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राष्ट्रीय एकता का संदेश

स्वतन्त्रता संग्राम से लेकर मजबूत और एकीकृत भारत के निर्माण तक में सरदार वल्लभ भाई पटेल का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनका जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व सदैव प्रेरणा के रूप में देश के सामने रहेगा। उन्होंने युवावस्था में ही राष्ट्र और समाज के लिए अपना जीवन समर्पित करने का निर्णय लिया था। इस ध्येय पथ पर वह निःस्वार्थ भाव से लगे रहे। गीता में भगवान कृष्ण ने कर्म को योग रूप में समझाया है। अर्थात अपनी पूरी कुशलता और क्षमता के साथ दायित्व का निर्वाह करना चाहिए। सरदार पटेल ने आजीवन इसी आदर्श पर अमल किया। जब वह वकील के दायित्व का निर्वाह कर रहे थे, तब उसमें भी उन्होंने मिसाल कायम की। इस संदर्भ में एक घटना उल्लेखनीय होगी कि एकबार वह जज के सामने जिरह कर रहे थे, तब उन्हें एक टेलीग्राम मिला।

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उन्होने उसे देखा और चुपचाप जेब मे रख लिया। जिरह जारी रही। जिरह पूरी होने के बाद उन्होंने घर जाने का फैसला लिया। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उस तार में उनकी धर्मपत्नी के निधन की सूचना थी। वस्तुतः यह उनके लौहपुरुष होने का भी उदाहरण है। ऐसा नहीं कि इसका परिचय आजादी के बाद उनके कार्यो से मिला, बल्कि यह दृढ़ता उनके व्यक्तित्व की बड़ी विशेषता थी। जिसका प्रभाव उनके प्रत्येक कार्य में दिखाई देता था। बचपन मे फोड़े को गर्म सलाख से ठीक करने का प्रसंग भी ऐसा ही था। तब बालक वल्लभ भाई अविचलित बने रहे थे। यह प्रसंग उनके जीवन को समझने में सहायक है। आगे चलकर इसी विशेषता ने उन्हें महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और कुशल प्रशासक के रूप में प्रतिष्ठित किया।

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देश को आजाद करने में उन्होने महत्वपूर्ण योगदान दिया। महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के साथ ही कांग्रेस में एक बड़ा बदलाव आया था। इसकी गतिविधियों का विस्तार सुदूर गांव तक हुआ था। लेकिन इस विचार को व्यापकता के साथ आगे बढ़ाने का श्रेय सरदार पटेल को दिया जा सकता है।
उन्हें भारतीय सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था की भी गहरी समझ थी। वह जानते थे कि गांवों को शामिल किए बिना स्वतन्त्रता संग्राम को पर्याप्त मजबूती नहीं दी जा सकती।

राष्ट्रीय एकता का संदेश

वारदोली सत्याग्रह के माध्यम से उन्होने पूरे देश को इसी बात का सन्देश दिया था। इसके बाद भारत के गांवों में भी अंग्रेजो के खिलाफ आवाज बुलंद होने लगी थी। देश मे हुए इस जनजागरण में सरदार पटेल की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी। इस बात को महात्मा गांधी भी स्वीकार करते थे। सरदार पटेल के विचारों का बहुत सम्मान किया जाता था। उनकी लोकप्रियता भी बहुत थी। स्वतन्त्रता के पहले ही उन्होने भारत को शक्तिशाली बनाने की कल्पना कर ली थी।

सरदार पटेल भारत की मूल परिस्थिति को गहराई से समझते थे। वह जानते थे कि जब तक अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान महत्वपूर्ण बना रहेगा, तब तक सन्तुलित विकास होता रहेगा। इसके अलावा गांव से शहरों की ओर पलायन नही होगा। गांव में ही रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। आजादी के बाद भारत को एकजुट रखना बड़ी चुनौती थी। अंग्रेज जाते-जाते अपनी कुटिल चाल चल गए थे। साढ़े पांच सौ से ज्यादा देशी रियासतों को वह अपने भविष्य के निर्णय का अधिकार दे गए थे। उनका यह कुटिल आदेश एक षड्यंत्र जैसा था। वह दिखाना चाहते थे कि भारत अपने को एक नहीं रख सकेगा, देश के सामने आजाद होने के तत्काल बाद इतनी रियासतों को एक रखने की चुनौती थी। सरदार पटेल ने बड़ी कुशलता से इस एकीकरण का कार्य सम्पन्न कराया। इसमें भी उनका लौह पुरुष वाला व्यक्तित्व दिखाई देता है।

