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श्री गुरू तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस मनाया गया

लखनऊ। धर्म रक्षक, महान तपस्वी, हिन्द की चादर सिखों के नौवें गुरू श्री गुरू तेग बहादुर जी महाराज का पावन शहीदी दिवस श्री गुरु सिंह सभा ऐतिहासिक गुरूद्वारा नाका हिण्डोला लखनऊ में बड़ी श्रद्धा एवं सत्कार के साथ मनाया गया।

इस अवसर पर शाम का विशेष दीवान रहिरास साहिब के पाठ से आरम्भ हुआ, जिसमें रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह ने अपनी मधुर बाणी में ‘साधन हेति इती तिनि करी।सीसु दीआ पर सी न उचरी।’ शबद कीर्तन गायन एवं समूह संगत को नाम सिमरन करवाया। ज्ञानी सुखदेव सिंह ने साहिब श्री गुरू तेग बहादुर जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि श्री गुरू तेग बहादुर का बाल्यावस्था का नाम त्यागमल था जो उनके विरक्त स्वभाव के अनुरूप था। पैंदे खाँ नाम के एक कृतघ्न एवं विश्वासघाती पठान ने जब श्री गुरू हरिगोबिन्द साहिब पर अकारण आक्रमण किया तो त्यागमल जी ने अपनी तेग (तलवार) से ऐसे जौहर दिखाए कि तभी से उनका नाम ‘‘तेग बहादर’’ पड़ गया।

श्री गुरू तेग बहादर जी ने पुनः मानवीय स्वतंत्रता के महान आदर्श के लिये आत्म बलिदान देकर ‘‘त्यागमल’’ नाम को भी सार्थक कर दिखाया। जितना श्री गुरू तेग बहादुर जी तपस्वी, त्यागी, निरभयता, निरवैरता, कर्मनिष्ठा और कुर्बानी की दिव्य मूर्ति थे, उतना ही औरंगजेब अधर्मी, अभिमानी और अत्याचारी था। उसने श्री गुरू तेग बहादुर जी के सामने तीन शर्ते रखीं-इस्लाम कबूल करो, कोई करामात करके दिखाओं या फिर मरने के लिये तैयार रहो। उन्होंने अत्याचारी चुनौतियों का दृढ़तापूर्वक सामना किया और मनुष्य मात्र की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये उन्होंने दिल्ली के चांदनी चौक में सन् 1675 में विशाल जन समूह के सामने अपना शीश देकर बलिदान दे दिया।

श्री गुरु तेग बहादुर जी का आत्म बलिदान केवल इस प्रण को निभाने मात्र के लिये ही नहीं था, वे आस्था, सिद्धान्त एवं भारत वर्ष की संस्कृति और हिन्दू धर्म की रक्षा के लिये शहीद हुए। तभी से गुरू तेग बहादुर जी को ‘‘तेग बहादुर हिन्द की चादर’’ भी कहा गया है। उस समय भाई दयाला जी, भाई सती दास जी, भाई मती दास जी ने भी शहादत दी। रागी जत्था भाई गुरमीत सिंह ऊना साहिब वालों ने अपनी मधुर बाणी में तेग बहादुर सिमरिये, घर नउ निधि आवै धाई।’ शबद कीर्तन गायन कर साध संगत को निहाल किया। कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया। दीवान की समाप्ति के उपरान्त लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा ने समूह संगत को गुरू जी द्वारा बताये मार्गो पर चलने का आग्रह किया। उसके उपरान्त गुरू का लंगर समूह संगत में वितरित किया।

  दया शंकर चौधरी

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