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भारतीय चिंतन का वैश्विक महत्व

 डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

वर्तमान समय में दुनिया के समक्ष अनेक समस्याएं है। एक बड़ी आबादी गरीबी कुपोषण का सामना करने को विवश है। शुद्ध पेयजल व स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। पर्यावरण संकट बढ़ रहा है। आतंकवाद मानवता के समक्ष संकट बना हुआ है। लेकिन इन समस्याओं के समाधान में विश्व समुदाय गंभीर नहीं है। इतना ही नहीं चीन व पाकिस्तान जैसे देश तो हिंसक तत्वों को संरक्षण दे रहे है। उनका बचाव कर रहे है। व

स्तुतः ये देश अपनी विरासत व विचारधारा पर ही अमल कर रहे है। जिसमें हिंसा और वैमनस्य का असर है। इनकी मानसिकता विस्तारवादी है। दूसरी तरफ भारतीय चिंतन है। इसमें सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना की गई।

प्रकति के संरक्षण का सन्देश दिया गया। नदियों को मातृवत माना गया। इसी चिंतन पर चल कर वसुधा को बेहतर बनाया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा और फिर मन की बात में नरेंद्र मोदी ने इन तथ्यों का उल्लेख किया। बसुधैव कुटुंबकम की कल्पना भारतीय दर्शन की विशेषता है। ऐसा उदार चिंतन दुनिया की अन्य सभ्यताओं में दुर्लभ है।

भारतीय ऋषियों ने महोपनिषद् में कहा – अयं निजःपरो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।

अर्थात यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है,इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो सम्पूर्ण धरती ही परिवार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में संबोधन इसी विचार के अनुरूप था। संकुचित व असहिष्णु विचारों ने दुनिया में अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। आतंकवाद का विस्तार इसका प्रमाण है। जबकि परस्पर सहयोग से अनेक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। नरेंद्र मोदी कि छठ पूजा नदियों की स्‍वच्‍छता के लिए बड़ा अवसर है। कुछ दिनों में छठ के लिए नदियों की सफाई शुरू हो जाएगी। उन्‍होंने विश्‍व नदी दिवस का उल्लेख किया। कहा कि हम नदियों को मां कहते हैं। इनके लिए गीत गाते हैं। सवाल यह है कि ये नदियां प्रदूषित कैसे हो जाती हैं। नदियों का स्मरण करने की परंपरा आज लुप्त हो गई है। या कहीं अल्पमात्रा में बची है।

यह बहुत बड़ी परंपरा थी। जो प्रातः में स्नान करते समय ही विशाल भारत की एक यात्रा करा देती थी,मानसिक यात्रा।आजकल एक विशेष ई आक्शन चल रहा। यह इलेक्ट्रानिक नीलामी उन उपहारों की हो रही है, जो नरेंद्र मोदी को समय समय पर लोगों ने दिए हैं। इस नीलामी से जो पैसा आएगा। वह नमामि गंगे अभियान के लिये ही समर्पित किया जाता है। भारतीय शास्त्रों में नदियों में जरा सा प्रदूषण करने को भी गलत बताया गया है। हम नदियों की सफाई और उन्हें प्रदूषण से मुक्त करने का प्रयास सबके प्रयास और सहयोग से कर सकते हैं। नमामि गंगे मिशन आज आगे बढ़ रहा है। इसमें सभी लोगों के प्रयास, जगजागृति जन आंदोलन की बड़ी भूमिका है। हमारे लिए नदियां एक भौतिक वस्तु नहीं है। हमारे लिए नदी एक जीवंत इकाई है। तभी तो हम नदियों को मां कहते हैं। हमारे कितने ही पर्व, त्योहार उत्सव इन माताओं की गोद में भी होते हैं। भारत में स्नान करते समय एक श्लोक बोलने की परंपरा रही है। गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति।

नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिं कुरु। पहले हमारे घरों में परिवार के बड़े ये श्लोक बच्चों को याद करवाते थे। इससे हमारे देश में नदियों को लेकर आस्था भी पैदा होती थी। विशाल भारत का एक मानचित्र मन में अंकित हो जाता था। नदियों के प्रति जुड़ाव बनता था। नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत की प्रगति दुनिया की प्रगति का बड़ा आधार है। भारत के विकास से दुनिया की प्रगति सकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है। जैसे जैसे भारत का विकास होगा दुनिया का विकास होगा।

भारत में जैसे सुधार होंगे दुनिया का रूपांतरण होगा। भारतीय विदेश नीति के विश्व कल्याण के संदेश को प्रकट करता है। दुनिया के सामने मौजूद विभिन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत की ओर से किए जा रहे प्रयासों का उल्लेख भी प्रधानमंत्री के संबोधन में था। विश्व की भलाई के लिए भारत ने कोरोना वैक्सीन की दुनिया के अन्य देशों को आपूर्ति बहाल की है। मोदी ने जलवायु परिवर्तन के संबंध में भारत के महत्वकांक्षी दृष्टिकोण को भी प्रतिपादित किया। जिसमें अक्षय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन पर जोर दिया जाना शामिल है

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