्क में 1000 से 1500 मिलीग्राम हर दिन की जरूरत है यदि ये नही मिलता है तो इन सब की कमियों से ऑस्टियोपोरोसिसहोता है जिससे कि आगे फ्रैक्चर्स होते हैं।

कानपुर के वरिष्ठ ट्रॉमा सर्जन डॉ. संतोष राजपाल ने जिम के प्रचलन पर हड्डियों पर पड़ रहे असर पर जानकारी देते हुए कहा कि, “जिम करने से बायोलॉजिकल एडवांटेज तो बहुत हैं, लेकिन नुकसान भी उतने ही हैं” अगर आप बिना किसी सपोर्ट के वजन उठाते है तो स्लिप डिस्क की आशंका कही ज्यादा होती है।

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