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तो कुछ इस तरह प्रत्येक मनुष्य के जीवन में होता है चमत्कार, यहाँ जानिये कैसे…

जो विश्वास हमारे मन से बाहर झांक रहा है, उसे कैसे देखा जाये? इंसान को ऐसी कौन-सी समझ दी जाये कि उसके विचार ही बदल जायें? यदि उसके विचार बदल गये तो पूरे शरीर में जो तरंग उठेगी, वह विश्व की हर उस चीज से संपर्क करेगी, जो सकारात्मक है.

विश्वास की यह तरंग जो आपके अंदर है, वे उन चीजों को आपकी ओर आकर्षित करती हैं, जो आप चाहते हैं. इस तरह सारी सकारात्मक चीजें आपके जीवन में आने लगती हैं. इंसान को तुरंत विश्वास की शक्ति मिल जाये, तो हमारे जीवन में चमत्कार शुरू हो जाये, क्योंकि सभी चाहते हैं कि उनके जीवन में चमत्कार हों.

आप अलग-अलग चमत्कार के बारे में सुनते हैं तो यही कहते हैं कि ‘मेरे जीवन में ऐसा कब होगा? क्या आजकल के युग में चमत्कार संभव है?’ हर एक के जीवन में चमत्कार हो सकते हैं, सिर्फ उस इंसान को चमत्कार देखने की आंख मिलनी चाहिए. चमत्कार कैसे होते हैं, इसकी समझ प्राप्त होनी चाहिए, क्योंकि जो विश्वास आपके अंदर से झांक रहा है, उसे प्रकट होना है.

उसके प्रकट होते ही चमत्कार होते हैं. कुदरत नियमों पर काम करती है, उन नियमों के अनुसार इंसान के अंदर विश्वास और श्रद्धा खुली तो निश्चय चमत्कार हो सकते हैं. अगर विश्वास और श्रद्धा प्रकट नहीं हुई तो कोई चमत्कार नहीं होता. विश्व के विकास की एक ही आस है, वह है विश्वास (विश्व+आस). विचार विश्वास का आईना है. मन से जो विचार निकलते हैं, उन्हें देखकर ही पता चलता है कि विचारों के पीछे किस तरह का विश्वास है.

इंसान के विचार ही बताते हैं कि उसके अंदर कैसा विश्वास है और विश्वास यह बताता है कि इंसान कितने बड़े काम कर सकता है. एक इंसान कहता है, ‘सुबह उठकर मुझे पहला विचार यह आता है कि मंदिर कितने बजे खुला?’ वह इंसान अपने शरीर को मंदिर कहता है.

उसके लिए सुबह उठना यानी मंदिर का खुलना है. मंदिर जब खुल जाता है तब उसके सामने अलग-अलग लोग आना शुरू हो जाते हैं. ‘शरीर उठा यानी मंदिर खुला, अब पुजारी (आप) क्या करे?’ तब निश्चित ही ऐसे शरीर से, जिसमें विश्वास भरा हुआ है, सकारात्मक, आनंददायक, सभी के मंगल के लिए कार्य शुरू हो जाते हैं.

सुबह उठने के बाद एक इंसान को विचार आते हैं, ‘मैं उठा…मैंने क्या-क्या किया?’ और दूसरे इंसान को विचार आता है कि ‘मंदिर खुला.’ इन दोनों विचारों में छोटा-सा फर्क है, मगर यही फर्क एक को असफलता दिलाता है और दूसरे को सफलता, क्योंकि दूसरे इंसान ने अपने आपको जान लिया, इसलिए उसमें यह विचार आया. मगर यह विचार आने के लिए उसने न जाने कितने शिविर किये होंगे, घंटों सत्य का श्रवण, मनन किया होगा. आपके विचार ही बताते हैं कि आपकी क्या अवस्था है. आपके विचारों के पीछे जो झांक रहा है, आपका आत्मविश्वास बेचारा किस अवस्था में है? अगर यह स्वस्थ अवस्था में है तो आपके विचार कैसे होंगे? स्वस्थ अवस्था में हरे-भरे विचार होंगे.

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