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विकसित भारत का वैश्विक महत्व

   डॉ दिलीप अग्निहोत्री

हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत द्वारा किए जा रहे शांति प्रयासों का महत्त्वपूर्ण है. विश्व स्तर पर इन प्रयासों की सराहना हो रही है। इस मसले पर चीन अकेला पड़ता जा रहा है। अमेरिका ने इस क्षेत्र में भारत के साथ साझा प्रयास करने का संकल्प व्यक्त किया. इसके बाद आसियान देशों का भी भारत को समर्थन मिला है. प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी गणतंत्र दिवस पर आसियान देशों को आमंत्रित कर चुके हैं। इसमें बौद्ध सबसे बड़ा धर्म है। नरेंद्र मोदी ने एक सम्पूर्ण क्षेत्रीय संगठन मेहमान भारतीय गणतंत्र दिवस पर मेहमान बनाया था। आसियान के दस राष्ट्राध्यक्ष, गणतंत्र दिवस में मुख्य समारोह के गवाह बने थे। यह विदेश नीति का नायाब प्रयोग था। जिसे पूरी तरह सफल कहा गया थ। इसने आसियान के साथ भारत के आर्थिक, राजनीतिक, व्यापारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्तों का नया अध्याय शुरू किया था। महत्वपूर्ण यह था कि सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भारत के निमंत्रण को स्वीकार किया। एक्ट ईस्ट की नीति कारगर ढंग से आगे बढ़ाया गया। चीन विश्वास के लायक नहीं है। इसलिए मोदी ने आसियान देशों के साथ रिश्ते सुधारने पर बल दिया।

मोदी की इस नीति से न केवल एशिया में चीन के वर्चस्ववादी रुख को धक्का लगा। इनमें से अनेक देश चीन की विस्तारवादी नीति को पसंद नहीं करते। यह बात आसियान में सामान्य सहमति का विषय है। केवल इसके लिए किसी को पहल करने की आवश्यकता थी। मोदी ने साहस के साथ पहल का ये काम किया। भारत और आसियान देशों के बीच अति प्राचीन सामाजिक व सांस्कृतिक रिश्ते रहे हैं। कई आसियान देशों में बौद्ध बहुसंख्यक हैं। सिंगापुर में तो नब्बे प्रतिशत आबादी बौद्धों की है। इसके अलावा इन सभी देशों में #रामकथा व्यापक रूप से प्रचलित है। यहां के राजकीय प्रतीकों में रामायण से संबंधित चिन्ह मिलते हैं। इंडोनेशिया के मुसलमान भी रामायण संस्कृति पर विश्वास करते हैं। उन्होंने उपासना पद्धति बदली है, लेकिन अपनी सांस्कृतिक विरासत को नहीं छोड़ा। रामलीला का मंचन वहाँ बहुत लोकप्रिय है। ये सब भारत और आसियान देशों के बीच रिश्तों को मजबूत बनाने वाले हैं।

एक्ट ईस्ट नीति की एक अन्य कारण से भी आवश्यकता थी। वह यह कि आसियान का विस्तार भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा तक हो गया था। म्यांमार, कम्बोडिया,लाओस और वियतनाम आसियान के सदस्य बने थे। इससे आसियान भारत के ज्यादा करीब हो गया। स्थापना के समय भारत से इसकी सीमा दूर थी। तब इंडोनेशिया, मलेशिया,फिलीपींस, थाईलैंड, सिंगापुर इसके सदस्य थे। ब्रुनेई, वियतनाम,म्यांमार बाद में सदस्य बने थे। इसीलिए मोदी ने आसियान को लेकर नीति में बदलाव किया।

आसियान के केंद्र में शांतिपूर्ण हिंद-प्रशांत दुनिया की सुरक्षा और समृद्धि के लिए पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने आसियान के सम्मेलन को संबोधित किया। दस देशों और आठ प्रमुख प्लस देशों की भागीदारी के साथ एडीएमएम प्लस क्षेत्रीय सुरक्षा के साथ ही विश्व शांति में भूमिका का निर्वाह कर सकता है। यह देश मिलकर दुनिया की आधी आबादी का हिस्सा हैं। हम ऐसे समय में मिल रहे हैं जब दुनिया विघटनकारी राजनीति से बढ़ते संघर्ष को देख रही है। सबसे बड़ा खतरा अंतरराष्ट्रीय और सीमा पार आतंकवाद से है। उदासीनता अब प्रतिक्रिया नहीं हो सकती, क्योंकि आतंकवाद ने विश्व स्तर पर पीड़ित पैदा किये हैं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तत्काल और दृढ़ हस्तक्षेप करने की जरूरत है।

