उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन एक्ट(सीएए) के नाम पर दंगा,आगजीन और सरकारी तथा निजी सम्पति को नुकसान पहुचाने वाले दंगाइयों के खिलाफ एक और सख्त कदम उठाते हुए बड़े-बड़े होर्डिंग लगा कर दंगाइयों की फोटो नाम-पते के साथ लखनऊ के चैराहों पर लगा दी है,जिसमें कहा गया है कि एक महीने के भीतर सरकारी और निजी सम्पति का नुकसान पहुंचान वाले वसूली(जुर्माना) की राशि जमा कर दें। योगी के इस कदम से प्रदेश की सियासत गरमा गई है। नागरिकता कानून के विरोध में हिंसा के आरोपियों की फोटो वाली होर्डिंग मजिस्ट्रेट की जांच में दोषी पाए जाने के बाद जिला प्रशासन ने लगवाईं हैं। होर्डिंग मे सार्वजनिक और निजी सम्पत्तियों को हुए नुकसान का विवरण है। साथ ही लिखा है कि सभी से नुकसान की भरपाई की जाएगी।
लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने बताया कि मजिस्ट्रेट की कोर्ट से आदेश जारी होने के 30 दिनों में हिंसा के दोषी पाए गए लोगों ने धनराशि जमा नही की तो उनकी संपत्तियां कुर्क कर इसकी वसूली की जाएगी। ऐसी होर्डिंगे उन सभी थाना क्षेत्रों में लगाई जाएंगी जहां जहां हिंसा हुई थी। बीती 19 दिसम्बर को राजधानी में सीएए के विरोध में 10-12 हजार लोग सड़कों पर उतरे थे। इस दौरान बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ और आगजनी भी हुई थी। आरोपियों के खिलाफ दर्ज मुकदमों के आधार पर शहर के तीन क्षेत्रो की कोर्ट से अलग अलग निर्णय सुनाया गया। खदरा और डालीगंज में हुई हिंसा पर एडीएम टीजी, हजरतगंज और परिवर्तन चैक पर एडीएम सिटी पूर्वी, कैसरबाग और ठाकुरगंज में हुई हिंसा पर दर्ज मुकदमों के बारे में एडीएम सिटी पश्चिम की कोर्ट से फैसला सुनाया जा चुका है।
गौरतलब हो, सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति को लेकर सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम 1984 है। इसके प्रावधानों के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का दोषी साबित होता है तो उसे 5 साल की सजा हो सकती है। इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है. ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है।
इस एक्ट में सार्वजनिक संपत्ति इस तरह की संपत्तियों को माना गया है- वाटर प्रोड्यूस या डिस्ट्रीब्यूट करने वाला किसी तरह का इंस्टालेशन या इमारत, बिजली या उर्जा से संबंधित किसी तरह का सरकारी उपक्रम या इमारत, तेल का कोई भंडार, नाले नहर वाली कोई सरकारी व्यवस्था, किसी तरह का खदान या फैक्ट्री, पब्लिक ट्रांसपोर्ट या टेलीकम्यूनिकेशन के साधन या फिर लोगों के सार्वजनिक उपयोग वाली किसी तरह की बिल्डिंग या इमारत, सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान पर सुप्रीम कोर्ट ने बनाई थी कमिटी। सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान को रोकने के लिए कानून हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट को हमेशा लगता रहा है कि इस मामले में और भी उपाय किए जाने की जरूरत है।
2007 में सार्वजनिक संपत्ति के भीषण नुकसान की खबरों पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था। उस वक्त हिंसक विरोध प्रदर्शन, बंद और हड़ताल में सरकारी संपत्ति का खूब नुकसान हुआ था। तब सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में कानून में बदलाव के लिए दो कमिटी बनाई थी। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज केटी थॉमस और सीनियर वकील फली नरीमन को कमेटियों का प्रमुख बनाया गया था। 2009 में इन दोनों कमिटियों की सलाह पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति को लेकर कुछ गाइडलाइंस जारी किए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने गाइडलाइंस में सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान होने की स्थिति में सारी जिम्मेदारी नुकसान के आरोपी पर डाली है। गाइडलाइंस के मुताबिक अगर सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान होता है तो कोर्ट ये मानकर चलती है कि नुकसान का आरोपी इसका जिम्मेदार है। आरोपी को खुद को निर्दोष साबित करना होता है। निर्दोष साबित होने तक कोर्ट उसे जिम्मेदार मानकर चलती है। नरीमन कमिटी ने कहा था कि ऐसे मामलों में दंगाइयों से सार्वजिनक संपत्ति के नुकसान की वसूली की जाए।
भरने कानून के सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति को लेकर सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम 1984 है. इसके प्रावधानों के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का दोषी साबित होता है तो उसे 5 साल की सजा हो सकती है। इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है। ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है।
इस एक्ट में सार्वजनिक संपत्ति इस तरह की संपत्तियों को माना गया है- वाटर प्रोड्यूस या डिस्ट्रीब्यूट करने वाला किसी तरह का इंस्टालेशन या इमारत, बिजली या उर्जा से संबंधित किसी तरह का सरकारी उपक्रम या इमारत, तेल का कोई भंडार, नाले नहर वाली कोई सरकारी व्यवस्था, किसी तरह का खदान या फैक्ट्री, पब्लिक ट्रांसपोर्ट या टेलीकम्यूनिकेशन के साधन या फिर लोगों के सार्वजनिक उपयोग वाली किसी तरह की बिल्डिंग या इमारत। सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान पर सुप्रीम कोर्ट ने बनाई थी कमिटी।