किसानों के नाम पर चल रहे आंदोलन का क्षेत्र अत्यंत सीमित है। राष्ट्रीय स्तर पर वास्तविक किसानों की इसमें सहभागिता नहीं है। फिर भी क्षेत्र विशेष की समस्या का समाधान भी सरकार की जिम्मेदारी है। इसके लिए केंद्र सरकार लगातार प्रयास भी कर रही है। उसने अपनी तरफ से आंदोलनकारियों के प्रतिनिधियों को वार्ता हेतु आमंत्रित किया था। कई दौर की वार्ता हुई। सरकार जानती है कि कृषि कानून का विरोध कल्पना और आशंका पर आधारित है। इसको भी दूर करने के लिए सरकार ने लिखित प्रस्ताव दिए है। लेकिन आंदोलनकारियों ने अनुकूल रुख का परिचय नहीं दिया। वह हठधर्मिता का परिचय दे रहे है। यह कहा गया कि सरकार कुछ प्रस्ताव जोड़ने की बात कर रही है। इसका मतलब की कानून गलत है। इसको समाप्त किया जाए। जबकि ऐसा है नहीं। सरकार ने पूरी नेकनीयत से कानून बनाया है। आंदोलन व विपक्ष ने नेताओं को यह समझना चाहिए कि आज भी नेकनीयत के आधार पर नरेंद्र मोदी उनसे बहुत आगे है। यही कारण है कि इस तर्ज पर पहले हुए सभी आंदोलन असफल रहे थे। सभी का अंदाज एक जैसा था। महीनों तक आंदोलनकारियों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध होती रही। अनेक जगह महिलाओं व बच्चों को आगे किया गया। इसके बाद भी जनमानस का समर्थन व सहानूभूति उन्हें नहीं मिली। ऐसे आंदोलन का समर्थन करने वाले राजनीतिक दलों की भी प्रतिष्ठा कम हुई।
कृषि आय बढ़ाने का प्रयास
इसमें कोई सन्देश नहीं कि पिछले अनेक दशकों से कृषि आय कम हो रही थी। छोटे किसानों का कृषि से मोहभंग हो रहा था। गांव से शहरों की तरफ पलायन पिछली सभी सरकारें देखती रही। आज उन्हीं दलों के नेता किसानों से हमदर्दी दिखा रहे है। मोदी सरकार ने इस कमी को दूर करने का प्रयास किया। नए कानूनों के माध्यम से खेती के क्षेत्र में निजी निवेश गांव तक पहुंचाने की व्यवस्था की गई थी। जिससे किसान अगर अपनी उपज वहीं रोकना चाहता है तो उसके लिए पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्टर का प्रावधान किया गया। किसान को मनचाही कीमत पर अपना उत्पादन बेचने को स्वतंत्र किया गया। किसान को आज तक ये अधिकार क्यों नहीं मिला। वह अपना उत्पादन कहां बेचे और किस दाम पर बेचे इसकी स्वतन्त्रता नहीं थी। कानून के माध्यम से किसानों को स्वतंत्रता देने का प्रयास किया है।
कांट्रेक्ट फार्मिंग के लाभ
कृषि मंत्री ने नरेंद्र तोमर ने कहा कांट्रेक्ट फार्मिंग से किसान को लाभ होगा। उनकी आय बढ़ेगी। छोटे किसान को यदि बुआई के पहले ही निश्चित कमाई की गारंटी मिल जाए तो ऐसे में उसकी रिस्क लेने की क्षमता बढ़ेगी वो महंगी फसलों की ओर जाने का फैसला ले सकता है। किसान आधुनिक तकनीक का उपयोग कर सकता है। कानून में कृषि उत्पाद हेतु बाजार की व्यवस्था का प्रावधान किया गया। इससे महंगी फसलों का अधिक दाम मिलना संभव होगा। राज्य सरकार खुद रजिस्ट्रेशन कर सकेगी।
विवाद का निवारण
आंदोलन के नेताओं ने कहा कि विवाद का समय एसडीएम नहीं कोर्ट करे। सरकार ने इस पर सकारात्मक रुख दिखाया। उसने अपनी स्थिति भी स्पष्ट की। सरकार ने छोटे किसानों के हित को ध्यान में रखकर निर्णय किया था। कोर्ट में की प्रकिया लंबी होती है। जबकि एसडीएम किसान के सबसे करीब का अधिकारी है। सरकार ने यह भी तय किया कि एसडीएम को तीस दिन में विवाद का निराकरण करना होगा। वह किसान की भूमि के विरुद्ध किसी भी प्रकार की वसूली का निर्णय नहीं दे सकेगा।
किसान पेंशन
नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि साठ वर्ष के ऊपर के किसान को हर महीने तीन हजार पेंशन मिलेगी। कई लाख किसान इसमें रजिस्टर्ड हो चुके हैं। इसकी ओर अभी तक किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया था। सरकार पहले से ही बारह करोड़ किसानों को किसान सम्मान निधि प्रदान कर रही है। खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से लोगों को रोजगार भी मिलेगा। किसान सम्मान निधि के माध्यम से पचहत्तर हजार करोड़ रुपए हर साल किसान के खाते में पहुंचाने का काम किया गया।
आंदोलन को विकृत करते वामपंथी
आंदोलन में कितने किसान है,इसको लेकर भी सवाल उठते रहे है। केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा दिल्ली के दंगो के भीमा कोरेगांव के दंगों के जो दोषी हैं, जो जेल में हैं जिन्होंने देशद्रोही काम किया है,उन्हें रिहा कराने के लिए आंदोलन में पोस्टर बाजी हो रही है। नारेबाजी हो रही है। वामपंथी भीड़ इसमें शामिल हो गई है। वह किसान आंदोलन की दिशा बदलने की कोशिश कर रहे हैं। वह चाहते हैं कि वहां हिंसा हो जाए ये सब बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बात है। भारत बंद में भी राजनीतिक कार्यकर्ता ही ज्यादा दिखे। किसान उसका हिस्सा नहीं थे। बंद का असर तो पूरी तरह से पंजाब और हरियाणा में भी नहीं पड़ा था।
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री