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भारतीय संस्कृति में मानव कल्याण

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

भारतीय संस्कृति शाश्वत है। इसके जीवन मूल्य सदा सर्वदा के लिए प्रासंगिक है। इसमें पर्यावरण चेतना है,उसके संरक्षण व संवर्धन के सन्देश है। गौ गंगा को मातृवत माना गया। नदियों व जल के प्रति सम्मान व्यक्त किया गया। यह पर्यावरण संरक्षण जैविक कृषि को प्रोत्साहन का सन्देश है।

इसकी आवश्यकता आज पहले से भी अधिक है। दुनिया में प्रदूषण बढ़ रहा है। इसका समाधान भारतीय संस्कृति के माध्यम से ही संभव है।

राष्ट्रीय स्वयं सेवज संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हमको अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। भारतीय संस्कृति में मानव कल्याण का विचार समाहित है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि मां गंगा सिर्फ नदी नहीं हैं। वह भारतीय धर्म संस्कृति की पहचान हैं।वह जीवनदायनी हैं। गंगा के पावन तट पर आने वाला हर व्यक्ति पावन हो जाता है।

सरसंघचालक ने  प्रेम प्रकाश मंडलाध्यक्ष स्वामी भगत प्रकाश महाराज की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में प्रेमनगर आश्रम चौक, शंकराचार्य चौक के पास सतनाम साक्षी घाट, भारत माता  शौर्य स्मारक,अमरापुर घाट और दीप स्तंभ का लोकार्पण किया। श्रीराम तीर्थ आश्रम कार्यक्रम में देश के अनेक संत सहभागी हुए। मोहन भागवत ने कहा कि आज दुनिया भारत के जरिये धर्म को जानने और समझने की कोशिश कर रही है।

हमारे महापुरुषों ने पूरी दुनिया को सनातन हिंदू धर्म की उत्कृष्टता और अलौकिकता का दर्शन कराया। इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अपने आचरण और विचार से दुनिया को सही रास्ता दिखाएं और देश को विश्व गुरु बनाएं।उन्होंने कहा कि आज जब हम देश की सीमा के भीतर सुख चैन के साथ अपना कार्य कर पाते हैं तो उसकी असल वजह यही है कि सीमा पर वीर जवान हमारी रक्षा को अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं।

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