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शिकायत सुनने की जगह 6 बिन्दुओं का प्रपत्र भेज बुरे फंसे सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही, एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा ने कर डाली धारा 17 के तहत बर्खास्त करने की मांग

लखनऊ। यूपी के सूचना आयुक्तों और आरटीआई एक्टिविस्टों के बीच आरटीआई एक्ट 2005 की रस्सी के साथ खेला जा रहा रस्साकशी का खेल दिलचस्प मोड़ पर पंहुच गया है, जहां दोनों पक्ष लम्बे समय से एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते हुए सूचना कानून की धारा 18 की शिकायतों की सुनवाइयों की प्रक्रिया के मामले में खुद को सही साबित करने में लगे हुए हैं।

धारा 18 की शिकायतों की सुनवाइयों की प्रक्रिया के मामले में सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त समेत वर्तमान में कार्यरत अन्य 8 सूचना आयुक्त भी बंटे हुए हैं। जहां एक तरफ मुख्य सूचना आयुक्त समेत अधिकांश सूचना आयुक्त सूचना कानून की मूल मंशा के अनुसार धारा 18 की शिकायतों की सुनवाइयां कर रहे हैं तो वहीं कुछेक सूचना आयुक्त अपना अलग ग्रुप बनाकर अपनी अलग ढपली बजा रहे हैं और धारा 18 की शिकायतों पर या तो 6 बिन्दुओं का प्रपत्र भेजकर या जन सूचना अधिकारी को नोटिस भेजे बिना कोई भी सुनवाई किये बिना ही खारिज कर रहे हैं। धारा 18 की शिकायतों पर सूचना कानून की मूल मंशा के अनुसार सुनवाई नहीं करने वाले सूचना आयुक्तों पर निहित स्वार्थ में लिप्त होकर भ्रष्टाचार को पोषित करने के आरोप आरटीआई आवेदक आये दिन लगाते रहते हैं।

आरटीआई

ताज़ा मामला सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही के खिलाफ है जिसमें आरटीआई एक्टिविस्ट और पूर्व में भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश की आरटीआई सेल की प्रदेश उप प्रभारी रह चुकी लखनऊ के राजाजीपुरम क्षेत्र निवासी उर्वशी शर्मा ने मुख्य सूचना आयुक्त भवेश कुमार सिंह को पत्र लिखकर शाही को आरटीआई एक्ट की धारा 17 के तहत तत्काल निलंबित कराते हुए पद से हटाने की प्रक्रिया आरम्भ कराने के लिए सन्दर्भ सूबे की राज्यपाल को भेजने की मांग कर दी है।

उर्वशी बताती हैं कि उनके मामले की सूचना आयोग स्थित फाइल से हर्षवर्धन शाही का कदाचार या असमर्थता खुद-ब-खुद सिद्ध हो रही है. उर्वशी बताती हैं कि मामले में उन्होंने ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल के माध्यम से समाज कल्याण निदेशालय उत्तर प्रदेश से सूचनाएं मांगीं थीं और सूचना कानून में निर्धारित 30 दिन की अवधि में समाज कल्याण निदेशालय द्वारा ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल पोर्टल पर रेस्पोंस नहीं देने पर आरटीआई की धारा 18(1)(c) का स्पष्ट उल्लेख करते हुए शिकायत सूचना आयोग में दी थी जिसे आयोग की रजिस्ट्री द्वारा संख्या C-241588 पर दर्ज करके अपील संख्या एस-5-676/सी/2022 दिया गया।

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सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 18(1) (c ) का उल्लेख करते हुए उर्वशी कहती हैं कि इस धारा में संसद ने शब्द shall का प्रयोग किया है कानूनी परिपेक्ष्य में जिसका अभिप्राय ऐसे अनिवार्य एक्शन से होता है जिसको स्किप नहीं किया जा सकता है. बकौल उर्वशी, संसद ने इसी वाक्य में receive and inquire into a complaint शब्द का प्रयोग किया है कानूनी परिपेक्ष्य में जिसका अभिप्राय यह है कि शिकायत को प्राप्त करके इसकी जांच करना और गुण-दोष के आधार पर शिकायत का निस्तारण करना आयोग की कानूनी बाध्यता है लेकिन उनको लगता है हर्षवर्धन शाही या तो विपक्षी जन सूचना अधिकारी से किसी प्रकार उपकृत हो कदाचार में लिप्त हो गए हैं अथवा किसी मानसिक बीमारी के कारण सूचना आयुक्त के उच्च पद के दायित्व के निर्वहन के लिए मानसिक रूप से इतने अधिक अक्षम हो गए हैं कि शिकायत में लिखे तथ्यों और शिकायत के साथ उर्वशी द्वारा संलग्न किये गए प्रमाणों को देख-समझ तक नहीं पा रहे हैं।