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आतंकवादी समूहों ने धन हस्तांतरण और समर्थकों की भर्ती के लिए नए युग की तकनीकों का सहारा लिया है और समर्थित महाद्वीपों में अंतर्संबंध बनाए हैं। साइबर अपराध भी नई तकनीकों के बढ़ते उपयोग की ओर इशारा करते हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-रोधी समिति की नई दिल्ली बैठक में इन घटनाक्रमों पर गंभीरता से ध्यान दिया है। समिति ने आतंकवादी उद्देश्यों के लिए नई और उभरती प्रौद्योगिकियों के उपयोग का मुकाबला करने के लिए ‘दिल्ली घोषणा’ को अपनाया। #आतंकवाद बड़ा खतरा बने रहने के कारण कोरोना महामारी के बाद उभरने वाली अन्य सुरक्षा चिंताओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। चल रहे भू-राजनीतिक विकास ने ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों की ओर दुनिया का ध्यान खींचा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के एक जिम्मेदार सदस्य के रूप में भारत ने बड़े पैमाने पर मानवीय सहायता और खाद्यान्न देने में अपने सहयोगियों के साथ काम किया है।

रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान के आधार पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी व्यवस्था का आह्वान करता है। भारत बातचीत के माध्यम से विवादों का शांतिपूर्ण समाधान और अंतरराष्ट्रीय नियमों और कानूनों का पालन करने में विश्वास रखता है। रक्षा मंत्री ने कहा कि हम उन जटिल कार्रवाइयों और घटनाओं के बारे में चिंतित हैं, जिन्होंने भरोसे को खत्म करके क्षेत्र में शांति और स्थिरता को कमजोर कर दिया है। भारत समुद्री विवादों के शांतिपूर्ण समाधान और अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करने के लिए तैयार है। दक्षिण चीन सागर पर आचार संहिता के तहत चल रही बातचीत पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से यूएनसीएलओएस के अनुरूप होगी. उन राष्ट्रों के वैध अधिकारों और हितों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालना चाहिए जो इन चर्चाओं में शामिल नहीं हैं। हमारा मानना है कि व्यापक आम सहमति को दर्शाने के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा पहलों को परामर्शी और विकासोन्मुख होना चाहिए।

भारत इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने और वैश्विक आम लोगों की सुरक्षा के लिए एडीएमएम प्लस देशों के बीच व्यावहारिक, दूरंदेशी और परिणामोन्मुख सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. हरि कुमार ने हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद के चौथे संस्करण का शुभारंभ किया था. उन्होंने कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र के समग्र विकास और समृद्धि में भारत का सक्रिय योगदान रहा है। समकालीन दुनिया की बढ़ती वास्तविकताएं भू-राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से भारतीय और प्रशांत महासागरों के संगम की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। भारतीय नौसेना और नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन को विशेष रूप से दुनिया के कुछ प्रमुख विशेषज्ञों और विचारकों की मेजबानी करने का सौभाग्य मिला है, जो इंडो-पैसिफिक के प्रबंधन, संरक्षण बनाए रखने और समुद्री डोमेन को सुरक्षित रखने की पहल पर चर्चा करेंगे। समुद्री राष्ट्र के रूप में भारत ने हमेशा समुद्र को प्रेरणा के स्रोत के साथ-साथ विकास, समृद्धि और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के चालक के रूप में देखा है।

भारत को हिंद महासागर में एक सहूलियत की स्थिति प्राप्त है और इस क्षेत्र के समग्र विकास और समृद्धि में सक्रिय योगदानकर्ता रहा है। समकालीन दुनिया की बढ़ती वास्तविकताएं भू-राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से भारतीय और प्रशांत महासागरों के संगम की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। इंडो-पैसिफिक में कई चुनौतियां हैं जिन्हें हमें दूर करना होगा। इन चुनौतियों को ‘त्रिमूर्ति’ के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें पहला है बाहरी प्रभाव और दखलंदाजी। इससे निपटने के लिए समावेशी और अभिनव दृष्टिकोण के माध्यम से आपसी विकास और समृद्धि को बढ़ावा देना होगा। चीन की ओर इशारा करते हुए नौसेना प्रमुख ने पूरे क्षेत्र में सुरक्षित वातावरण तैयार करके क्षेत्र को अस्थिर करने की कोशिश करने वाली ताकतों से रक्षा करने पर जोर दिया। बाहरी प्रभावों के बारे में उन्होंने कहा कि #महाशक्ति प्रतिद्वंद्विता और बढ़ती बहु-ध्रुवीयता से प्रेरित, वैश्विक प्रतिस्पर्धा को फिर से आकार देना होगा। इसके अलावा कई प्राकृतिक आपदाओं और समुद्र के बढ़ते जल स्तर के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरों की चुनौती भी हमारे सामने है। विघटनकारी प्रौद्योगिकियां, सैन्य और नागरिक डोमेन में विकल्पों की एक विस्तृत शृंखला की पेशकश करती हैं।

