लखनऊ। राहुल गांधी ने कहा था कि भाजपा को हराना आसान है और आप देखेंगे आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को पराजित होगी, परंतु मोदी सरकार जिस प्रकार से संस्थाओं का दुरुपयोग करके हमारे अधिकारों को और संविधान में दी गई शक्तियों को कमजोर कर रही है वह इस देश के लिए घातक है।
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यह सच है कि जिस प्रकार से 2014 के बाद से मोदी सरकार ने देश की संस्थाओं को सरकारी मशीनरींयों द्वारा अपने हित के लिए दुरुपयोग कर रही हैं, चाहे केंद्रीय एजेंसी सीबीआई, ईडी हो या चुनाव आयोग, महिला आयोग, पिछड़ा आयोग सहित बाल अधिकार संरक्षण आयोग सब केंद्र कि मोदी सरकार के कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं जिसका खामियाज़ा देश की पीड़ित शोषित जनता के अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित हो कर उठाना पड़ रहा है।
ज्ञात हो कि 7 जून को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग NCPCR ने उत्तर प्रदेश सरकार से राज्य के सभी सरकारी सहायता प्राप्त/मान्यता प्राप्त मदरसो की विस्तृत जांच कर शिक्षा का अधिकार अधिनियम पालन न करने वाले सरकारी सहायता प्राप्त मदरसो को बंद करने की सिफारिश की थी। और उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव ने त्वरित कार्रवाई करते हुए 26 जून को जिला मजिस्ट्रेट को एनसीपीसीआर के पत्र में दिए गए निर्देशों को पालन करने का आदेश दे दिया। जिसके विरुद्ध जमीयत उलेमा ने शीर्ष अदालत का रुख किया, जिस पर माननीय उच्चतम न्यायालय ने फिलहाल रोक लगा दी जो स्वागत योग्य है।
गौरतलब हो की अकेले यूपी में 16,513 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं जो 27 लाख छात्रों को शिक्षा देते हैं इनमें से 558 मद्रास को सरकारी अनुदान मिलता है बाकी सरकारी सहायता प्राप्त निजी मदरसे हैं। लेकिन विडंबना यह है कि जिस प्रकार से एनसीपीसीआर सरकार की एक कठपुतली बनकर एक विशेष समाज और उनकी संस्थाओं को टारगेट करके उनका उत्पीड़न कर रही है यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
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यह केवल सरकारी षड्यंत्र नहीं तो और क्या है कि जब संविधान के अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थाओं को स्थापित कर उसे संचालित करने के अधिकार की गारंटी देता है क्या यह उसकी अवहेलना नहीं है? क्या यह अनुच्छेद 30 के तहत धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों को प्रभावित नहीं करती? और तो और NCPCR जिस शिक्षा के अधिकार कानून (RTE) के न पालन का हवाला दे रही है, उसी आरटीई अधिनियम की धारा 1(5) में कहा गया है इस अधिनियम मैं निहित कोई भी बात मदरसों, वैदिक पाठशालाओं और मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाली शैक्षणिक संस्थानों पर लागू नहीं होगी।
एनसीपीसीआर को मालूम होना चाहिए की यह उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। दरअसल कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी और संघ के विचार में यही अंतर है, कांग्रेस पार्टी आरटीई कानून में इस बात को सुनिश्चित किया था जिससे मदरसे और वैदिक पाठशालाएं पूर्ण रूप से स्वतंत्र रहेंगे, और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता को किसी प्रकार से हनन नहीं पहुंचेगी। जबकि भाजपा इस देश में एक अधिपत्य स्थापित करना चाहती हैं और सभी के संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों से वंचित करके अपने एजेंडे मे सफल होना चाहती हैं।
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इस प्रकार का कृत्य 2014 के बाद से निरंतर हो रहा है आए दिन देश के पीड़ित, शोषित, वंचित समाज के विरुद्ध सरकारी फरमान आदेश जारी कर दिया जाता है और उसे उत्पीड़न और अत्याचार के खिलाफ हम जैसे बेबस, मजलूम असहाय लोग को न्यायिक और राजनीतिक लड़ाई लड़ने पर मजबूर किया जाता है, यह एक सोची समझी साजिश के अंतर्गत आरएसएस के एजेंडे को पूरे देश में थोपने का खेल चल रहा है और यह सब कुछ सरकारी संरक्षण में सरकारी मशीनरींयों द्वारा प्रायोजित ढंग से किया जा रहा है।
एनसीपीसीआर की मदरसो के विरुद्ध सिफारिश कोई संयोग नहीं बल्कि एक प्रयोग है। क्योंकि मोदी सरकार लगातार पूरे देश में मदरसो के खिलाफ लामबंद है असम सहित कई राज्यों में मदरसो को बुलडोज भी किया जा चुका है, इसके अतिरिक्त इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गत 22 मार्च को उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट 2004 को असंवैधानिक ठहरा दिया था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी। इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्वागत योग्य है कि उसने एनसीपीसीआर की सिफारिश पर रोक लगा दी और फटकार लगाई आपको केवल मदरसों की ही चिंता क्यों है? क्या एनसीपीसीआर ने सभी समुदाय के लोगो को हिदायत दि है कि अपने बच्चों को मठ और पाठशाला में ना भेजें? क्या एनसीपीसीआर का सभी समुदायों के प्रति व्यवहार समान रहा है?