नई पीढ़ी प्रकृति से दूर हो रही है, क्योंकि उसकी शिक्षा का हिस्सा यह नहीं बन सकी है। लिहाजा केंद्र सरकार महात्मा गांधी की नई तालीम के विचार को आत्मसात कर प्रकृति को प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने के लिए काम कर रही है। यह जिम्मेदारी महात्मा गांधी नेशनल काउंसिल ऑफ रूलर एजुकेशन को सौंपी गई है।
देश में जंगलात लगातार कम हो रहे हैं, नदियां विलुप्त हो रही हैं, जलस्तर सैकड़ों फुट नीचे जा रहा है, वायु प्रदूषण ने जिंदगी को मुश्किल भरा बना दिया है। इसकी मूल वजह विकास की नई धारणा और प्रकृति की समझ का कम होना माना जा रहा है। यही कारण है कि नई पीढ़ी में बचपन से ही प्रकृति के प्रति लगाव और समझ बढ़ाने के प्रयास शुरूहो गए हैं।
बुंदेलखंड क्षेत्र के दौरे पर आए महात्मा गांधी नेशनल काउंसिल ऑफ रूलर एजुकेशन के वाइस चेयरमैन डॉ. भरत पाठक ने आईएएनएस से चर्चा करते हुए कहा कि महात्मा गांधी का 150वां जयंती वर्ष मनाया जा रहा है। महात्मा गांधी ने नई तालीम की बात कही थी, महात्मा गांधी की बात को रवींद्रनाथ टैगोर, विवेकानंद और नानाजी देशमुख ने आगे बढ़ाया। उनकी नई तालीम में कहा गया था कि जो प्राथमिक और पूर्व प्राथमिक शिक्षा या माध्यमिक शिक्षा हो, उसमें बच्चों को जनजीवन से जुड़ी बातों को खेल-खेल में सिखाई और बताई जाएं। इसके लिए तीन-चार दशक पहले विद्यालयों में प्रबंध होता भी था, मगर पाठ्यक्रम में लगातार हुए बदलाव के कारण ये सब पीछे छूटता गया।
पाठक ने कहा कि वर्तमान दौर में इस बात की जरूरत महसूस की जा रही है कि बच्चों में प्रकृति के प्रति लगाव और समझ बढ़ाई जाए, इसी को ध्यान में रखकर महात्मा गांधी नेशनल काउंसिल ऑफ रूलर एजुकेशन, जो मानव संसाधन मंत्रालय के अधीन आने वाली स्वतंत्र संस्था है, का मानना है कि प्रयोगों के जरिए बच्चों में जल, जंगल, जमीन, जानवर, जलवायु व जनजीवन के बारे में बताया जा सकता है, उनमें प्रकृति-प्रेम बढ़ाया जा सकता है। यही ध्यान में रखकर एक पाठ्यक्रम तैयार किया गया है।
उन्होंने आगे बताया कि स्कूली बच्चों में प्रकृति के प्रति प्रेम का भाव जागृत करने के लिए बनाए गए पाठ्यक्रम को देश की सभी भाषाओं में तैयार किया जा रहा है, ताकि नई पीढ़ी का प्रकृति के प्रति लगाव बढ़े, वे प्रकृति को समझें। नई पीढ़ी को जल, जंगल, जमीन, जानवर, जलवायु व जनजीवन के बारे में पाठ पढ़ाए जाने के साथ ही उन्हें उनके कर्तव्यों के बारे में भी बताया जाएगा। पाठक ने बताया कि इस पाठ्यक्रम पर एनसीईआरटी और एससीईआरटी के साथ मिलकर एनसीआरई ने काम किया है।