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‘अपनी किताबों पर दोनों नातिन की बजाय भारत के बच्चों से प्रतिक्रिया लेना पसंद’, बोलीं सुधा मूर्ति

लेखिका और समाजसेवी सुधा मूर्ति (Sudha Murthy) का कहना है कि जब बच्चों के लिए लिखी उनकी पुस्तकों पर गहराई वाली प्रतिक्रिया की बात आती है तो वह लंदन में रहने वाली अपनी नातिनों की बजाय बेंगलुरु और अन्य भारतीय शहरों के युवा पाठकों को चुनती हैं।सुधा मूर्ति की पुस्तकों ‘ग्रैंडपेरेंट्स बैग ऑफ स्टोरीज’(2020) और ‘ग्रैंडमांज बैग ऑफ स्टोरीज’ (2015) के सीक्वल के रूप में उनकी नई किताब ‘ग्रैंडपाज बैग ऑफ स्टोरीज’ हाल में आई है।

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'अपनी किताबों पर दोनों नातिन की बजाय भारत के बच्चों से प्रतिक्रिया लेना पसंद', बोलीं सुधा मूर्ति

सुधा मूर्ति के अनुसार, उनकी दोनों नातिन जो अभी किशोरावस्था में कदम रख रही हैं, अपनी नानी की किताब को बहुत ही सामान्य मानती हैं और उन्हें अंग्रेजी की ‘क्लासिक’ किताबें पढ़ने का शौक है।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा, ‘‘मैं उनसे (नातिनों से) उतनी बार नहीं मिल पाती, जितना दूसरे बच्चों से मिलती हूं। और वे भारतीय परिस्थितियों से इतना जुड़ाव नहीं महसूस कर पातीं, जबकि भारत में मेरे बच्चे बहुत ज्यादा जुड़ाव महसूस कर सकते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि भारत में पले-बढ़े बच्चे मुझे मेरी नातिनों की तुलना में ज्यादा गहराई वाली प्रतिक्रिया देते हैं।’’

सुधा मूर्ति की बेटी अक्षता हैं और उनके दामाद ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक हैं। अक्षता और सुनक की दो बेटियां अनुष्का और कृष्णा हैं। इसी महीने 74 साल की हुईं सुधा मूर्ति के लिए लेखन का अर्थ है प्रसन्नता। वह अब तक 46 किताब लिख चुकी हैं। हालांकि वह इसे पर्याप्त नहीं मानतीं।

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