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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता को बताया अनावश्यक, कहा बर्बाद न करे देश के…

ल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने समान नागरिक संहिता को देश के लिए अनावश्यक, अव्यवाहरिक और अत्यंत हानिकारक करार दिया है। बोर्ड ने शुक्रवार को जारी बयान में केन्द्र सरकार से मांग की है कि देश के संसाधनों को बर्बाद कर समाज में फूट का माहौल न बनाया जाए।

बोर्ड के प्रवक्ता डा. कासिम रसूल इलियास ने शुक्रवार को जारी बयान में कहा कि हमारा देश बहु धार्मिक, बहु सांस्कृतिक और बहु भाषाई देश है। यही विविधता इस देश की खास पहचान है। देश के संविधान निर्माताओं ने इसी विशिष्टता को ध्यान में रखते हुए धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार के रूप में संरक्षण दिया है। अनुच्छेद 25 व 26 के अलावा संविधान के अनुच्छेद 371 ए और जी में उत्तर पूर्व के राज्यों के आदिवासियों को गारंटी दी गई है कि संसद ऐसा कोई भी कानून नहीं बनाएगी जो उनके फैमिली कानूनों को निरस्त करता हो।

बोर्ड की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया है कि शरीअत के कानून, कुरआन और सुन्नत से लिये गये हैं जिसमें मुसलमानों कोई बदलाव करने का अधिकार नहीं है। इसी तरह अन्य धार्मिक व सांस्कृतिक समूह भी अपने पारम्परिक और सांस्कृतिक मूल्यों से लगाव रखते हैं। इसलिए सरकार या किसी बाहरी स्रोत द्वारा पर्सनल लॉ में कोई बदलाव समाज में केवल अराजकता और अव्यवस्था को बढ़ावा देगा और किसी भी उचित सरकार से इसकी अपेक्षा नहीं की जा सकती है।

बोर्ड ने सभी मुस्लिम धार्मिक व सामाजिक संगठनों से अपील की है कि वह विधि आयोग की प्रश्नावली का जवाब जरूर दें और आयोग को यह स्पष्ट कर दें कि समान नागरिक संहिता न केवल अव्यवहारिक है बल्कि अनावश्यक और हानिकारक भी है।

साथ ही यह कि मुसलमान अपनी शरीअत के मामले में कोई समझौता नहीं कर सकते। बोर्ड ने देश की सभी धार्मिक और सांस्कृतिक इकाइयों, बुद्धिजीवियों, नागरिक सामाजिक आंदोलनों और धार्मिक नेताओं से भी अपील की है कि वह विधि आयोग की प्रश्नावली का जवाब दें और देश को इस बेकार के काम से रोकें।

 

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