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बढ़ती महंगाई दर को देखते हुए आरबीआई का रुख लंबे समय तक रह सकता है तटस्थ, एसबीआई रिसर्च का दावा

सितंबर में खुदरा महंगाई के आंकड़ों को देखने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ब्याज दरों पर लंबी अवधि के लिए अपना तटस्थ रुख जारी रखने को मजबूर हो सकता है। अगर ऐसा होता है तो रेपो रेट में फिलहाल कटौती की संभावना कम है। एसबीआई रिसर्च ने यह दावा करते हुए कहा है कि पहली दर कटौती विकास पर आधारित हो सकती है, न कि मुद्रास्फीति पर आधारित। रेपो रेट वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक अन्य बैंकों को ऋण मुहैया कराता है।

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एसबीआई रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में तर्क दिया है कि यदि आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति अनिश्चित बनी रहती है, तो शीर्ष बैंक दर कटौती के मानदंड के रूप में विकास पर विचार करेगा।

बढ़ती महंगाई दर को देखते हुए आरबीआई का रुख लंबे समय तक रह सकता है तटस्थ, एसबीआई रिसर्च का दावा

रिपोर्ट में कहा गया है, “खाद्य कीमतों में बदलाव महंगाई को निर्धारित करेगा, हालांकि हम समझते हैं कि वित्त वर्ष 2025 में महंगाई दर 4.5-4.6 प्रतिशत की सीमा में रह सकती है।” सितंबर के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित खुदरा महंगाई दर अगस्त की 3.65 प्रतिशत से बढ़कर 5.49 प्रतिशत तक पहुंच गई, ऐसा मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के कारण हुआ।”

सितंबर में खाद्य और पेय पदार्थों की महंगाई दर बढ़कर 8.36 प्रतिशत हो गई, जो अगस्त में 5.30 प्रतिशत और सितंबर 2023 में 6.30 प्रतिशत थी। खाद्य पदार्थों में सब्जियों की कीमतों में सबसे अधिक वृद्धि हुई और कुल मुद्रास्फीति में इसका 2.34 प्रतिशत का योगदान रहा।

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एसबीआई शोध में कहा गया है, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खाद्य मुद्रास्फीति क्रमशः 9.08 प्रतिशत और 9.56 प्रतिशत रही, जो दर्शाता है कि खाने-पीने के चीजों की कीमतें आम लोगों के लिए चुनौती बनी हुई हैं।

शोध के अनुसार ग्रामीण इलाकों में महंगाई शहरी इलाकों की तुलना में ज्यादा हैं। इससे समग्र मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिला है। हाल ही में संपन्न मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में, केंद्रीय बैंक ने लगातार 10वीं बार नीति रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है। केंद्रीय बैंक के इस फैसले के कारण लोगों को हाउसिंग लोन की ईएमआई पर फिलहाल राहत नहीं मिल पाई है।

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