हर साल जिस तरह से महंगाई दर बढ़ रही है, उस अनुपात में न तो फिक्स्ड आय पर ब्याज मिल रहा है और न ही ऐसी किसी योजनाओं में बिना जोखिम अच्छा रिटर्न मिल रहा है। पेंशन की रकम भी अब नाकाफी साबित होने लगी है। ऐसे में जब तक संभव हो, कुछ न कुछ काम करें। निवेश भी ऐसी जगह करें, जहां उस पर मिलने वाला रिटर्न महंगाई को मात दे सके।
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कुछ दिन पहले गाजियाबाद में शर्मा परिवार से मेरी मुलाकात हुई। शर्मा जी एक साधारण लेकिन पुराने अपार्टमेंट में रहते थे और इसमें उस विभाग के कर्मचारियों की ओर से बनाई गई एक ग्रुप हाउसिंग सोसायटी होने का आभास था, जहां शर्माजी काम करते थे। बिना किसी लाग लपेट के वह सीधे मुद्दे पर आ गए और इस बारे में बात करने लगे कि कैसे उनकी पेंशन अब उनके घरेलू खर्चों को चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है।
वह 2002 में रिटायर हुए थे और कई अन्य सहकर्मियों की तरह उन्होंने अपनी सेवानिवृत्त बचत का एक हिस्सा इस फ्लैट के लिए खर्च किया। कुछ पैसा कॉलेज में पढ़ रहे अपने पोते को दे दिया। एक सामान्य सरकारी कर्मचारी के रूप में वह कई वर्षों तक क्वार्टर में रहे थे। इसका मतलब है कि जीवन के अंत तक उनके लिए खुद के घर की प्राथमिकता नहीं थी।
वेतन आयोग की सिफारिशें भी नाकाफी
रिटायरमेंट के बाद भी उन्होंने एक स्कूल में पांच साल तक काम किया था। इस अतिरिक्त आय से उनको मदद मिल जाती थी। शर्माजी कम खर्च करने वाले हैं। उनके घर में कुछ भी फैन्सी चीजें नहीं है। इससे पता चलता है कि वे जरूरी चीजों से परे जाकर एक पैसा भी खर्च नहीं करते हैं। उनके पास गुजारा करने के लिए बजट था। वे बढ़ती उम्र से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के लिए सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के तहत दवाएं ले रहे थे। फिर भी, पेंशन अब उनको नाकाफी पड़ रही है।
उनका मानना था कि वेतन आयोग का संशोधन होगा तो उनके रिटायरमेंट में होने वाले खर्चों में किसी भी तरह की बढ़ोतरी का ख्याल रखा जाएगा। हालांकि, पिछले दो वेतन आयोग की सिफारिशें बढ़ती महंगाई की तेज रफ्तार से मेल नहीं खाती दिख रही हैं। उनके आंकड़ों के अनुसार, 2010 से अधिकांश जरूरी वस्तुओं की कीमतें हर गुजरते साल में कम से कम 8 से 10 फीसदी की दर से बढ़ रही हैं।
हर पांच साल में वेतन संशोधन पर हो विचार
आज भारत में लाखों लोगों की ऐसी ही कहानी है जो सेवानिवृत्ति के बाद के लिए पूरी तरह से पेंशन पर निर्भर हैं। सरकार की ओर से शुरू किए गए इतने सारे बदलावों के साथ एक और प्रयास किया जाना चाहिए। अब एक दशक के बजाय हर पांच साल में एक बार वेतन आयोग की सिफारिशों को संशोधित करने पर विचार करना चाहिए। जहां तक शर्मा दंपती का सवाल है, उन्हें मेरा सुझाव था कि वे जीवन में बुनियादी जरूरतों से समझौता न करें। साथ ही,
उन्हें आश्वस्त किया कि उनकी बचत उन महीनों में खर्च के प्रबंधन में मदद करने के लिए काफी है, खासकर जब पेंशन पर्याप्त नहीं थी। शर्माजी चतुर और बुद्धिमान थे। फिर भी, उनकी समस्या बाकी लोगों जैसी ही थी। मसलन, पेंशन पर निर्भर कई अन्य बुजुर्गों की तरह, रिटायरमेंट में अपने पैसे को जोखिम में डाले बिना उनके पास निवेश विकल्पों की कमी थी।