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उन्होने देशी रियासतों की कई श्रेणी बनाई। सभी से बात की। अधिकांश को सहजता से शामिल किया। कुछ के साथ कठोरता दिखानी पड़ी। सेना का सहारा लेने से भी वह पीछे नहीं हटे। मतलब देश की एकता को उन्होने सर्वोच्च माना और उसके लिए किसी भी हद तक जाने को तत्पर दिखे। आजादी के बाद उन्हें केवल तीन वर्ष देश की सेवा का अवसर मिला। इस अवधि में ही उन्होने बेमिशाल कार्य किये। ईमानदारी और सादगी ऐसी कि निधन के बाद निजी सम्प्पति के नाम पर उनके पास कुछ नहीं था। लेकिन उनके प्रति देश की श्रद्धा और सम्मान का खजाना उतना ही समृद्धशाली था। यह उनकी महानता का प्रमाण है।

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राष्ट्रीय एकता में सरदार पटेल के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। इसके लिए उन्होंने सभी संभव प्रयास किये।हैदराबाद के ऑपरेशन पोलो के लिए उन्होंने सेना का भी प्रयोग किया। क्योकि वहां का निजाम हठधर्मिता छोड़ने को तैयार नहीं था। उनके प्रयासों से छह सौ बाँसठ रियासतों का भारतीय संघ में विलय हुआ। जूनागढ़ का नबाब पाकिस्तान में मिलना चाहता था। सरदार पटेल ने सिरे से उंसकी मांग नकार दी। उस पर नकेल कसने सरदार पटेल बारह नवंबर उन्नीस सौ सैंतालीस को जूनागढ़ पहुंचे। उन्होंने भारतीय सेना को आवश्यक निर्देश दिए, जिससे नबाब की उम्मीदों पर पानी फिर गया। सेना और जूनागढ़ की जनता के दबाब के बाद नबाब खुद पाकिस्तान चला गया। इस प्रकार जूनागढ़ भी भारत में मिल गया। कश्मीर मामले में पाकिस्तान ने हस्तक्षेप किया था। कबालियों के भेष में सैनिक भेजे थे। शेष कश्मीर का ही भारत में विलय हुआ। नरेंद्र मोदी सरकार ने सरदार पटेल की प्रेरणा से ही अनुच्छेद तीन सौ सत्तर व पैंतीस ए को समाप्त किया है। सरदार पटेल की दृढ़ता आज भी प्रेरणादायक है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल की जयंती के मौके पर केवड़िया में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी स्थल पहुँच कर श्रद्धांजलि अर्पित की। रैंप से स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के बराबर गए और वहां से सरदार पटेल को फूल चढ़ाए। कहा कि जैसे पंद्रह अगस्त हमारी स्वतंत्रता के उत्सव का,छब्बीस जनवरी हमारे गणतंत्र के जयघोष का दिवस है, उसी तरह इकतीस अक्टूबर का ये दिन देश के कोने-कोने में राष्ट्रीयता के संचार का पर्व बन गया है। पंद्रह अगस्त को दिल्ली के लाल किले पर होने वाला आयोजन, छब्बीस जनवरी को दिल्ली के कर्तव्यपथ पर परेड और इकतीस अक्टूबर को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के सानिध्य में मां नर्मदा के तट पर राष्ट्रीय एकता दिवस का ये मुख्य कार्यक्रम राष्ट्र उत्थान की त्रिशक्ति बन गए हैं।

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इस प्रतिमा की निर्माण गाथा में ही एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना का प्रतिबिंब है। अमृतकाल में भारत ने गुलामी की मानसिकता को त्यागकर आगे बढ़ने का संकल्प लिया है। हम विकास भी कर रहे हैं और अपनी विरासत का संरक्षण भी कर रहे हैं। भारत ने अपनी नौसेना के ध्वज पर लगे गुलामी के निशान को हटा दिया है। गुलामी के दौर में बनाए गए गैर जरूरी कानूनों को भी हटाया जा रहा है। इंडिया गेट पर जहां कभी विदेशी सत्ता के प्रतिनिधि की प्रतिमा थी, वहां अब नेताजी सुभाष की प्रतिमा हमें प्रेरणा दे रही है। लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक, राष्ट्रीय एकता दौड़ कार्यक्रम में शामिल हुए। इसके माध्यम से सरदार बल्लभ भाई पटेल के प्रति सम्मान व्यक्त किया गया। राष्ट्रीय एकता के संदेश दिया गया।

रिपोर्ट-डॉ दिलीप अग्निहोत्री

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