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श्रद्धा के तिलिस्म ने जगाया हॉरर का असली जादू, विक्की, बिट्टू, जना और रुद्रा ने भी जमाया रंग

आसान नहीं होता है बड़े परदे पर काल्पनिक किरदारों की ऐसी आभासी दुनिया बसाना, जिसे दर्शक अपनी दुनिया मान बैठें और इसके किरदारों से अपनापन मानने लगें। छह साल पहले चर्चित लेखक-निर्देशक जोड़ी राज और डीके ने निर्माता दिनेश विजन और निर्देशक अमर कौशिक को अपनी एक कहानी सौंपी थी, ‘स्त्री’। एक स्त्री एक छोटे से शहर के पुरुषों को उठा ले जाती है। वजह उसे, उसके प्रेमी के साथ जिंदा जला दिया जाना।

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आखिर में ‘स्त्री’ का क्रोध शांत होता है और वह खुद ही उस नगर की रक्षक बन जाती है। जिन दीवारों पर पहले लिखा होता, ‘ओ स्त्री कल आना’, उन दीवारों पर लिखा रहने लगा, ‘ओ स्त्री रक्षा करना’! लेकिन, क्या होगा जब ये स्त्री इस नगर को छोड़कर चली जाएगी? फिल्म ‘स्त्री 2’ की कहानी उतनी ही है जितनी आप इसके ट्रेलर में देख चुके हैं, लेकिन इसकी अंतर्धारा बहुत मारक है। कुछ कुछ देश में बने उन हालात जैसी, जहां सब किसी एक के पीछे आंखें मूंद कर चल पड़ते हैं।

श्रद्धा के तिलिस्म ने जगाया हॉरर का असली जादू, विक्की, बिट्टू, जना और रुद्रा ने भी जमाया रंग
सिनेमा अगर अपने समय के समाज पर टिप्पणी नहीं करता है तो वह सिनेमा नहीं कहलाता है। फिल्म ‘स्त्री 2’ में भी इसके लेखक निरेन भट्ट ने तमाम मनोरंजक मसालों के बीच एक कहानी छोटी सी ऐसी बुन दी है जिसे समझने वाले जरूर समझ सकेंगे। बाहर बड़ी बड़ी बातें करने वाले समाजसेवियों के घर में महिलाओं की हालत क्या है? क्या अब भी महिलाओं की आधुनिकता को छोटे कस्बों में स्वीकारा जाता है?

क्या उनका चूल्हा, चौके और पति के साथ उसकी मर्जी होने पर हमबिस्तर होना ही एक पत्नी का ‘धर्म’ है? और, क्या चाहता है पितृसत्तात्मक समाज, जब कोई स्त्री अपनी मर्जी के हिसाब से अपनी दुनिया बनाना चाहे? फिल्म इन सारे सवालों को बिना कहे, प्रकट किए, एक ऐसी मनोरंजन कहानी के साथ पेश कर देती है, जैसे किसी ने रसगुल्ले में रखकर बच्चे को कुनैन की गोली खिला दी हो।

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अरसे बाद मुंबई के किसी प्रेस शो में हॉल हाउसफुल दिखा। तमाम लोग खड़े भी दिखे। बच्चे भी आए थे, अपने अभिभावकों के साथ फिल्म देखने और हॉरर फिल्म का पूरा मजा भी लूटते दिखे। डर का अपना जो अलग आकर्षण होता है, वह सबसे पहले किशोरवय बच्चों को ही अपनी तरफ खींचता है। टीनएजर्स के बीच दुनिया भर में अब भी हॉरर सबसे लोकप्रिय सिनेश्रेणी है और इस साल हिंदी की अधपकी दो फिल्में ‘शैतान’ और ‘मुंजा’ से निराश हुए हॉरर के पक्के मुरीदों के लिए फिल्म ‘स्त्री 2’ किसी पार्टी से कम नहीं है। ‘मुंजा’ से अमर कौशिक और दिनेश विजन ने कंप्यूटरजनित किरदार परदे पर पेश किया और वह किरदार दरअसल ‘स्त्री 2’ के लिए दर्शकों को तैयार करने की पाठशाला थी।

फिल्म ‘स्त्री 2’ में वही शहर चंदेरी है, जहां छह साल पहले एक अनाम युवती ने ‘स्त्री’ की चोटी काटकर अपनी चोटी में मिला ली थी, असीमित शक्तियां पाने के लिए। विक्की उसे अब भी चाहता है। उसके सपने भी देखता है और इस चक्कर में इतना पिट चुका है, कि असल में उसके सामने आने पर भी उसे यकीन नहीं होता। स्त्री गई तो सिरकटा आ गया। दहशत का दूसरा नाम है ये दैत्याकार प्रेत। इससे निपटने में चंदेरी के लोगों की मदद करने ये युवती फिर लौटती है और इस बार अपना अतीत, वर्तमान, भविष्य सब जाते जाते बता जाती है। वरुण धवन वाली ‘भेड़िया’ भी इस यूनिवर्स से आ मिली है। लेकिन, फिल्म का असल आकर्षण और सबसे बड़ा सरप्राइज है अक्षय कुमार का किरदार। ये किरदार क्या है, ये आप फिल्म देखकर ही समझें तो ठीक रहेगा।

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