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साइबर डोमेन, तकनीकों के साथ-साथ लक्ष्यों का उपयोग करते हुए बढ़ता हथियारीकरण भी बड़ा खतरा है। ये चुनौतियां भारत के लिए या इस क्षेत्र के किसी अन्य देश के लिए अद्वितीय नहीं हैं। हम यह भी मानते हैं कि इन चुनौतियों को अकेले एक राष्ट्र दूर नहीं कर सकता है। इसके लिए इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव हमारे सामूहिक प्रयासों को सिंक्रनाइज़, तालमेल और चैनलाइज़ करने का अवसर प्रदान करता है। समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती, अवैध मानव प्रवासन, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी, अवैध मछली शिकार, समुद्री आतंकवाद ने सुरक्षा मैट्रिक्स को और जटिल बना दिया है। यह पूरी तरह स्पष्ट है कि समृद्ध हिंद-प्रशांत शांतिपूर्ण समुद्री क्षेत्र पर टिका है। आईपीओआई का समुद्री सुरक्षा स्तंभ दोस्तों और भागीदारों के बीच सहयोगात्मक जुड़ाव के माध्यम से इस महत्वपूर्ण तत्व का प्रबंधन करना चाहता है। यह इंडो-पैसिफिक में अब तक की सबसे व्यापक रूपरेखा का प्रतिनिधित्व करता है।

आईपीओआई का उद्देश्य नए संस्थान बनाना नहीं है, बल्कि पारस्परिक हित के क्षेत्रों की पहचान करके मौजूदा तंत्र का लाभ उठाना है। इसलिए ‘भारत-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद’ के वर्तमान संस्करण का विषय ‘हिंद-प्रशांत महासागर पहल का संचालन’ रखा गया है। आईपीओआई शांतिपूर्ण और समृद्ध भारत-प्रशांत की दिशा में हमारे प्रयासों को सिंक्रनाइज़ और तालमेल करने की अपार क्षमता रखता है। इंडो-पैसिफिक रीजनल डायलॉग हमारी संबंधित नीतियों और पहलों को आगे बढ़ा सकता है। ‘ब्लू इकोनॉमी’ की संभावनाएं भी परिवर्तनकारी क्षमता रखती हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश देशों के पास अपने समुद्री संसाधनों का दोहन करने की सीमित क्षमता है। जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों से ये चुनौतियां और अधिक बढ़ जाती हैं। इन पर्यावरणीय चुनौतियों के लिए विश्वसनीय, व्यावहारिक और स्थायी समाधानों की आवश्यकता है। इंडो-मलय-फिलीपींस द्वीपसमूह दुनिया की समुद्री जैव विविधता की अधिकतम मात्रा की मेजबानी करता है। कंबोडिया के सिएम रीप में मंगलवार को भारत-आसियान रक्षा मंत्रियों की पहली बैठक हुई, जिसे ‘आसियान-भारत मैत्री वर्ष’ के रूप में भी नामित किया गया है।

बैठक की सह-अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कंबोडिया के उप प्रधान मंत्री और रक्षा मंत्री जनरल टी बान ने की। रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत आसियान देशों के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है।भारत आसियान के साथ ऐतिहासिक, मजबूत और व्यापक रणनीतिक साझेदारी साझा करता है। भारत एडीएमएम प्लस और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन जैसे आसियान बहुपक्षीय मंचों के साथ जुड़ाव को बहुत महत्व देता है। पहली भारत-आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान सिंह ने भारत-आसियान रक्षा संबंधों के दायरे और गहराई को और बढ़ाने के लिए दो प्रमुख पहलों का प्रस्ताव दिया। रक्षा मंत्री ने स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए शांति मिशनों में महिला अधिकारियों के महत्व को रेखांकित किया।

राजनाथ सिंह के दूसरे प्रस्ताव में ‘समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण पर भारत-आसियान पहल’ थी जिसमें समुद्री प्रदूषण के महत्वपूर्ण मुद्दे को संबोधित करने की दिशा में युवाओं की ऊर्जा को चैनलाइज करना शामिल है। राजनाथ सिंह ने आसियान सदस्यों को एनसीसी कैडेट्स से भारतीय समुद्र तटों की सफाई और भारतीय तटीय समुदाय में प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए किए गए महत्वपूर्ण कार्यों की जानकारी दी। उन्होंने इस दिशा में सामूहिक प्रयास के लिए एनसीसी और आसियान देशों के समकक्ष युवा संगठनों के बीच समन्वय का सुझाव दिया। उन्होंने समुद्री प्रदूषण से निपटने के लिए चेन्नई में भारत-आसियान समुद्री प्रदूषण प्रतिक्रिया केंद्र की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा। कहा कि भारत-प्रशांत क्षेत्र में आसियान की केंद्रीयता भारत की एक्ट ईस्ट नीति की आधारशिला है। रक्षा मंत्री की दोनों पहलों का आसियान के रक्षा नेतृत्व ने गर्मजोशी से स्वागत किया और सर्वसम्मति से इसकी व्यावहारिकता और प्रासंगिकता का समर्थन किया। आसियान के रक्षा मंत्रियों ने भी इस क्षेत्र में भारत की सकारात्मक भूमिका को स्वीकार किया। रक्षा मंत्री ने मुक्त, खुले, समावेशी और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक के लिए भारत की निरंतर वकालत से भी अवगत कराया। साथ ही क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा के लिए भारत और आसियान को मिलकर कार्य करेंगे।

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