- न कोई नियम ,न गाईड लाईन बस तीमारदारों की ही लाइन
रायबरेली। सर्दियां की जाने वाली है मौसम का रुख गर्मी की ओर इशारा कर रहा है ऐसे में मौसमी बिमारियों से निजात पाने के लिए लोग अस्पताल आते हैं। लेकिन अस्पताल ही बीमार कर देने वाला हो तो वह कहां जाएं। इस समय जिला अस्पताल में अव्यवस्थाओं का बोलबाला है। इसी कारण तीमारदार भी अधिक आते हैं की उनके मरीज को दिक्कत न हो। तीमारदारों की लम्बी लाईन, फैली गन्दगी, जिसको जहां मिला वही बेड बना कर सो गया। चाहे दिन हो चाहे रात एक जैसा माहौल यहां दिखाई देता है।
जिला अस्पताल में अव्यवस्थाओं का भंडार है। कोई भी कहीं भी किसी भी समय बिना रोक-टोक आ जा सकता है। जबकि अस्पतालों में मरीजों से मिलने का समय निर्धारित है। लेकिन यह नियम कोई पालन नहीं कर रहा।
कोरोना का हाल में भी हाल यह है कि एक-एक मरीज के पास 10 से 15 तीमारदार बैठे रहते हैं। उन्हें न कोई देखने वाला नहीं है ना ही यहां कोई पूछने वाला है कि कौन किसके साथ है। सीएमएस से लेकर डॉक्टर तक सब अपनी मस्ती में मस्त हैं। मरीज अस्त-व्यस्त हैं और तीमारदार अपने काम में लगे हुए हैं। आप जैसे ही जिला अस्पताल जाएंगे आपको यह नहीं पता चलेगा कि आप किसी अस्पताल में हैं। यहां का नजारा चौंकाने वाला है। किसी को बेड के नीचे जगह मिली तो वही लेट गया किसी को रास्ते में मिली तो वहां। ना यहां के डॉक्टर ना जिम्मेदार ना ही सीएमएस का ध्यान इस ओर है।
कोरोना प्रोटोकाल की यहां धज्जियां उड़ रही हैं अस्पताल में ही कोरोना गाईड लाईन का कोई पालन नहीं किया जा रहा तो बाहर कैसे हो सकता है। ना ही किसी के पास यहां मास्क मिलेंगे ना ही डिस्टेंस दिखती है। यहां दाखिल होने पर लगेगा ही नहीं कि आप मुख्यालय के हॉस्पिटल में हैं। ऐसा लगता है आपकी सब्जी सब्जी मंडी में हैं।
क्योंकि यहां अस्पताल जैसा कोई माहौल नहीं है चारों ओर गंदगी का अम्बार है शौचालय तो ऐसे हैं जहां जाने के बाद हो सकता है वहीं पर मरीज बीमार हो जाए और तीमारदार मरीज बन जाए । सीएमएस भी इस ओर से निश्चिंत हैं। यह तो ऐसा ही लगता है जैसे अस्पताल खुद बीमार है अब यहां बीमारों का इलाज कैसे होता होगा यह प्रश्न चिन्ह बना हुआ है।
रिपोर्ट-दुर्गेश मिश्र धातु