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Holi Special Story: होली में नहीं होते हैं आठ दिनों तक कोई भी शुभ-कार्य, जानिए क्या है धार्मिक मान्यता और क्या मानता है विज्ञान

कहते हैं एक बहन को अपना भाई और भाभी जितने प्यारे लगते हैं, उससे कहीं ज़्यादा एक बुआ को अपने भतीजे-भतीजे अज़ीज़ होते हैं। आख़िर ये बच्चे हैं भी तो उसके भाई के ही। अगर ऐसा है तो फिर, होलिका ने अपने भतीजे विष्णु-भक्त प्रह्लाद को मारने की क्यों ठानी? क्या सिर्फ इसलिए कि वो विष्णु-भक्त था? या इसलिए, कि वह अपने भाई के आदेश को मानने के लिए मजबूर थी। आख़िर कौन थी होलिका….??

लखनऊ। लोक मान्‍यता है कि होलिका अष्‍टक लगने के बाद कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जा सकते। सदियों से चली आ रही इस प्रथा की धार्मिक मान्‍यता के अनुसार, होलाष्टक शुरु होने के बाद, कोई भीं शुभ कार्य नहीं किए जाते, नहीं तो होलिका माता नाराज़ हो जाएंगी। अब सवाल ये है कि जिसे हम माता कह कर बुला रहे हैं, वो आख़िर, किसी भी शुभ कार्य को करने से अपने बच्चों से नाराज़ क्यों हो जाएंगी? होलाष्टक क्या है और सबसे बडा सवाल ये है कि हम क्यों मनाते हैं होली? चलिए, ऐसे ही कुछ और भी सवालों के जवाब ढूंढते हैं-

क्या है होलाष्टक?

इस सवाल का जवाब आदिदेव महादेव भोले नाथ की नगरी उज्जैन में मिलता है। उज्जैन के धर्म विज्ञान शोध संस्थान में होलाष्टक पर शोध किया गया है। संस्‍थान के अध्‍यक्ष डॉ जे जोशी और पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि अगर होलाष्टक शब्द का संधि-विच्छेद किया जाए तो बनता है होला+अष्टक। यानी होली के पहले के आठ दिन।

दोस्तों यानी, होली के पहले के वो आठ दिन जब, मौसम ठंडक के जाने का इशारा कर रहा होता है और गर्मी अपने आने की गर्माहट दे रही होती है। आमों के पेड़ों पर बौर आने लगती है। सारा माहौल, फाल्गुनी होने लगता है। होली के त्योहार की तैयारी शुरु होने लगती है और दिल मस्ती में कहता है- जब फागुन रंग झलकते हों तब देख बहारें होली की….!!

होलाष्टक में कैसा होता है मौसम?  

डॉ जे जोशी और पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि इन दिनों वातावरण में बैक्‍टीरिया वायरस अधिक सक्रिय होते हैं। सर्दी से गर्मी की ओर जाते इस मौसम में शरीर पर सूर्य की पराबैंगनी किरणें विप‍रीत प्रभाव डालती हैं। ये दिन संकेत देते हैं कि खट्टे फलों का सेवन अधिक करना चाहिए। अधिक गर्म पदार्थों का सेवन कम कर देना चाहिए। होलिका दहन पर जो अग्नि निकलती है वो शरीर के साथ साथ आसपास के बैक्‍टीरिया और नकारात्‍मक ऊर्जा को समाप्‍त कर देता है।

जीवनचर्या में बदलाव का इशारा देता है मौसम 

डॉ जे जोशी के अनुसार मौसम में बदलाव के साथ शरीर मेंं हार्मोंस और एंजाइम्‍स में भी परिवर्तन होते हैं। दिमाग, सेक्‍सुअल हार्मोंस, हार्ट, लीवर आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। होली पूर्व के ये आठ दिन संकेत देते हैं कि जीवनचर्या में बदलाव कर लिया जाए।

16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता

होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है। यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते है। इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।

धार्मिक मान्‍यता के अनुसार, क्या है कहानी?

धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव की तपस्या भंग करने की कोशिश करने पर भोलेनाथ से कामदेव को फाल्गुन महीने की अष्टमी को भस्म कर दिया था। प्रेम के देवता कामदेव के भस्म होते ही पूरे संसार में शोक की लहर फैल गई थी। तब कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से क्षमा याचना की और भोलेनाथ ने कामदेव को फिर से जीवित करने का आश्वासन दिया। इसके बाद लोगों ने रंग खेलकर खुशी मनाई थी। कुछ ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि होली के आठ दिन पहले से प्रहलाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप ने काफी यातनाएं देना शुरू कर दिया था। आठवें दिन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठाकर मारने का प्रयास किया गया था लेकिन आग में ना जलने का वारदान पाने वाली होलिका जल गई थी और बालक प्रह्लाद बच गया था। ईश्वर भक्त प्रह्लाद के यातना भरे आठ दिनों को शुभ नहीं माना जाता है इसलिए कोई भी शुभ काम ना करने की परंपरा है।