उर्वशी का कहना कई कि शिकायत को विधिपूर्वक सुनने की जगह शाही ने उनको 6 बिन्दुओं का प्रपत्र भेजकर सूचनाओं की जो मांग की है वह उनके अनुसार नितांत औचित्यहीन इसलिए है क्योंकि यदि शाही मामले की पत्रावली को देख-समझ पाते तो इन प्रश्नों के उत्तर मामले की आयोग की पत्रावली में पूर्व से ही मौजूद हैं।

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शाही के अनियमित कृत्यों की पूर्व में भी शिकायत कर चुकी उर्वशी ने बताया कि उनको लगता है कि ऐसा भी हो सकता है कि शायद इसी बजह से शाही उनसे निजी खुन्नस रख रहे हैं और इसी अजेंडे के तहत उनकी सभी शिकायतों को सूचना कानून की मूल मंशा के अनुसार सुनकर मेरिट पर उनका निस्तारण करने की जगह पद का खुला दुरुपयोग करके उनको सरसरी तौर पर समाप्त कर रहे हैं।

मुख्य सूचना आयुक्त को भेजी शिकायत में उर्वशी ने शाही के 6 बिदुओं के प्रपत्र के सभी बिन्दुओं पर सप्रमाण शाही के कृत्य को गलत बताया है। उर्वशी ने शाही पर आरोप लगाए हैं कि शाही ने शिकायत में सबसे ऊपर अंडरलाइन करके लिखे गए आरटीआई की धारा 18(1)(c) की अनदेखी की है और मुझसे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 18(1) के किस उपबंध के अंतर्गत मैंने शिकायत प्रस्तुत की है जैसी औचित्यहीन मांग की है।

उर्वशी कहती हैं कि ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से दर्ज किये गए आरटीआई आवेदन को भेजने का साक्ष्य यथा डाक विभाग की ट्रैकिंग रिपोर्ट की प्रति देने, विहित शुल्क अदायगी का प्रमाण प्रस्तुत करने जैसी औचित्यहीन मांगें भी शाही ने कीं हैं।

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उर्वशी का कहना है कि ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल पर 30 दिन में रेस्पोंस नहीं देने के प्रमाण अर्थात ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल की स्टेटस रिपोर्ट होने पर भी शाही ने उनसे जनसूचना अधिकारी द्वारा धारा 18(1) के उपबंध क से च से सम्बंधित पत्र व्यवहार/साक्ष्य देने के साथ-साथ जन सूचना अधिकारी द्वारा उनके आरटीआई आवेदन को धारा 6(3) के तहत किस किस जन सूचना अधिकारी को अंतरित किया है, की जानकारी देने और मांगी गई सूचना जन सूचना अधिकारी के स्तर पर धारित होने का प्रमाण देने के साथ-साथ “यदि जन सूचना अधिकारी द्वारा शिकायत का अंतरण किया गया हो तो उसकी प्रति उपलब्ध कराने और उनको जन सूचना अधिकारी से कोई पत्रोतर प्राप्त नहीं होने होने का शपथ पत्र देने जैसी औचित्यहीन मांगें भी कीं हैं।

शाही के इस कृत्य को आरटीआई एक्ट 2005 की धारा 17 की परिधि में आने वाला कदाचार अथवा असमर्थता का पुख्ता प्रमाण और दंडनीय कृत्य बताते हुए उर्वशी ने मांग की है कि उनके शिकायत सन्दर्भ को उत्तर प्रदेश की राज्यपाल को अग्रेषित किया जाए।

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