
Women’s Day 2025: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आज हम एक ऐसी महान वैज्ञानिक के बारे में बात करने जा रहे हैं जिन्होंने न केवल विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि महिलाओं समेत पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनीं। हम बात कर रहे हैं, ‘मैरी क्यूरी’ की, जिन्होंने अपने अद्वितीय कार्य और समर्पण से विज्ञान की दुनिया को बदल दिया। उन्हें रेडियोलॉजी के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है और वे नोबेल पुरस्कार पाने वाली पहली महिला थीं। मैरी क्यूरी को कुल 2 नोबेल प्राइज मिले, एक बार फिजिक्स और दूसरी बार केमिस्ट्री में।
वारसा में हुआ था मैरी क्यूरी का जन्म
मैरी क्यूरी का जन्म 7 नवंबर 1867 को पोलैंड के वारसा शहर में हुआ था। उनका असली नाम ‘मैरी स्कलोदोव्स्का’ था। वे एक ऐसे परिवार में पैदा हुईं जहां शिक्षा को बहुत महत्व दिया जाता था। उनके पिता भी एक शिक्षक थे और उनकी मां एक स्कूल की प्रधान शिक्षिका थीं। हालांकि, मैरी के जीवन में कई कठिनाइयां भी आईं, खासकर उनके माता-पिता की मृत्यु और पोलैंड के राजनीतिक संघर्षों के कारण।
पिता और बहनों के साथ मैरी क्यूरी।
मैरी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वारसा में पूरी की, लेकिन उस समय महिलाओं के लिए विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करना एक कठिन कार्य था। इसलिये उन्होंने ‘पार्टीशन पोलैंड’ (वर्तमान रूस के नियंत्रण वाले पोलैंड) के बाहर शिक्षा प्राप्त करने का निर्णय लिया। 1891 में, वे पेरिस के ‘सॉर्बोन विश्वविद्यालय’ में पढ़ाई करने के लिए फ्रांस चली गईं। वहाँ उन्हें ‘मैरी’ नाम से जाना गया, और उन्होंने भौतिकी और गणित में अपनी पढ़ाई पूरी की।
मैरी क्यूरी की खोजों ने बदल दी दुनिया
मैरी क्यूरी का वैज्ञानिक करियर बहुत ही प्रेरणादायक है। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि रेडियोधर्मिता (radioactivity) पर किए गए उनके कार्य से जुड़ी हुई है। 1898 में, उन्होंने अपने पति पियरे क्यूरी के साथ मिलकर नए तत्वों ‘पोलोनियम’ और ‘रेडियम’ की खोज की। ये दोनों तत्व रेडियोधर्मी थे और इस शोध ने रेडियोलॉजी के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव किया। इस खोज के लिए उन्हें 1903 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ, जो उन्हें उनके पति पियरे क्यूरी और हेनरी बैकेरेल के साथ मिला।
पति पियरे क्यूरी के साथ लैब में काम करती मैरी क्यूरी।
मैरी क्यूरी ने रेडियोलॉजी के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण अनुसंधान किए। उनका काम चिकित्सा में उपयोग होने वाली नई तकनीकों का आधार बना, खासकर कैंसर के इलाज के लिए ‘रेडियोथेरेपी’ के रूप में। उनकी खोजों ने विज्ञान की दुनिया में महिलाओं की भूमिका को सशक्त किया। मौरी क्यूरी को दूसरा नोबेल पुरस्कार 1911 में रसायन विज्ञान के क्षेत्र में मिला था।
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जिंदगी में झेली थीं कई तरह की मुश्किलें
मैरी क्यूरी का व्यक्तिगत जीवन भी बहुत प्रेरणादायक है। उनके पति पियरे क्यूरी भी एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे और दोनों ने मिलकर विज्ञान की सेवा की। पियरे क्यूरी की 1906 में एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी, जिससे मैरी को बहुत ज्यादा आघात पहुंचा था। हालांकि उन्होंने अपने पति के द्वारा किए जा रहे कामों को जारी रखा और अपने शोध में और ज्यादा सफलता हासिल की। इसके अलावा भी मैरी क्यूरी के जीवन में कई मुश्किलें आईं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
पति पियरे क्यूरी के साथ मैरी क्यूरी की एक और खूबसूरत तस्वीर।
मैरी क्यूरी रेडियोधर्मी तत्वों के संपर्क में आने के कारण बीमार पड़ गईं और रेडियोधर्मिता के खतरों की वजह से ही उनकी मौत भी हुई थी। दरअसल, रेडियोधर्मिता के खतरों के बारे में उन्हें पता ही नहीं था। मैरी क्यूरी अपनी जेब में रेडियोधर्मी टेस्ट ट्यूब रखती थीं, और वह बिना किसी सुरक्षा के एक्स-रे के संपर्क में आती थीं। उनकी कुछ किताबें और कागजात अभी भी इतने रेडियोधर्मी हैं कि उन्हें सीसे के बक्सों में रखा जाता है
मेडिकल फील्ड में दिया अभूतपूर्व योगदान
मैरी क्यूरी का काम न केवल रेडियोलॉजी के क्षेत्र में क्रांतिकारी था, बल्कि उनके शोध ने चिकित्सा विज्ञान, परमाणु ऊर्जा, और विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए। उनकी खोजों ने विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के लिए नए रास्ते खोले और यह दिखाया कि महिलाएं भी विज्ञान के सबसे कठिन और जटिल क्षेत्रों में योगदान दे सकती हैं। उनकी खोज आज भी कैंसर जैसे घातक रोगों के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
इसके अलावा, उनका जीवन यह साबित करता है कि कठिनाइयों के बावजूद किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त की जा सकती है। उनके कार्यों और उनके द्वारा छोड़ी गई विरासत ने महिला वैज्ञानिकों के लिए नए दरवाजे खोले और यह साबित किया कि विज्ञान में महिलाओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। उनका जीवन हमेशा विज्ञान की दुनिया और विशेष रूप से महिला वैज्ञानिकों के लिए एक प्रेरणा रहेगा।