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अशांत बंगाल और शांत आन्दोलनजीवी

पश्चिम बंगाल की राजनीतिक हिंसा पर जारी रिपोर्ट में चौकाने वाली बात नहीं है। यह सब जगजाहिर था। यहां चुनाव के बाद से ही हिंसक गतिविधियां चलती रही है। इसमें भाजपा का समर्थन करने वाले निशाने पर थे। हिंसक तत्वों को सत्तारूढ़ तृणमूल कॉंग्रेस का खुला समर्थन था। यही कारण था कि पुलिस व प्रशासन ऐसी घटनाओं को जनरन्दाज करता रहा। इससे हिंसक तत्वों का मनोबल बहुत बढ़ गया था। पीड़ित लोगों की पुलिस थानों में कोई सुनवाई नहीं थी। वस्तुतः यह हिंसा सुनियोजित थी।

इसका उद्देश्य भाजपा समर्थकों में भय फैलाना था। बंगाल में कम्युनिस्ट व कॉंग्रेस का सफाया हो गया। तृणमूल कॉंग्रेस के सीधे मुकाबले में भाजपा आ गई थी। यह सही है कि इस बार उसे सरकार बनाने का अवसर नहीं मिला,लेकिन उसे तिहत्तर सीटों का लाभ हुआ,नब्बे सीटों पर उसे मामूली अंतर से पराजय का सामना करना पड़ा था। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी नन्दीग्राम से पराजय का सामना करना पड़ा। ऐसे में सरकार बनाने के बाद भी तृणमूल कॉंग्रेस की चिंता बढ़ी थी। छह महीने के भीतर ममता बनर्जी को भी विधानसभा चुनाव लड़ना आवश्यक है। बंगाल में विधानपरिषद का अस्तित्व नहीं है।

ममता बनर्जी के पास अन्य कोई विकल्प भी नहीं है। यदि वह चुनाव नहीं जीत सकी,तो उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ेगा। ममता बनर्जी को बिहार के एक उदाहरण से भी चिंता रही होगी। वहां तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने ऐसे व्यक्ति को मंत्री बनाया था,जो विधानमंडल के सदस्य नहीं थे। शपथ ग्रहण के छह महीने बाद भी वह सदस्य नहीं बन सके। इसलिए मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उस समय लालू यादव अपनी चर्चित अंदाज में हुआ करते थे। उन्होंने कुछ दिन बाद उन्हें फिर मंत्री बना दिया। कहा कि अब अगले छह महीने तक वह पुनः मंत्री रह सकते है। इस नजीर से भी ममता बनर्जी की चिंता बढ़ी है।

विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने देश के नेताओं को बाहरी बताया था। यह उनका स्थानीय कार्ड था। लेकिन अब वह जहां से चुनाव लड़ेंगी वहां नन्दीग्राम की तरह उनके मुकाबले में स्थानीय व्यक्ति ही होगा। संभव है कि इस कारण भी विरोधियों में भय फैलाया जा रहा है। एक एजेंसी की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा के करीब पन्द्रह हजार मामले हुए। जिनमें पच्चीस लोगों की जान गई। सात हजार से अधिक महिलाओं का उत्पीड़न हुआ। केंद्र सरकार ने इस रिपोर्ट के आधार पर उचित कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है।

गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया कि कॉल फॉर जस्टिस नाम की एक संस्था ने सरकार को यह रिपोर्ट सौंपी है। इसमें दावा किया गया कि चुनाव नतीजों के बाद दो मई की रात से शुरू हुई हिंसा की वारदातें प्रदेशभर के गांवों और कस्बों में हुई हैं। अधिकांश घटनाएं छिटपुट नहीं बल्कि पूर्व नियोजित, संगठित और षड्यंत्रकारी हैं। भाजपा ने पोस्ट वायलेंस पर गृह मंत्रालय की ओर से बनाई गई फैक्ट फाइंडिंग कमिटी की रिपोर्ट के खुलासे पर पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार जमकर हमला बोला। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पश्चिम बंगाल के सत्तापक्ष को इसके लिए जिम्मेदार बताया। कहा कि सुनियोजित रणनीति के तहत पूरे प्रदेश में हिंसा को अंजाम दिया गया।

तृणमूल कांग्रेस का विरोध करने वालों को मारा गया। महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हुई। कई घरों को नेस्तोनाबूद किया गया। पीडि़तों को पुलिस स्टेशन जाने से रोका गया। उन लोगों पर जुर्माने लगाए गए जो भारतीय जनता पार्टी की ओर से काम कर रहे थे। फैक्ट फाइंडिंग कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि पूरी हिंसा के दौरान बंगाल पुलिस पूरी तरह से मूकदर्शक बनी रही। जो लोग तृणमूल कांग्रेस को छोड़ कर अन्य राजनीतिक पार्टियों के लिए काम कर रहे थे, उनके आधार कार्ड और राशन कार्ड तक छीन लिए गए। ख़ास तौर में दलित व वनवासी महिलाओं और कमजोर लोगों को निशाना बनाया गया। गृह मंत्रालय की ओर से पोस्ट वायलेंस पर बनाई गई फैक्ट फाइंडिंग कमिटी में सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके जस्टिस प्रमोद कोहली, केरल के पूर्व चीफ सेक्रेटरी आनंद बोस, कर्नाटक के पूर्व अतिरिक्त सचिव मदन गोपाल,आईसीएसआई के पूर्व अध्यक्ष निसार चंद अहमद और झारखंड की पूर्व डीजीपी निर्मल कौर शामिल हैं।

बंगाल में चुनाव बाद हिंसा पर बोलते हुए कहा कि टीएमसी ने विधान सभा चुनाव में विजय मनाने से पहले ही विध्वंस की राजनीति शुरू की थी। जेपी नड्डा ने पूछा कि कहां चले गए देश के सारे विरोधी दल। दुर्भाग्य से कोई घटना यदि भाजपा शासित राज्य में हो जाती तो तूफान खड़ा कर दिया जाता। जब बंगाल में दलितों,पिछड़ों, आदिवासियों और महिलाओं के साथ हिंसा होती है तो इन मावनाधिकार कार्यकर्ता की आवाज ही नहीं निकलती। ऐसे तथाकथित मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को भी बेनकाब करना जरूरी है।

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