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स्कूलों में राखी, तिलक-मेहंदी लगाने पर बच्चों का उत्पीड़न अस्वीकार्य, आयोग ने राज्यों से मांगी रिपोर्ट

त्योहारों के मौके पर स्कूलों में विशेष आयोजनों के नाम पर बच्चों को शारीरिक व मानसिक दबाव देने, उनमें भेदभाव करने और परेशान किए जाने को कॉरपोरल दंड (शारीरिक दंड) बताते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने इससे बचने का निर्देश जारी किया है।

एनसीपीसीआर अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा, आयोग ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के शिक्षा विभाग को निर्देश जारी किए हैं कि यह सुनिश्चित किया जाए कि आगामी त्योहारी मौसम में स्कूलों में राखी, मेहंदी, तिलक आदि लगाकर आने वाले या धार्मिक प्रथाओं को लेकर बच्चों पर किसी तरह का दबाव न डाला जाए और उन्हें परेशान न किया जाए। आयोग ने विभाग से उठाए गए कदम, स्कूलों को जारी आदेश और अनुपालन रिपोर्ट 17 अगस्त तक उसे सौंपने को कहा है।

देशभर में स्कूली शिक्षा विभाग के प्रधान सचिवों को जारी पत्र में एनसीपीसीआर अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा, स्कूलों में बाल संरक्षण कानूनों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए, खासकर त्योहारों के दौरान। पत्र में स्कूलों की ओर से बच्चों की सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों में भागीदारी पर प्रतिबंध लगाने की चिंताजनक प्रवृत्ति का जिक्र किया गया।

कानूनगो ने उदाहरण देते हुए बताया गया कि स्कूली छात्रों को रक्षाबंधन जैसे त्यौहारों के दौरान राखी, तिलक या मेहंदी लगाने जैसी सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं को लेकर उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। इसके कारण अक्सर शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न होता है। आयोग ने कहा कि यह आरटीई अधिनियम की धारा 17 का सीधा उल्लंघन है, जो स्कूलों में शारीरिक दंड या किसी तरह के भेदभाव को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करता है।

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