उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है। यहीं रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ था। यहां के सकरौरा घाट में अगस्त मुनि का आश्रम था। यहां के राजघराने भी हमेशा चर्चा में रहते आए हैं। गोंडा जिले की दो विधानसभाओं में आजादी से लेकर अब तक दो राज घरानाओं का वर्चस्व बरकरार है। इन राज घरानों में मनकापुर ज्यादा शक्तिशाली है। जिसका प्रभाव मनकापुर और गौरा विधानसभा में ज्यादा रहता है। जबकि, करनैलगंज का बरगदी कोर्ट का प्रभाव करनैलगंज में पूरी तरह से रहता है। करनैलगंज में एक तीसरा भी राज घराना है। यहां बरगदी कोर्ट और भभुवा राज घराने के बीच 36 का आंकड़ा रहता है। इस बार करनैलगंज के विधायक अजय प्रताप सिंह का न सि़र्फ टिकट कट गया है, बल्कि बगावत भी हो गयी है। अब अपने सुपुत्र को उन्होंने सपा से सदस्यता दिलवाकर योगेश प्रताप सिंह की मदद करने की तैयार की है।
बीजेपी ने करनैलगंज सीट से अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया की जगह, जिस अजय कुमार सिंह को टिकट दिया है। उनका राजनीतिक इतिहास बस इतना है कि इनकी पत्नी विकास खंड परसपुर की ब्लॉक प्रमुख हैं। एक तरफ समाजवादी पार्टी ने करनैलगंज विधानसभा से कई बार विधायक और सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके योगेश प्रताप सिंह को अपना प्रत्याशी घोषित कर रखा है। वहीं, भाजपा नेतृत्व की ओर से नए चेहरे पर भरोसा करना कितना कारगर साबित होगा यह तो 10 मार्च को ही सिद्ध होगा, लेकिन बीजेपी के मौजूदा विधायक लल्ला भैया, जिन्हें अबकी से बीजेपी ने टिकट नहीं दिया है, ने अपने दोनों बेटों और 5000 समर्थकों के साथ सपा का समर्थन करने का एलान कर दिया। अब चुनाव में वो सपा के योगेश प्रताप का समर्थन करेंगे। अजय प्रताप का समर्थन पाने के बाद योगेश प्रताप सिंह ने कहा कि अब गोंडा की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। बता दें, कि योगेश प्रताप सिंह और अजय प्रताप सिंह अलग अलग राजघराने से आते हैं जिनके बीच छत्तीस का आंकड़ा रहता था। वहीं, अब करनैलगंज इलाके के दोनों राजनीतिक दुश्मन और राजघराने एक हो गए हैं। 37 साल बाद, बरगदी कोट और भभुआ कोट का एक बैनर तले संगम हुआ। वहीं, दोनों राजघरानों के एक होने से भाजपा प्रत्याशी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
बात करनैलगंज विधानसभा सीट की सियायत की अगर की जाए तो यहां पर अधिकांश समय तक राजनीति दो घरानों के बीच ही सिमटी रही। जिसमें धनावा स्टेट के कुंवर अजय प्रताप सिंह लल्ला भैया और पूर्व राज्यमंत्री योगेश प्रताप सिंह का घराना शामिल रहा। अधिक समय और सबसे ज्यादा इस सीट पर, हिंदू महासभा और भाजपा के प्रत्याशी ही जीतते आये हैं। जबकि यहां से कांग्रेस, सपा और बसपा के प्रत्याशी भी जीते हैं।
इस विधानसभा की अहम बात यह है कि यहां पार्टी के सिम्बल पर कम, व्यक्तिगत तौर पर प्रत्याशियों के बीच चुनाव होता आया है। ठाकुर मतदाता बाहुल्य सीट होने के कारण यहां पर सबसे ज्यादा विधायक भी इसी जाति से निर्वाचित होते रहे हैं। 1980 और 1985 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी उमेश्वर प्रसाद सिंह ने जीत दर्ज की। 1989 में निर्दलीय प्रत्याशी अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया ने जीत दर्ज की। 1991 से पहले वह भाजपा में शामिल हो गए, फिर उन्होंने बीजेपी से 1991 में जीत दर्ज की और भाजपा का खाता खोला।
1993 और 1996 के विधानसभा चुनाव में भी वह लगातार चुनाव जीते हैं। इस तरह वह लगातार चार विधानसभाओं में निर्वाचित हुए हैं। 2002 में बसपा से योगेश प्रताप सिंह ने जीत दर्ज की। 2007 में कांग्रेस के प्रत्याशी अजय प्रताप सिंह ने जीत दर्ज की। उन्होंने समाजवादी पार्टी के योगेश प्रताप सिंह को 30000 मतों से हराया। वहीं, 2012 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर के प्रत्याशी योगेश प्रताप सिंह ने दूसरी बार जीत दर्ज की। इस बार भी उन्होंने बहुजन समाज पार्टी का दामन छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए।
2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी अजय प्रताप सिंह विजयी हुए। इस चुनाव में कुल 14 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। वहीं, भाजपा के अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया को 82864 वोट मिले. वहीं दूसरे स्थान पर सपा की योगेश प्रताप सिंह को 54462 वोट मिले। जबकि, बसपा के प्रत्याशी संतोष तिवारी तीसरे स्थान पर रहे। इस तरह इस सीट पर पांच बार अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया ने जीत दर्ज की। वहीं, इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने विधायक कुंवर अजय प्रताप सिंह लल्ला भैया के बजाय अजय कुमार सिंह को मैदान में उतार कर लोगों को चौंका दिया है।