होलिका दहन की पौराणिक कथा-

‘होलिका दहन’ की पौराणिक कथा के अनुसार, इस त्योहार को लेकर सबसे प्रचलित है प्रहलाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की कहानी। राक्षस हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। वहीं, हिरण्यकश्यप भगवान नारायण को अपना घोर शत्रु मानता था। पिता के लाख मना करने के बावजूद प्रह्लाद विष्णु की भक्ति करता रहा। असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने कई बार अपने पुत्र को मारने की, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान मिला था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती। उसने अपने भाई से कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि की चिता पर बैठेगी और उसके हृदय के कांटे को निकाल देगी। वह प्रह्लाद को लेकर चिता पर बैठी भी, पर भगवान विष्णु की ऐसी माया कि होलिका जल गई, जबकि प्रह्लाद को हल्की सी आंच भी नहीं आई।

होलिका दहन से जुड़ी एक कहानी और-

होलिका दहन से जुड़ी एक कथा भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। श्री राम के एक पूर्वज रघु, के राज में एक असुर नारी थी। वह नगरवासियों पर तरह-तरह के अत्याचार करती। उसे कोई मार भी नहीं सकता था, क्योंकि उसने वरदान का कवच पहन रखा था। उसे सिर्फ बच्चों से डर लगता। एक दिन गुरु वशिष्ठ ने बताया कि उस राक्षसी को मारने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे नगर के बाहर लकड़ी और घास के ढेर में आग लगाकर उसके चारों ओर नृत्य करें, तो उसकी मौत हो जाएगी। फिर ऐसा ही किया गया और राक्षसी की मौत के बाद उस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।

कहते हैं एक बहन को अपना भाई और भाभी जितने प्यारे लगते हैं, उससे कहीं ज़्यादा एक बुआ को अपने भतीजे-भतीजे अज़ीज़ होते हैं। आख़िर ये बच्चे हैं भी तो उसके भाई के ही। अगर ऐसा है तो फिर कुछ सवाल और भी उठते हैं। क्या हैं वो सवाल आइए जानें-

  • होलिका ने अपने भतीजे विष्णु-भक्त प्रह्लाद को मारने की क्यों ठानी?
  • क्या सिर्फ इसलिए कि वो विष्णु-भक्त था?
  • या इसलिए, कि वह अपने भाई के आदेश को मानने के लिए मजबूर थी।

जिस होली के त्योहार को हम सदियों से हर्षोल्लास के साथ मनाते आए हैं,

  • कहीं वो होलिका माता का कोई आदेश या मरने से पहले की उनकी कोई अंतिम इच्छा तो नहीं?
  • आख़िर, होलाष्टक का राज़ क्या है?
  • क्यों नहीं होते हैं शुभ कार्य?
  • क्या वाक़ई में होलिका अपने भतीजे को जला देना चाहती थी?
  • आख़िर कौन थी होलिका….?

इन तमाम सवालों और तर्कों के जवाब यदि कभी मिले तो ज़रूर प्रेषित किए जाएंगे, अभी के लिए तो आप ये जानिए कि- 

कब होगा होलिका दहन?

होलिका दहन के लिए प्रदोष काल का समय चुना जाता है, जिसमें भद्रा का साया न हो. इस साल होलिका दहन 17 मार्च दिन गुरुवार को है. 17 मार्च को होलिका दहन का मुहूर्त रात 09 बजकर 06 मिनट से रात 10 बजकर 16 मिनट तक है. माना जाता है कि होलिका दहन करने से पहले होलिका की पूजा करने से आपके मन से सभी प्रकार के भय दूर होते हैं और ग्रहों के अशुभ प्रभाव में भी राहत मिलती है। होलिका की पूजा में ही यह कथा भी पढ़े जाने का चलन काफी समय से चला आ रहा है।

होलिका दहन पर नरसिंह मंत्र-1

नमस्ते नरसिंहाय प्रह्लादाह्लाद दायिने

हिरण्यकशिपोर्वक्षः शिला-टङ्क-नखालये

इतो नृसिंहः परतो नृसिंहो

यतो यतो यामि ततो नृसिंहः

बहिर्नृसिंहो हृदये नृसिंहो

नृसिंहमादिं शरणं प्रपद्ये

 

नरसिंह मंत्र-2

उग्रं वीरं महा विष्णुम ज्वलन्तम सर्वतो मुखम्

नृसिंहं भीभूतम् भद्रम मृत्युर्मृत्युम् नाम: अहम्

उग्र वीरम महा विष्णुम ज्वालां सर्वतो मुखम्

नृसिंहमं भेशंम् भद्रं मृत्योर्मित्यं नमाम्यहम्

 

होलिका दहन पर महालक्षमी मंत्र का जाप-

मस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुर पूजिते!

शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

नमस्तेतु गरुदारुढै कोलासुर भयंकरी!

सर्वपाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्व दुष्ट भयंकरी!

सर्वदुख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

सिद्धि बुद्धि प्रदे देवी भक्ति मुक्ति प्रदायनी!

मंत्र मुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

 

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