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आखिर कब तक बेरोजगारी की भट्टी में जलता रहेगा देश का युवा…

आज के वक्त बढ़ती हुई बेरोजगारी हमारे देश के लिये ही नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए भंयकर रोग बनती जा रही हैं। आज के समय के हालातों को देखकर ऐसा लगता है जैसे बेरोजगारों की पूरी सेना हमारे समाज की ओर बढ़ी आ रही हैं। ऐसी स्थिति को देखकर वास्तव में बहुत चिंता हो रही हैं कि अगर ऐसे ही हालात रहे तो आगे क्या स्तिथि होगी। बेरोजगारी के कारण भुखमरी बढ़ेगी, लोग गलत काम लूट पाट करना शुरू कर देगें, तब के हालात क्या होगेे। ऐसे हालात डरावना सपने जैसे हैं, जो हमें आंख खोलने पर मजबूर करते हैं।

बेरोजगार युवक- युवतियों-

आज देश में लाखों की संख्या में युवा नौकरी की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। पढ़े-लिखे डिग्री धारकों को जब कहीं नौकरी नहीं मिलेगी तो उनका क्या होगा? ऐसे बेरोजगार युवक- युवतियों का भविष्य क्या होगा? इनके साथ जुड़े उन परिवारों का क्या होगा जिन की आशाएं केवल यही तक सीमित थी की उनका बेटा -बेटी पढ़-लिखकर जवान होगें, नौकरी करेगें और बुढ़ापे में उनका सहारा बनेगें। आशाओं के सहारे जीने वाले ऐसे लोग एक दिन गिन-गिन के काटते हैं। जैसे कोई किसान फसल बोकर एक-एक दिन गिनता है वह हर रोज अपने खेतों में जाकर फसल की ओर आशा भरी दृष्टि से देखता हैं। उस फसल के साथ ही तो उसके परिवार का भविष्य जुड़ा होता है। कितने सपने उस किसान व उसके परिवार ने देखे होते हैं। जरा कल्पना कीजिए जब उसकी फसल नष्ट हो जाएगी अथवा किसी कारण वश उसका फल प्राप्त नहीं कर पायेगा तो उसपर क्या बीतेगी।

ऐसी ही हजारों आशाएं माता-पिता अपने बच्चों से लगाते हैं खुद भूखें रहकर अपने बच्चों को पढ़ाते हैं। स्वयं भले फटे पुराने कपड़े पहने लेकिन बच्चों के लिए अच्छे कपड़े, अच्छी सुविधाएं मुहैया कराते हैं। आखिर किस लिए इसलिए न कि उनके बच्चे बड़े होकर कोई अच्छी सी नौकरी करेगें, धन कमायेंगे, फिर वही घर के सारे खर्च चलायेंगे, जब उनके बच्चें उन्हें सारी सुख-सुविधाएं देगें तो वो अपने सारे दुख दर्द भूल जाएगें।

जिदंगी में कभी हार मत मानों-

बढ़ती बेरोजगारी के कारण न जानें परिवार घुट-घुट के जीते हैं। न जाने कितने युवा बेरोजगारी, भुखमरी, कर्जदारी के चलते आत्महत्या कर लेते हैं। 28 अक्टूबर 2017 की एक घटना अखबार मे प्रकाशित हुई है। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में एक बेरोजगार नवयुवक अनुज वाजपेयी उम्र 22 वर्ष ने मुख्यमंत्री को खत लिख फांसी लगाकर आत्मा हत्या कर ली। सुसाइड नोट में युवक ने अपने पिता की लाचारी और कर्ज से परेशान होकर और खुद के बेरोजगार होने की दास्तां लिखीं। आखिर कब तक बेरोजगारी-लाचारी के चलते युवा आत्महत्या करते रहेगें। मैं ऐसे युवा वर्ग के साथियों से कहना चाहूंगा कि- जिदंगी में कभी हार मत मानों हर मुश्किल का डटकर सामाना करो, आपका कल आपके आज से बेहतर होगा। लेकिन हमारे देश का युवा करें भी तो क्या करें जब उन्हें कहीं रोजगार ही नही मिलेगा।

बेरोजगारी को अनदेखा-

हमारे देश के शासकों की सबसे बड़ी नाकामी यही है लेकिन वो अपनी नाकामी छुपाते है जो गलत है हमें इसका तोड़ निकालना चाहिये। हम जितना देश की बेरोजगारी को अनदेखा करेंगे उतनी ही यह समस्या और बढेगी और एक दिन यह समस्या बड़ा रूप ले लेगी, जिसके परिणाम बहुत भयानक होगे। आज हमारा समाज बेरोजगारी की वजह से गरीबी, कर्जदारी का शिकार हो रहा है। जिसमें दुुख ही दुख और गरीबी ही गरीबी नजर आ रही हैं। लाखों लोग बेरोजगारी की इस भट्टी मे जल रहे हैं। कहां से उन्हें रोजगार मिलेगा? बेरोजगारी के कारण दर-दर भटकने वाला देश का युवा वर्ग हमारे देश के शासकों से यह पूछता है हम क्या करे? किधर जाए? हमें रोजगार चाहिए हम रोजगार से अपने घरों का खर्च चला सकते हैं।

हम अपने माता पिता की उन उम्मीदों को पूरा करना चाहते हैं जो बरसो से हमसे लगाएं हैं। हमे रोजगार चाहिए रोजगार कौन सुनता है उनकी? कहां से मिलेगा रोजगार? हमारे देश के युवाओं का क्या होगा? उनका भविष्य कैसा होगा? ऐसे अनेक सवाल हमारे सामने मुंह फाड़े खड़े हैं इनका उत्तर कौन देगा? दिन ब दिन हमारे देश में बेरोजगारी एक रोग की तरह बढ़ती जा रही हैं। इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार भी कोई ठोस कदम नहीं उठा रही। बेरोजगारी जैसे अति महत्वपूर्ण विषय पर सरकार को कोई ठोस कदम उठाना चाहिए।

लेखक-आकाश धाकरें

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