पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तीन-चार जिलों को छोड़कर प्रदेश के बाकी 71-72 जिलों के किसानों को मोदी सरकार द्वारा लाए गए नये कृषि कानून से कोई परेशानी नजर नहीं आ रही है। न कहीं कोई आंदोलन हो रहा है, न ही विरोध के सुर सुनाई दे रहे हैं। यूपी के किसानों का बड़ा धड़ा तो यहां तक कहता है कि यह किसान आंदोलन नहीं सियासी प्रपंच है। किसान आंदोलन होता तो किसानों की बात होती।
यहां तो मोदी को मारने, खालिस्तान बनाने,देश को तोड़ने की बात होती है। मोदी विरोधी राजनैतिक दल कथित किसानों की पीठ पर चढ़कर सत्ता की सीढ़िया चढ़ने की साजिश में लगे हैं। विदेशी ताकतें देश में अस्थिरिता फैलाने के लिए खुलर साजिश रच रही हैं,लेकिन नये कृषि कानून को लेकर यूपी के किसानों की चुप्पी कांग्रेस को रास नहीं आ रही है। कांग्रेस, प्रदेश में फिर से वैसा ही माहौल खड़ा करना चाहती हैं जैसा नागरिकता संशोघन कानून के समय बनाया गया था। तब कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन एक्ट(सीएए) को मुसलमानों के खिलाफ बताने का ढिंढोरा पीटा था, आज कांग्रेस मोदी सरकार द्वारा पास किए गए नये कृृषि कानून को किसानों के खिलाफ बता कर बखेड़ा खड़ा कर रही है।
दोनों ही मामलों में एक और समानता यह है कि पहले सीएए को लेकर मुसलमानों को बरगलाने वाली प्रियंका वाड्रा अब नये कृषि कानून को लेकर भी वैसा ही कुचक्र रच रही हैं। इसी कुचक्र के सहारे किसानों की ‘पीठ’ पर चढ़कर प्रियंका वाड्रा अपनी सियासत और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की जड़े मजबूत करना चाहती हैं। वर्ना कांग्रेस के पास इतनी क्षमता ही नहीं है कि वह जनता की समस्याओं को अपने बल पर मजबूती के साथ उठा सकें,जबकि प्रदेश में तमाम तरह की समस्याओं से प्रदेश की जनता को रूबरू होना पड़ रहा है।
प्रदेश की सड़कों का बुरा हाल है। जमाखोरी के चलते मंहगाई पर लगाम नहीं लग पा रही है। भले, कभी प्याज की बढ़ी कीमतें सरकार गिरा देती हों,लेकिन आज कांग्रेस इस ओर से आंखे मुंदे बैठी है। रसोई की गैस मंहगी होती जा रही है और सब्सिडी के नाम पर उपभोक्ता के खाते में आतें हैं मात्र 35 रूपए के आसपास, जबकि पहले पहले सात-साढ़े सात सौ का गैस सिलेडर घर आता था तो करीब दो-ढाई सौ रूपए की सब्सिडी का पैसा बैंक में पहुंच जाता था, लेकिन आज सिलेंडर की कीमत कुछ भी हो, सब्सिडी 35 रूपये ही आती है। इसी प्रकार सरकारी योजनाओं का काम कच्छप गति से चल रहा है। बिजली उपभोक्ता अलग त्रस्त हैं। एक तो आसमान छूती बिजली कीमतें और उस पर सरचार्ज जैसे तमाम टैक्स जोड़ दिए जाते हैं।
खैर, संभवता कांग्रेस में इतनी राजनैतिक ताकत ही नहीं होगी जो आम जनता की उक्त समस्याओं को वह अपने संगठन के बल पर सरकार के सामने बड़ा मुद्दा बना सके। इसी लिए उसे किसानों आंदोलन में स्वयं का पैर फंसाकर अपनी सियासत चमकाना ज्यादा आसान लगा होगा। इसी लिए कांग्रेस पंजाब से लेकर हरियाणा,झारखंड, महाराष्ट्र आदि तमाम जगाहों पर किसान आंदोलन की अगुआ बन गई है। अब यूपी में भी प्रियंका किसानों को उकसाने की रणनीति बना रही हैं ताकि 2022 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस का बेड़ा पार किया जा सके। पूरे प्रदेश में किसान आंदोलन खड़ा करने के लिए ही प्रियंका वाड्रा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई महापंचायत करने के बाद प्रदेश भर में भ्रमण का कार्यक्रम बना रही हैं। पश्चिमी यूपी के दौरे के बाद प्रियंका वाड्रा पूर्वांचल के दौरे पर निकलना चाह रही हैं,लेकिन इससे पूर्व वह जमीनी स्तर पर संगठन की टोह भी ले लेना चाहती हैं ताकि कहीं कोई कमी नहीं रह जाए।
लब्बोलुआब यह है कि प्रियंका के यूपी दौरे का प्रोग्राम काफी सोच-समझ कर तैयार किया गया है। उम्मीद यही की जानी चाहिए कि अगले वर्ष उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव तक प्रियंका की प्रदेश में सक्रियता बढ़ी रहेगी। फिलहाल प्रियंका सहारनपुर, प्रयागराज और बिजनौर का दौरा कर चुकीं हैं। 19 फरवरी को मथुरा में उनकी किसान पंचायत होनी है। इसके साथ ही प्रियंका 21 फरवरी से छह दिन के प्रवास पर लखनऊ आ सकती हैं। प्रियंका के प्रवास की संभावनाओं के बीच उनकी टीम लखनऊ पहुंच चुकी है। पार्टी पदाधिकारियों के अनुसार प्रियंका वाड्रा करीब एक हफ्ते तक लखनऊ में प्रवास के दौरान प्रदेश मुख्यालय में संगठन सृजन अभियान की समीक्षा करेंगी। इस दौरान उनकी न्याय पंचायत, ब्लॉक, शहर, जिला और प्रदेश कमेटी के पदाधिकारियों के साथ बैठक भी तय है। इसके साथ-साथ प्रियंका की एक-एक बैठक फ्रंटल संगठन के अलावा ऐसे कार्यकर्ताओं के साथ भी होगी, जो सक्रिय रहते हैं, लेकिन उनके पास कोई अहम जिम्मेदारी नहीं है।
प्रियंका के लखनऊ में ठहराव के बाद पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश के दौरे पर निकल जाएंगी। इसी बीच प्रियंका के अयोध्या दौरे की भी चर्चा है। अभी प्रदेश प्रभारी का अधिकृत कार्यक्रम घोषित नहीं हुआ है, लेकिन तैयारियां की निगरानी करने के लिए प्रियंका टीम 17 फरवरी को प्रदेश मुख्यालय पहुंच चुकी है। उल्लेखनीय है कि एक वर्ष पहले 17 जनवरी, 2020 को प्रियंका लखनऊ आई थीं और तीन दिन तक रहीं। उसके बाद उनके आने की चर्चा तो होती रही, लेकिन कोरोना की वजह से कार्यक्रम टलता रहा। जिस तरह से प्रियंका और कांग्रेस किसान आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं उससे तो यही लगता है कि प्रियंका ने पूरे प्रदेश के किसानों को नये कृषि कानून के खिलाफ लामबंद करने का मन बना लिया है।