हर साल चैत्र व शारदीय नवरात्रों में देवी के विभिन्न स्वरूपों की विधिवत पूजा अराधना होती है। इन दोनों ही नवरात्रों में बड़ी संख्या में लोग व्रत भी रखते हैं। ऐसे में आपको हो जानकर हैरानी होगी कि ये नवरात्र सिर्फ श्रद्धा से ही नहीं बल्कि मानव शरीर से भी जुड़े हैं। शरीर विज्ञान से इनका गहरा नाता है। इसीलिए प्राचीन काल से हमारे पूर्वज भी इन्हें करते आ रहे हैं। आइए जानें कैसे... आस्था व श्रद्धा से जोड़ दिया चैत्र व शारदीय नवरात्र शरीर के विज्ञान से भी यह गहरा संबंध रखते हैं। इसीलिए हमारे पूर्वज भी इन्हें करते थे। हालांकि उस दौर में शिक्षा व विज्ञान की होने से नवरात्रों को आस्था व श्रद्धा से जोड़ दिया गया था। यही वजह है कि यह आज भी आस्था व श्रद्धा से ही जुड़े हैं। वहीं इनका शरीर विज्ञान से यह जुड़ाव है कि यह साल में दो बार आते हैं। एक बार गर्मी की शुरुआत में चैत्र नवरात्र और एक बार जाड़े की शुरुआत में शारदीय नवरात्र होते हैं। यह बेहद गंभीर समय होता है। इस समय जलवायु और सूरज के प्रभाव के संगम से शरीर में तेजी से बदलाव होते हैं। नाकारात्मक उर्जा तेजी से शरीर की ऊर्जा घटती-बढ़ती रहती है। वहीं नाकारात्मक उर्जा भी तेजी से बढ़ती है। जिससे इस दौरान अनाज, शराब, प्याज़, लहसुन व मांस मदिरा का सेवन नुकसानदायक होता है। इतना ही नहीं इससे लोग बीमारियों के चपेट में जल्दी आ सकते हैं। जिससे इन दिनों थोड़ा अपने खान पान में कंट्रोल रखने से लाभ होता है। ऐसे में नवरात्र के दिनों में काफी हद तक लोगों का खान-पान थोड़ा सही रखता है। अस्था व श्रद्धा वश लोग थोड़ा अनाज, शराब, प्याज़, लहसुन व मांस मदिरा का सेवन करने से बचते हैं।
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