उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में निषाद वोट बैंक पर नजर लगाई भारतीय जनता पार्टी भले ही निषाद पार्टी के साथ गठबंधन करके गद्गद नजर आ रही थी, लेकिन अब यह गठबंधन बीजेपी और योगी सरकार के ‘गले की फांस’ बनता दिख रहा है.निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने बीजेपी को अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं,गत दिनों लखनऊ के रमाबाई मैदान में निषाद पार्टी की रैली में जबर्दस्त भीड़ जुटी थी,इसी भीड़ ने संजय निषाद को इतना आत्मविभोर कर दिया है कि वह बीजेपी और मोदी-योगी सरकार को धमकी देने लगे हैं कि यदि चुनाव से पूर्व निषाद समाज को अनुसूचित जाति में शामिल नहीं किया गया तो बीजेपी को चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। संजय निषाद यहां तक कह रहे हैं कि यदि निषादों को अनुसूचित जाति के तहत आरक्षण नहीं दिया गया तो वह गठबंधन तोड़ने से भ परहेज नहीं करेंगे.जबकि वह जानते हैं कि बीजेपी के लिए निषादों को अनुसूचित जाति के तहत आरक्षण का मतलब दलितों की अन्य जातियों से नाराजगी मोल लेना है,क्योंकि निषादों को अनुसूचित कोटे में आरक्षण दिया गया तो इससे पहले से अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ उठा रहे दलितों का हिस्सा काट कर ही निषादों को आरक्षण मिलेगा. वैसे राजनीति के कुछ जानकार निषादों को अनुसूचित जाति में आरक्षण दिए जाने की निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद की मांग को उनकी मजबूरी भी बता रहे हैं. क्यांेकि निषादों को अनुसूचित जाति में आरक्षण की मांग संजय निषाद की पार्टी के समानांतर खड़ी विकासशील इंसान पार्टी भी यूपी में निषादों को अनुसूचित जाति आरक्षण का कार्ड खेल रही है।
बीजेपी के लिए ‘दूसरे राजभर’ साबित हो सकते हैं संजय निषाद
यूपी में भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने योगी आदित्यनाथ सरकार पर दबाव बनाते हुए दो-टूक कहा है कि आरक्षण नहीं तो बीजेपी को समर्थन भी नहीं। यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव भी निषाद समाज को अनुसूचित जाति में आरक्षण का समर्थन कर रहे हैं। वैसे निषादों को आरक्षण देने की मांग नई नहीं है। साल 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले निषाद समाज को एससी में शामिल कराने की मांग नए सिरे से उठी है। बीते 17 दिसंबर को लखनऊ में हुई निषाद समाज की रैली में यह उम्मीद जताई जा रही थी कि योगी सरकार निषादों को अनुसूचित जाति के तहत आरक्षण की घोषणा कर सकते हैं,लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ऐसा नहीं होने से बीजेपी के सहयोगी निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद नाराज हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर उन्होंने कहा है कि गृहमंत्री अमित शाह को निषाद आरक्षण के मुद्दे पर कुछ कहना चाहिए था। अगर 2022 में बीजेपी को सरकार बनानी है तो उसे निषाद समाज का ध्यान रखना होगा। केवल यह कहने से काम नहीं चलेगा कि सरकार बनने पर निषाद समाज के मसले को हल किया जाएगा।
गौरतलब हो, यूपी, बिहार और झारखंड में निषाद समाज ओबीसी की श्रेणी में आते हैं। जबकि, दिल्ली और दूसरे राज्यों में इन्हें अनुसूचित जाति में शामिल किया गया है। बिहार ने निषादों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से इनकार कर दिया है, लेकिन यूपी में इसकी मांग की जा रही है। बीजेपी के लिए समस्या यह है कि निषाद समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करने से पहले से शामिल दलित जातियों को मिलने वाला लाभ बंटेगा, जिससे वे नाराज हो सकते हैं। दलित समुदाय की अन्य जातियों को भी बीजेपी नाराज नहीं कर सकती है। इसी कारण केंद्र व राज्य की सरकारें बिहार में इससे पीछे हट चुकी है और अब यूपी में भी खामोश है।
बीजेपी के लिए मुूश्किल यह है कि वह निषाद समाज को साथ लेकर चलना चाहती है। ऐसे में संजय निषाद के साथ बीजेपी नेताओं की बैठकों का दौर जारी है। संजय निषाद विधानसभा चुनाव से पहले निषाद आरक्षण की घोषणा चाहते हैं। समाजवादी पार्टी के जातीय समीकरण तथा मुकेश सहनी की यूपी चुनाव में एंट्री को देखते हुए बीजेपी निषाद समाज की मांग को लेकर दबाव में दिख रही है।कुल मिलाकर निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद जिस तरह की भाषा बोल रहे हैं,उससे तो यही लगता है कि संजय निषाद बीजेपी के लिए दूसरे ओम प्रकाश राजभर साबित हो सकते हैं,जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी से गठजोड़ खत्म करके समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया है।