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पत्रकारिता के स्तंभ “भालेंदु मिश्रा” की विदाई…

रायबरेली। भालेंदु मिश्रा, जिले की पत्रकारिता में यह एक ऐसा नाम है जो हमेशा चर्चा में रहा। धाकड़ पत्रकारिता के पक्षधर भालेंदु कभी रुके नहीं कभी झुके नहीं और पत्रकारिता का इकबाल हमेशा जिंदा रखा। तब हम इस जिले (वर्ष 1996) में हिंदुस्तान के ब्यूरो हेड होकर नए-नए ही आए थे। जब पत्रकारिता में उनका सिक्का जमा हुआ था। तब वह राष्ट्रीय सहारा के लिए अपनी सेवा दे रहे थे और स्टेशन रोड पर मनसा देवी मंदिर के सामने पहली मंजिल पर उनका ऑफिस हुआ करता था।

ऑफिस क्या वह पत्रकारिता का मठ था? जिले का ऐसा कोई मठाधीश राजनेता नहीं था, जो उनके इस मठ में बिना हाजिरी लगाएं राजनीति करने की सोच पाए। जिले में बिल्कुल नए होने के चलते अपनी जमीन, अपनी पहचान और अखबार को स्थापित करने के प्रयासों के क्रम में हम भी उस “मठ” में हाजिरी लगाने वाले पत्रकारों में से एक थे। यहां से अखबार का पेट भरता था और हमारा भी। खाली हाथ जो आया, उसे भालेंदु जी का कोपभाजन बनना ही पड़ता था।

पत्रकारों का वह ऐसा केंद्र था, जहां हर सूचना अपने आप पहुंचती थी। प्रेस नोट के माध्यम से, आपसी संवाद के माध्यम से और टेलीफोन के माध्यम से भी। तब मोबाइल नहीं हुआ करते थे। टेलीफोन के बेसिक नंबरों से काम चलता था। उनकी पत्रकारिता के सहारे हमें भी सूचनाएं मिल जाती थी और शुरुआती दौर में हम इसी मठ से स्थापित होने लगे। नेता हो या अधिकारी या सामाजिक व्यक्ति, सबसे पहचान कराने में भालेंदु जी की भूमिका अहम रही।

हरफनमौला भालेंदु जी कलम के धनी थे। हर घटनाक्रम पर उनकी पैनी निगाह होती थी। हर एक का मूल्यांकन वह अपनी नजर से करते थे। जिसे जैसा समझ लिया..उसे वैसा ही समाज में, अपनी कलम, अपनी जुबान और अपने सर्किल में, वैसा बनाकर ही छोड़ा। यही वजह है कि उन्हें प्रतिरोध भी खूब झेलने पड़े। कभी अखबार जलाकर लोगों ने गुस्से का इजहार किया और कभी पीठ पीछे साजिशें रच कर। सहारा एक ऐसा अखबार था कि प्रबंधन ने उन्हें कई बार हटाया और कई बार रखा। एक तरह से उनका और सहारा का चोली दामन का साथ हो गया था। हर “वार” का उन्होंने दिल खोलकर स्वागत किया या यह कहें उनका सामना किया।

बाद के दिनों में उनकी पत्रकारिता के अपने तेवर और हिंदुस्तान अखबार की अपनी गरिमा और अपनी नीतियों की वजह से हमारे और उनके रास्ते भी अलग अलग हुए लेकिन पत्रकारिता पर जब जब आच आई तब तब हम उनके लिए लड़े और वह हमारे लिए। कभी कभार हमारे और उनके बीच कुछ मतभेद भी हुए लेकिन बड़प्पन दिखाते हुए उन्होंने ही उन मतभेदों पर मिट्टी डाल दी।

ऐसे जुझारू पत्रकार रहे भालेंदु जी का जाना हम सबके लिए वास्तव में एक सदमा है। पत्रकारिता की सीक कैसे खड़ी रखी जाती है और खड़ी रखनी है, यह उन्होंने हर पत्रकार को आखरी समय तक सिखाया। आज उनकी दुनिया से विदाई हुई है..उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि

◇ वरिष्ठ पत्रकार गौरव अवस्थी की कलम से….?️

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