सत्ता में रहने वाले किसी भी राजनेता के लिए मन की बात को वर्षों तक लोकप्रिय बनाये रखना आसान नहीं होता। इसके लिए स्वयं की नेकनीयत अपरिहार्य होती है। इसी के आधार पर जन मानस के बीच विश्वसनीयता कायम रखी जा सकती है। मन की बात नरेंद्र मोदी का अभिनव प्रयोग है।
यह संस्करण तिहत्तरवें पढाव पर पहुंच चुका है। इसमें नरेंद्र मोदी प्रायः राजनीति से अलग अभिभावक की भूमिका में नजर आते है। वह छोटे बच्चों और विद्यार्थियों को सलाह देते है,बेहतर कार्य करने वालों की प्रशंसा करते है। इस बार मन की बात में उन्होंने अनेक प्रसंगों को उठाया। इनमें पदम् सम्मान, आधुनिक कृषि पर्यावरण, क्रिकेट आदि शामिल है।
तिरंगे के अपमान की व्यथा
उन्होंने कहा कि गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में तिरंगे का अपमान देख कर देश को बहुत दुखी हुआ। दूसरी तरफ ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो राष्ट्र ने असाधारण कार्य कर रहे है। यही देश की ताकत है। ऐसे लोगों को उनकी उपलब्धियां और मानवता के प्रति उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। इन जन सामान्य को पद्म सम्मान मिल रहा है।
आत्मनिर्भर भारत में वैक्सीन
कोरोना वैक्सीन के निर्माण से आत्मनिर्भर भारत की विश्व में प्रतिष्ठा बढ़ी है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि जैसे कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई एक उदाहरण बनी है, वैसे ही हमारा वैक्सीनेशन प्रोग्राम भी दुनिया में एक मिसाल बन रहा है। सबसे बड़े वैक्सीनेशन प्रोग्राम के साथ ही दुनिया में सबसे तेज गति से अपने नागरिकों का वैक्सीनेशन भी कर रहे हैं। संकट के समय में भारत दुनिया की सेवा इसलिए कर पा रहा है, क्योंकि भारत आज दवाओं और वैक्सीन को लेकर सक्षम है, आत्मनिर्भर है। यही सोच आत्मनिर्भर भारत अभियान की भी है।
पर्यावरण संरक्षण का लाभ
नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद के बोयिनपल्ली सब्जी मंडी उदाहरण दिया। इस सब्जी मंडी तय किया है कि बचने वाली सब्जियों को ऐसे फेंका नहीं जाएगा। इससे बिजली बनाई जाएगी। पर्यावरण की रक्षा से कैसे आमदनी के रास्ते भी खुलते हैं, इसका एक उदाहरण अरुणाचल प्रदेश के तवांग में भी देखने को मिला। इस पहाड़ी इलाके में सदियों से ‘मोन शुगु’ नाम का एक पेपर बनाया जाता है. इसके लिए पेड़ों को नहीं काटना पड़ता है।
प्रगतिशील कृषि की प्रतिबद्धता
नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले छह वर्षो के दौरान कृषि सुधार के अभूतपूर्व कार्य किये है। इसके सकारात्मक।परिणाम मिल रहे है। पिछले दिनों झांसी में एक महीने तक चलने वाला Strawberry Festival शुरू हुआ। बुंदेलखंड के लिए यह नया अनुभव था। तकनीक की मदद से ऐसे ही प्रयास देश के अन्य हिस्सों में भी हो रहे हैं,जो स्ट्राबेरी कभी, पहाड़ों की पहचान थी, वो अब कच्छ की रेतीली जमीन पर भी होने लगी है, किसानों की आय बढ़ रही है।
इस महोत्सव के माध्यम से किसानों और युवाओं को अपने घर के पीछे खाली जगह या छत पर टैरेस गार्डेन में बागवानी करने और स्ट्राबेरीज उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। कृषि को आधुनिक बनाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। अनेक कदम उठा भी रही है. सरकार के प्रयास आगे भी जारी रहेंगे।