नई संसद का निर्माण प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति से सम्भव हुआ. अन्यथा विपक्षी पार्टियों ने इसे बाधित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. उस समय परिस्थितियां अत्यंत प्रतिकूल थीं. कोरोना आपदा का समय था. वैसे संसद के नए भवन का निर्माण यूपीए सरकार के समय होना अपेक्षित था. लेकिन उस सरकार ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. जब नरेंद्र मोदी ने सेंट्रल विस्टा के निर्माण का निर्णय लिया, तब यूपीए के वही लोग हमलावर हो गए. कोरोना संकट की दुहाई दी. इसके मूल में विचार यह था कि नई संसद के निर्माण का श्रेय नरेंद्र मोदी को नहीं मिलना चाहिए. लेकिन मोदी दृढ़ निश्चय कर चुके थे।
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दिल्ली की केजरीवाल सरकार मजदूरों को बाहर निकालने का काम कर रही थी. सेंट्रल विस्टा निर्माण में मोदी सरकार ने तीस हजार श्रमिकों को उस समय अजीविका प्रदान की. मोदी ने नई संसद में कहा भी की वह समय समय पर उन श्रमिकों इंजीनियरों से मिलने आते थे. उन सभी के नाम नई संसद की डिजिटल बुक में अंकित हैं. श्रमिकों को ऐसा सम्मान पहले कभी नहीं मिला था. पुरानी संसद के केंद्रीय कक्ष में मोदी ने इस भवन को संविधान सदन के नाम का प्रस्ताव किया. इस प्रकार उन्होंने संविधान निर्माताओं के प्रति सम्मान व्यक्त किया. स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का स्मरण किया. स्वतंत्रता के बाद की सभी सरकारों के योगदान की चर्चा की।
दलगत आधार पर किसी की निंदा नहीं की. लेकिन बिना किसी लिए बहुत कुछ कह भी दिया. मोदी के ऐसे कथन वस्तुतः देश के स्वाभिमान से ही सम्बन्धित थे. गुलामी के प्रतीकों की मुक्ति से भारतीय चेतना का जागरण हुआ है. आज भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का सदस्य मात्र नहीं है. बल्कि विश्व को नेतृत्व देने वाला देश बन रहा है. भारत विश्व मित्र के रूप में प्रतिष्ठित हो रहा है. भारत एक नई चेतना के साथ जाग उठा है। भारत एक नई ऊर्जा से भर गया है। यही चेतना और ऊर्जा करोड़ों लोगों के सपनों को संकल्प में बदल सकती है. उन संकल्पों को हकीकत में बदल सकती है।
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नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को गणेश चतुर्थी की बधाई दी। उन्होंने कहा कि नए संसद भवन में हम नए भविष्य का श्री गणेश करने जा रहे हैं। यह बदलते भारत का ही विचार है. भारत अपनी विरासत और संस्कृति पर गर्व करना सीख गया है. पहले सेक्युलर राजनीति के कारण अपनी विरासत को अभिव्यक्त करने में संकोच होता था. इसलिए भारत की कोई विशिष्ट पहचान नहीं बन सकी थी. हजार वर्ष की गुलामी ने राष्ट्र चेतना को विस्मृत किया था. अब इसी चेतना का जागरण हो रहा है. नए भारत की नई तसवीर निखर कर दुनिया के सामने आ रही है. इसी चेतना से सौ वर्ष बाद श्री राम मन्दिर का निर्माण सम्भव हुआ. काशी, उज्जैन आदि को गरिमा के अनुरूप भव्य रूप दिया गया।
G20 शिखर सम्मेलन में नालंदा की आकृति प्रदर्शित करना नरेंद्र मोदी का ही राष्ट्रीय चेतना का विजन था. उन्होंने विदेशी मेहमानों को बताया कि पंद्रह सौ वर्ष पूर्व भारत में समृद्ध विश्वविद्यालय थे. इसको देख कर विदेशी अतिथि आश्चर्य चकित हुए थे. विकसित भारत का संकल्प साकार हो रहा है. नरेंद्र मोदी ने कहा कि इसी संसद में मुस्लिम बेटियों को न्याय की जो प्रतीक्षा थी. शाहबानों केस के कारण गाड़ी कुछ उलटी पाटी पर चल गई थी। इसी सदन ने हमारी उस गलती को ठीक किया। तीन तलाक की कुप्रथा से मुस्लिम महिलाओं को मुक्ति दिलाई गई. आज भारत दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था बन गया ह तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के संकल्प को प्राप्त करने के लिए भारत आगे बढ़ रहा है. दुनिया भारत के आत्मनिर्भर मॉडल की चर्चा करने लगी है. इस सदन में अनुच्छेद-370 से मुक्ति पाने और अलगाववाद एवं आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया।
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प्रधानमंत्री ने पुराने संसद भवन को संविधान सदन के नाम से बुलाने का प्रस्ताव रखा। सेंट्रल हॉल में मौजूद सांसदों ने मेज थपथपाकर इसकी सहमति दी। मोदी ने कहा- पुराने सदन की गरिमा कभी कम नहीं होनी चाहिए। संविधान सदन से हमारी प्रेरणा बनी रहेगी। नरेंद्र मोदी ने कहा कि नए संसद भवन में हम नए भविष्य का श्री गणेश करने जा रहे हैं। विकसित भारत का संकल्प दोहराकर फिर एक बार संकल्पबद्ध होकर और उसको पूर्ण करने के इरादे से नए भवन की तरफ प्रस्थान कर रहे हैं।
संविधान सदन में ही अंग्रेजी हुकूमत ने सत्ता हस्तांतरण किया था. राष्ट्रगान और तिरंगे को भी यहीं अपनाया गया। यहीं पर चार हजार से ज्यादा कानून पास हुए. छोटे-छोटे मुद्दों में उलझने का समय नहीं है. आत्मनिर्भर भारत बनने का लक्ष्य पूरा करना होगा. छोटे कैनवास पर बड़ा चित्र नहीं बना सकते. अमृत काल के पच्चीस वर्षों में भारत को बड़े कैनवास पर काम करना होगा, तभी भव्य भारत का चित्र अंकित हो सकेगा।
रिपोर्ट-डॉ दिलीप अग्निहोत्री